*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया- नाम दान लेने से पहले क्या छोड़ना पड़ता है*

जयगुरुदेव

20.09.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)

*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया- नाम दान लेने से पहले क्या छोड़ना पड़ता है*

*नाम दान देना, संभाल करना और संस्कार डालना अलग-अलग है*

*समय परिस्थिति का ध्यान रखते हुए नाम दान दिया जाता है*


निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन और मुक्ति-मोक्ष प्राप्ति के लिए चरम की तरफ बढ़ते कलयुग में केवल कुछ छोटे-मोटे परहेजों वाली अति सरल शब्द नाम योग साधना बताने वाले, अमोलक नाम का दान देने वाले, संभाल करने वाले, संस्कार डालने वाले, पूरे सन्त, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन (मध्य प्रदेश) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

नाम दान लेने से पहले आपको कुछ छोड़ना पड़ेगा। घर, जमीन-जायदाद, बाल-बच्चों को, अपना धंधा नौकरी कुछ नहीं छोड़ना है। न बाल बढ़ाना न कटाना, न कपड़ा बदलना। जैसे रहते हो, वैसे रहो। आपके पास है तो अच्छा खाओ, अच्छा पहनो, अच्छे समाज में रहो। पूरी छूट है। छोड़ना क्या है? गंदी चीजों को। मांस, मछली, अंडा, शराब, शराब जैसा तेज नशा चाहे गोली, जड़ी-बूटी, चाहे पीने वाली चीज हो, उसको छोड़ना है। उससे (नशे से) दूर रहना है जिससे बुद्धि खराब हो जाती है, आदमी मदहोश हो जाता है। मदहोशी में ही गलत काम करता है। इसलिए मदहोशी वाले नशे का सेवन मत करना।


*नाम दान देना, संभाल करना और संस्कार डालना अलग-अलग है*

महाराज जी ने 20 मई 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि लोगों को गुरु महाराज ने नाम दान दिया, संस्कार डाला। संस्कार डालना अलग चीज होती है। नाम दान देना, भजन करना, संभाल करना अलग चीज होती है। गुरु महाराज ने संस्कार भी बहुत लोगों पर डाल दिया। दृष्टि जिन पर डाल दिया, उन पर भी संस्कार पड़ गया। जीव-जंतुओं पर भी संस्कार डाल देते हैं। और दया कर देते हैं तो उनको मनुष्य शरीर मिल जाता है। 

तब उस वक्त के जो महापुरुष होते हैं उनकी आवाज पर वहां पहुंच जाते हैं। संस्कार जिसमें पड़ जाता है तो समझ लो उसका उद्धार होना ही होना है। मनुष्य शरीर पाने के बाद उस जीव का खिंचाव वक्त के गुरु को करना ही करना रहता है। जिम्मेदारियां हो जाती है। इसीलिए मानसिक रूप से सन्त परेशान रहते हैं लेकिन परेशानी दूर होती रहती है, दया होती रहती है तो फिर वह काम को नहीं छोड़ते हैं।


*समय परिस्थिति का ध्यान रखते हुए नाम दान दिया जाता है*

महाराज जी ने 8 जुलाई 2017 प्रातः जयपुर (राजस्थान) में बताया कि (समय के सन्त सतगुरु पहले) ऐसे आसानी से तो नाम दान देते नहीं थे। समय पर देते थे। निश्चित कर देते थे। कोई अमावस्या, पूर्णिमा को देता। बीच में भी उनकी मौज पर निर्भर रहता है। पूरा पावर मालिक उन्हीं को दे देता है। 

लेकिन वह समय और परिस्थिति का ध्यान रखते हैं। अपनी भी बचत करते हैं क्योंकि जीवों के कर्म बहुत आते हैं, सफाई अंदर करनी पड़ती है, अंत: करण साफ करना पड़ता है। जैसे ज्यादा गंदे बर्तन को साफ़ करते समय कालिख लगती है, ज्यादा गंदे कपडे को धोते समय धोबी के ऊपर मैल के छींटे, गंदगी पड़ती है। देखो ज्यादा मैल अभी कहीं जमा हो जाए तो वहीं पर फोड़ा-फुंसी, चर्म रोग होने लग जाता है, वहां का खून खराब, गड़बड़ हो जाता है। तो वह गंदगी तो आती ही आती है। समय परिस्थिति के अनुसार (नाम दान) दिया करते थे लेकिन उन्होंने जब देखा कि यह जिज्ञासु प्रेमी और भक्त है और जीव के कल्याण का ही जब हमारा काम है तो नाम दान दे दिया जाए तो दे दिया।


*मनुष्य शरीर की कार्य करने की एक क्षमता होती है*

महाराज जी ने 31 अक्टूबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि अकेला आदमी कोई क्या कर सकता है। जैसे जितने भी महापुरुष आये सब मनुष्य शरीर में रहे। मनुष्य शरीर की कार्य करने की एक क्षमता होती है। उतना ही कर सकता है जितना उम्र के अनुसार बल ताकत होती है। तो (सन्त) परिवर्तन के लिए लोगों को जोड़ते हैं। जैसे महापुरुषों ने जोड़ा अपने साथ।

 ऐसे ही इस समय पर आपको लोगों को जोड़ने में मदद करने की जरूरत है, और लोगों को तैयार करने की, उनका मानस बनाने की, लोगों के अंदर नाम दान लेने की इच्छा जगाने की, लोग मनुष्य शरीर के, कर्म के बारे में सोच लग जाए कि बुरा करेंगे तो नर्क में जाना पड़ेगा, मार पड़ेगी, चौरासी में कीड़ा-मकोड़ा आदि बनना पड़ेगा, यह समझ में आ जाए। इसलिए दुबारा इस दु:ख के संसार में आना न पड़े, एक ही बार में आप निकल चलो, अपने घर पहुंच जाओ इसलिए इस समय लोगों को समझाने की खास जरूरत है।





https://www.youtube.com/clip/UgkxN9ahsAHifyL2TtTHhR6HwOEu42k9zy_7 

अंतर्यामी सतगुरु 

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