जय गुरु देव
30.08.2023
*1. गुरु को समय के बारे में जानकारी रहती है और उस हिसाब से वे आदेश देते हैं।*
गुरु भक्ति कहते किसको है? गुरु के आदेश का पालन जो होता है वही गुरु भक्ति होती है। समय पर गुरु किसी चीज का आदेश देते है, उनको समय के बारे में जानकारी होती है, जैसे बाप को जानकारी रहती है कि गर्मी खत्म होने वाली है अब ये जून का महीना ज्येष्ठ का महीना खत्म होने वाला है, आषाढ़ महीना आने वाला है तो इसमें बादल आयेंगे और बादल आयेंगे बरसेंगे तो लड़के के लिए पहले से ही छाता ला देने की जरूरत है, वो जानकार होते हैं। ठंडी आने से पहले गरम कपड़े का इंतजाम बाप बेटा के लिए कर देता है। इसी तरह से जो जानकार होते हैं वो आदेश देते हैं, वो समझते हैं, वो उसकी व्यवस्था करते हैं।
*2. समय सीमा के अंदर गुरु के आदेश का पालन करने से सफलता मिलती है।*
समय-समय पर हर चीज का आदेश मिलता रहता है। गुरु महाराज भी समय-समय पर आदेश दिया करते थे, जब जैसे जरूरत पड़ती थी और जब हम लोग गुरु महाराज के आदेश के पालन में लग जाते थे तो उसमें कामयाबी मिल जाती थी और जैसे समय खत्म होता था तैसे उसमें परेशानियां आने लगती थी, ये हमको अनुभव है। आप बहुत से कार्यकर्ता हो आप को भी अनुभव है।
समय पर जो काम कर डाले होगे उसमे ज्यादा सफलता मिली होगी, जब समय सीमा खत्म हो गई फिर आपने उस काम को किया तो सफलता नहीं मिली, तो ध्यान ही नही देते हो उसपे, उसका महत्व खत्म हो जाता है। इसलिए कहते हैं कि समय से जो चलते हैं वह पीछे नहीं रहते हैं, वह आगे निकल जाते हैं। उनका वेग कोई रोक नहीं पाता है, उनकी सफलता कदम चूमती है इसलिए समय से सब काम करना चाहिए।
*3. सतसंग सुनने, भजन और प्रचार-प्रसार करने का नियम बनाओ, टाइम टेबल बनाओ।*
आप बहुत से लोग आलसी हो, उठते ही नहीं हो। छुट्टी का दिन है आज कौन दफ्तर जाना है, तो उसी दिन हर काम में लेट होता है। जिस दिन भजन ध्यान करने का, प्रचार करने का, साप्ताहिक सतसंग में जाने का दिन होता है, वह सब जगह लेट ही होता चला जाता है। इसलिए ऐसा टाइम टेबल आदमी को बनाना चाहिए कि वह उस हिसाब से बराबर चलता रहे। कुछ लोग ऐसे हैं जो रात को 2:00 बजे उठ जाते हैं। 11-12 बजे सोए तो भी 2:00 बजे आंख खुल जाती है, भजन सुमिरन ध्यान करके और फिर अपनी दैनिक क्रिया में लगते हैं। तो उनका नियम बन गया है।
जिनका नियम बन जाता है उनका चलता रहता है। जो लोग नियम बना लिए कि हर इतवार की छुट्टी में हमको प्रचार करने जाना ही जाना है, कोई नहीं मिला तो अकेले तख्ती लटकाए, झंडा ले लिए और प्रचार करने चले गए। 2, 4, 6 लोग मिले और उनको बताने लगे। जिनका नियम बन गया है वह तो बराबर काम में लगे ही हुए हैं। जो भी काम कर सकता है उसमें वह लगा हुआ ही रहता है।
कुछ काम तो ऐसे होते हैं जो बराबर चलते रहते हैं जैसे गुरु महाराज के समय से ही यह चल रहा है, गुरु महाराज लोगों को शाकाहारी नशामुक्त बनाने का काम किए थे। इनको शाकाहारी नशामुक्त बनाओ, नामदान दिलाओ, इनको धर्म कर्म समझाओ, इनको आध्यात्मवादी बनाओ, भगवान को जो भूलते चले जा रहे हैं इनको भगवान की याद दिलाओ, मौत को जो भूले हुए हैं इनको मौत याद दिलाओ कि एक दिन तो आनी ही आनी है और सब कुछ छूट जाएगा। धन दौलत माल अशबाब तुम्हारा कुछ नहीं रह जाएगा, यह बात तो बतानी ही बतानी रहती थी। यह तो सबके लिए है। चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो, चाहे स्त्री हो चाहे पुरुष हो, चाहे पढ़ा लिखा हो चाहे अनपढ़ हो, अपने-अपने तौर तरीके से तो आप सब बात बता सकते हो।
यहां कार्यक्रम में आते हो तो जो देखते हो वह तो बता ही सकते हो कि सब सुनते रहते हैं, कोई चूं तक नहीं करता है, पूरी बात ना भी समझ में आवे पर मतलब की बात सबके समझ में आ जाती है। आश्रम इस तरह का बना हुआ है, मंदिर इस तरह का बना हुआ है, साधना यहां होती है और इधर सरोवर बना हुआ है। एक केंद्रीय मंत्री आए थे तो लोग उनको दिखाने ले गए कि यह बगीचा है, यह सरोवर है। तो वह देखे और लौट कर जब आए तो हम से (गुरु महाराज से) मिले और बोले कि सरोवर आपने बहुत बढ़िया बनाया है। यह तो मैंने पहली बार देखा, मैं तो बहुत दूर तक दौरा करता हूं, यह तो बहुत अच्छी चीज है, इसमें पानी बहुत इकट्ठा हो जाता होगा।
हमने कहा इससे पूर्ति होती है जब लाखों लाख की भीड़ होती है कार्यक्रमों में। यही सब चीजों को बताने लगो तो कम से कम जयगुरुदेव नाम याद तो आएगा, आकर्षण तो बढ़ेगा। फिर और जानने की इच्छा पैदा होगी और यह जो दुनिया की चीज़ें हैं यह जब बताने लग जाओगे कि मेरा रोग ठीक हो गया, मैं मुकदमा जीत गया, नौकरी मिल गई तो इस पर ज्यादा लोगों का ध्यान जाता है।
कहते हैं कि भाई कौन सी चीज है ऐसी? तो आप बता दो कि भाई वह चीज बताई नहीं जा सकती, दिखाई नहीं जा सकती, वह तो जो बताता है, दिखाता है, उसके पास जाना पड़ेगा, सुनना पड़ेगा। तो आकर्षण तो उसके अंदर पैदा होगा, जानकारी तो उसके अंदर होगी कि भाई ऐसी भी चीज है दुनिया में। वह चीज लुप्त नहीं हुई है जो शास्त्रों में लिखा है, वेद में लिखा है, ग्रंथ में लिखा है, मजहबी किताबों में लिखा हुआ है, जिसको फकीर, औलिया, स्पिरिचुअल मास्टर बोल करके गए, वह चीज अभी है, खत्म नहीं हुई है, यह इच्छा उनके अंदर जगेगी तो। उनके संस्कार जगेंगे तो। नहीं भी संस्कार जगेंगे, नहीं भी इच्छा पैदा होगी तो कहते-कहते सुनते-सुनते कर्म उनके कटेंगे तो। कर्म कटेंगे तो अपने आप अकल आएगी।
दुनियादारों के बीच में रहकर आप भी ऐसा कर्म कर डालते हो कि वह आपको प्रचार नहीं करने देते, भजन नहीं करने देते, वह सतसंग में नहीं जाने देते हैं। लेकिन जब सतसंग सुनते रहोगे, कर्मों को प्रचार के द्वारा लोगों को समझाकर काटते जाओगे तो अकल हो जाएगी। जैसे खाने-पीने की, दफ्तर जाने की, दुकान खोलने की, घर का काम करने की बच्चे और बच्चियों आदत बन गई है, ऐसे ही प्रचार प्रसार की आदत बन जाएगी, सतसंग सुनने की आदत बन जाएगी, भजन करने की आदत बन जाएगी।
*4. आज सब लोगों को यह संकल्प बनाने की जरूरत है।*
कुछ चीज तो ऐसी है जो सब लोगों को करना ही करना चाहिए। जितने भी लोग जयगुरुदेव नाम से जुड़े हुए हो, जो यहां पर हो या सुन रहे हो ऑनलाइन, या यूट्यूब पर सतसंग सुनोगे, तो आज सब लोगों को संकल्प बनाने की जरूरत है कि गुरु महाराज के इस मिशन को आगे बढ़ाने में, आने वाले खराब समय से लोगों को बचाने के लिए, खुद बचने के लिए, अपने बाल बच्चों को आने वाली मुसीबत से बचाने के लिए हमको कुछ न कुछ गुरु के आदेश का पालन करना ही करना है, प्रचार प्रसार हमको करना ही करना है। "मोटे बंधन जगत के गुरु भक्ति से काट, झीने बंधन चित्त के कटे नाम प्रताप।" नाम की कमाई करने से अंदर के बंधन कटेंगे, यह चारों शरीर छूटेंगे। तो नाम की भी कमाई हमको करना है इसका संकल्प बनाओ। और करना ही नहीं लोगों को भी करवाना है, बच्चे नामदानी हैं तो उनसे भी करवाना है, नहीं नामदानी हैं और बच्चा बड़ा हो गया तो उसको नामदान दिला करके उसको करवाना है। पति पत्नी को करवाए और पत्नी पति को करवाए, यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए, कुछ ना कुछ सहयोग करना चाहिए।
*5. जैसे गृहस्थी की गाड़ी मिलकर चलाते हो, ऐसे ही परमार्थ की गाड़ी मिलकर चलाओ।*
देखो प्रेमियों, गृहस्थी आप चलाते हो। बीवी और मिया दो मिल कर के गृहस्थी को चलाते हो। ऐसे दोनों मिल कर के इस काम को भी करो आप। पत्नी पिछड़ जाती है, नहीं जा पाऊंगी, तुम चले जाओ। वो (पति) कहता है तुम नहीं जाओगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा। दोनों तैयार हो जाते हैं। दोनों सतसंग में चले जाते हैं, दोनों साप्ताहिक सतसंग में चले जाते हैं, दोनों प्रचार में चले जाते हैं। जैसे गृहस्थी की गाड़ी आप दोनों मिल कर के चलाते हो वैसे ही परमार्थ की गाड़ी आप दोनों मिलकर के चलाओ। मनुष्य ही परमार्थ कर सकता है। हर कोई परमार्थ नहीं कर सकता। परमार्थ किस को कहते हैं ? ऐसा काम करो कि जिससे लोगों की रक्षा हो। ऐसा काम करो कि जिससे लोगो को सुख और शांति मिले। ऐसा काम होता है परमार्थ। अगर कोई भूखा है, दुखी है तो रोटी खिला दिया, प्यासा है तो पानी पिला दिया।
जैसे कोई भटक रहा है उसे रास्ता बता दिया। तो कहते हैं ये परमार्थ है। लोग भटक रहें हैं उनको रास्ता नहीं मिल रहा है, आप उनको समझा दोगे तो ये बहुत बड़ा परमार्थ होगा। कोई जानवर आदमी को थोड़ी ना समझा सकता है, आदमी समझा सकता है। आदमी, आदमी को समझा सकता है। तो ये काम जब आप करोगे तो ये बंधन आपके कटेंगे। दोनों बंधन तभी कटेंगे। जब भजन करोगे और भजन कराओगे, सेवा करोगे और कराओगे तब ये बंधन कटेंगे। तब ये मोटा मन दुबला और हल्का होगा। मोटा आदमी, मोटा पत्थर, मोटी चीज जल्दी उड़ नहीं पाती और अगर हल्का हो जाय तो उड़ जाए। ऐसे ही ये मन जब हल्का होगा तो ये जो सुरत के साथ लगा हुआ है तभी ये सुरत के साथ ऊपर जा पाएगा। वरना ये नीचे ही खींचा रहेगा। इन्द्रियों की तरफ ही इसको सुख दिलायेगा, रस दिलायेगा।
*6. रक्षा बंधन तक गुरु पूजन का आदेश आपको मिला था।*
देखो समय-समय पर आपको आदेश मिलता रहता है। अभी गुरु पूर्णिमा पर आदेश मिला था कि जाओ प्रेमियों और रक्षा बंधन तक गुरु पूजन का प्रसाद लोगों तक पहुचाओ। और गुरू पूजन जगह-जगह पर करो। कुछ जगह पर तो गुरु पूजन बराबर चल रहा है। क्योंकि जहां पर भारी संख्या में थे वहां पर बराबर चल रहा है और जहां पर कम प्रेमी थे वहां पर उन्होंने खत्म कर दिया। लेकिन गुरु पूजन होने का, प्रसाद बंटने का समाचार जहां-जहां भी प्रेमी हैं देश-विदेश में, सब जगह से आ रहा है कि गुरु पूजन लोगों ने किया और गुरु पूजन का प्रसाद लोगों तक पहुंचाया।
*7. रक्षा बांधने का, बंधवाने का और प्रसाद पहुंचवाने का कार्यक्रम शरद पूर्णिमा तक चलेगा।*
कहा गया था आपको कि अब नया आदेश मिलेगा रक्षाबंधन पर तो अब ये रक्षा बांधने का, बंधवाने का और प्रसाद पहुँचाने का ये कार्यक्रम चलेगा। ये कार्यक्रम शरद पूर्णिमा तक चलेगा और शरद पूर्णिमा के बाद फिर आपको दूसरा आदेश मिल जाएगा।
*8. दृष्टांत - एक आदमी ने भूत वश में कर लिया।*
प्रचार क्यों कराया जाता है? इसीलिए कि लगे रहो, कर्म काटते रहो, याद करते रहो उसको। गुरु महाराज सुनाया करते थे कि एक आदमी ने भूत वश में कर लिया था, तो भूत क्या करते हैं? भूत, सामान वगैरह जहाँ से कहो वहां से ला देते हैं। जो जबरदस्त भूत होते हैं तो कमजोर भूत को मार करके, डरवा करके, धमका करके हटा देते हैं, तो जो भूत परेशान करता है, बीमारी लाता है, तकलीफ लाता है जब वो हट जाता है तब आराम मिलने लगता है लोगों को। तो उसने भूत वश में कर लिया, रिद्धि सिद्धि कर लिया था उसने। भूत ने उससे कहा देखो हम तुम्हारे पास हमेशा रहेंगे, तुम कहोगे सब काम करेंगे लेकिन काम हमको बराबर देना पड़ेगा तुमको, कोई न कोई काम बताते रहना पड़ेगा तुमको तो बोले ठीक है।
अब कहे काम बताओ तो बोला जाओ आगरा से पेठा ले आओ, थोड़ी देर में गया पेठा ले आया। कहा जाओ कश्मीर से सेब ले आओ, अंगूर ले आओ, तो मशहूर चीजें मंगवाने लग गया और जब वापस आवे तब फिर खड़ा हो जाए बोले, अब काम बताओ, अब काम बताओ तो आदमी परेशान हो गया कि ये न तो टट्टी पेशाब करने देगा, न खाने पीने देगा लेकिन वादा कर लिया है कि काम नहीं करवाओगे तो छोड़ेंगे नहीं, मार डालेंगे अब क्या करे? तो कहते कि जब सब जगह से निराश हो जाये तब गुरु के पास जाए, गुरु से रास्ता पूछे, गुरु के पास सारे रास्ते होते हैं, लोक परलोक दोनों बनाने के रास्ते होते हैं। तो अपने गुरु के पास पहुंचा बोला अरे महाराज मैं तो फंस गया, गुरु बोले तब तू एक सिद्धि छोड़कर दूसरी सिद्धि में लग गया जिसमें कुछ नहीं है, फँसाव ही फँसाव है, दुःख ही दुःख है, जो इसमें लगे हुए हैं दुखी हैं।
आप ये समझो कि जो इस दुनिया के चक्कर में पड़े हैं, सब दुखी हैं, परेशान हैं, मानसिक तकलीफ बहुत हैं। तो कहा कि तुम इसमें फंस गए तो बोला कि महाराज हम अब जो भी हैं आपके हैं, अब आपको बचाना हैं, आप तो दीन बंधु हो, दीनानाथ हो, आप ही दया करोगे तब जान छूटेगी, देखो वो खड़ा है, यहाँ भी पीछे पीछे चला आया है, मैंने कहा पीछे पीछे चले आओ तो खड़ा है और कह रहा है कि काम बताओ, काम बताओ तो क्या काम बतावे अब हम महाराज? तो बोले अच्छा तो तू जा वापस और अपने घर के दरवाजे पर एक बांस गाड़ देना और इससे कह देना कि जब तक कोई दूसरा काम न बतावे इसी बांस पर तुम बार बार चढ़ो और उतरो। तो ये काम क्या है? ये काम इसी तरह का है कि इसी में लगे रहो नहीं तो जयगुरुदेव नाम भूल जाओगे, गुरु भूल जाओगे, नामदान भूल जाओगे, ऐसे जब लगे रहोगे, साप्ताहिक सतसंगों में जाते रहोगे, मासिक सतसंगों में जाते रहोगे, गोष्ठियों में जाते रहोगे, प्रचार प्रसार के लिए जाते रहोगे तो लगे रहोगे। तो कहते हैं कि ये काम ऐसा है कि खेल खेल में काम हो जाता है।
आप को बहुत से लोगों को अनुभव है कि देखो थोड़ी मेहनत में हमको कितनी कामयाबी मिल गयी है, कि देखो थोड़ा सा प्रयास हमने किया और हम कामयाब हो गए, हमको लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे और अब हमको देखो सम्मान देने लग गए, आप खुद अनुभव करते हो। अपने को जो लोग बदल दिए, जिनका मुँह लोग नहीं देखना चाहते थे उनको अब कहते हैं आओ आओ बाबा बैठो, और कुछ बताओ समझाओ, अपने को जब उन्होंने बदल दिया, अपनी रूटीन को बदल दिया, जो चोरी डकैती, अन्य कामो में लगे हुए थे, उसको जब उन लोगों ने बदल दिया, सतसंग में जुड़ गए, सतसंग की बातों को लोगों को बताने लग गए, भजन ध्यान में लग गए, परमार्थी काम में लग गए तो उन्हीं को लोग मानने लग गए, जानने लग गए और पूजा उनकी समझलो एक तरह से होने जैसी हो गयी।
*9. प्रसाद और रक्षा सूत्र कैसे बांटना है?*
यह जो रक्षा अभी आपको मिलेगी, इसको लेकर के जाना और प्रसाद लेकर के जाना। कुछ लोग तो यहां आए हैं रक्षा लेने के लिए ही, राखी लेने के लिए ही, और प्रसाद लेने के लिए, अभी वह तुरंत रवाना हो क्योंकि आसपास में जहां भी पूजन का कार्यक्रम हो रहा है उनको जिम्मेदारों ने भेजा होगा या जिम्मेदार खुद आए होंगे और लेकर जाएंगे और वहां पर उसमें मिलाएंगे जो प्रसाद होगा और फिर वह बाटेंगे। और यह रक्षा सूत्र को लेकर जाएंगे और उसमें मिला देंगे, और जब उसमें मिला देंगे तो वह भी एक तरह से प्रसाद रूप में हो जाएगा, प्रसाद की तरह से ही हो जाएगा और फिर उसको लोगों को बांट देंगे।
और यहां पर जो लोग आप हो आपको यहां बांधना रहेगा। देखो, अपने आप तो बांध नहीं पाओगे। आपके साथ कोई आया है तो पुरुष पुरुष को बांध दे, औरत औरत को बांध दे, बच्चियों औरत को बांध दे, माताओं को बांध दे, माताएं बच्चियों को बांध दे, छोटे बच्चों को बांध दें। तो यह आप यहां बांध लोगे और ऐसे ही वहां भी बांधा जाएगा जहां-जहां कार्यक्रम होंगे, जहां-जहां पूजन होगा, जहां-जहां रक्षा सूत्र बांटा जाएगा, वहां भी इसी तरह से होगा।
*10. रक्षा सूत्र किन लोगों को बांधा जाएगा?*
यह सूत्र जो बंटेगा यह सब को नहीं दिया जाएगा। नामदानियों को तो दे देना रहेगा लेकिन जो गैर नामदानी हैं और मांस मछली खाते हैं और कार्यक्रम में आते भी हैं तो उनको नहीं बांधना रहेगा, न देना रहेगा। अगर वह संकल्प बना लेते हैं कि हम आज से छोड़ दे रहे हैं तो उनको भी बांध देना, कोई सतसंगी उनको बांध देगा। उनको देना नहीं है और अगर वह लेकर भी जाएंगे किसी को बांधेंगे तो गारंटी नहीं है कि उनको बराबर दया मिलेगी ही मिलेगी।
उनकी रक्षा की गारंटी नहीं रहेगी लेकिन अगर संकल्प बना लेगा, मांस मछली छोड़ने का संकल्प बना लेगा और रक्षा बंध जाएगा तो गुरु महाराज की दया से मुसीबत में उसकी रक्षा होगी। कल आपको बताया था कि जान ही बच जाए, ऐसे लोगों के साथ में रहे आदमी कि जिसमें लोग मारे जाएं और उसकी जान बच जाए, उसका घुटना ही टूट जाए, हाथ ही टूट जाए लेकिन जान बच जाए तो भी दया माना जाता है क्योंकि यह फिर मनुष्य शरीर जल्दी मिलता नहीं है और इसी में भजन, भाव-भक्ति, सेवा सब हो पाती है। इसलिए रक्षा ही हो जाए उसकी, जान ही बच जाए जहां लोगों की जान जा रही है तो वह भी एक रक्षा ही होती है।
*11. रक्षा सूत्र जान बचाने में मददगार कब होगा?*
कुछ ना कुछ रक्षा का तरीका निकल आएगा और जान बचेगा। लेकिन कब? जो रक्षा वो बंधवाएगा, उसको जब याद करता रहेगा जिसने रक्षा भेजा है, कैसे यह रक्षा भेजी गई है, इस रक्षा में ताकत कैसे आई है, उस जयगुरुदेव नाम को जिस जयगुरुदेव नाम को बोल करके जो बाबा जयगुरुदेव जी महाराज कहे जाते थे, उनकी दया दुआ लेकर के वह जो रक्षा भेजी जा रही है यहां से, उनको जब याद रखेगा, उनको जब भूलेगा नहीं। रक्षा सूत्र कहां बांधा जाएगा? कलाई में।
कोई भी काम करते हैं तो दाहिने हाथ से ज्यादातर काम करते हैं, शुभ काम ज्यादातर दाहिने हाथ से करते हैं, तो दाहिना हाथ जब उठता है कोई काम करते वक्त तो नजर कहां पड़ती है, जो काम किया जाता है उस चीज पर पड़ती है और जिससे किया जाता है उस पर पड़ती है। मिट्टी खोदना है तो मिट्टी पर नजर पड़ेगी और फावड़े से खोदा जाएगा तो फावड़े पर नजर पड़ेगी। अब फावड़े का अगर कोई एक नट ढीला है तो उस पर भी नजर पड़ जाती है क्योंकि वह उससे कसा हुआ है, बेंट अगर उसकी ढीली है तो उस पर भी नजर पड़ जाती है। ऐसे ही जब कलाई पर रहेगा सूत्र तो याद आता रहेगा, सूत्र किसने भेजा है, कौन से मंत्र से जगा करके भेजा गया है, किसकी दया देकर के भेजा गया है, यह बराबर जब वह याद करता रहेगा तब रक्षा गुरु महाराज उसकी करेंगे।
*12. यह रक्षा सूत्र पिछले वर्षों की अपेक्षा ज्यादा असरदार होगा।*
देखो हर बार तो रक्षाबंधन आप बना लेते थे, रक्षा सूत्र आप ले जाते थे, बहुत से लोग हम ही से छुआ कर ले जाते थे। एक-एक साथ कईं कार्यक्रम होते थे जब मेरी तबीयत ठीक रहती थी तब रक्षाबंधन के पहले कईं जगह होता था, कईं प्रांतों में होता था तो वहां भी लोग छुआ लेते थे लेकिन उस सूत्र से ज्यादा असरदार होगा यह और जरूरत भी है इस बात की। जैसे वैद्य लोग दवाई बनाते हैं तो जब हल्का मर्ज रहता है तो कम कूटते पीसते हैं, ऐसे मिलाकर दे देते हैं एक दो चीज।
एक दो दवाई ऐसे कूट पीस करके दे देते हैं। और जब मर्ज भारी हो जाता है, मर्ज जल्दी हटता नहीं है तो कईं दवाओं को घोटते हैं, कईं दवाओं को तैयार करते हैं घोट करके। ऐसे ही समझ लो कि यह घोट पीस करके यह सूत्र तैयार किया गया है। कहां तैयारी की गई है, वहीं जहां हम रहते हैं। वहां भी एक मंदिर बना है गुरु महाराज का। समय मिलेगा तो देख लेना, यहां तो खुली किताब है कोई कहीं भी आवे जावे घूमे, कोई यहां पर्दा है, कुछ नहीं। तो वहीं तैयार किया गया है, रात में हमने तैयार किया है प्रातः काल जल्दी उठ करके, गुरु की दया लेकर के। तो इस सूत्र का अलग महत्व है।
*13. दो महीने तक जगह-जगह कार्यक्रम करने का अभियान चलेगा।*
यह (रक्षा सूत्र) पहुंच जाए लोगों तक, नामदानियों के पास पहुंच जाए। यह आप प्रेमियों की, आप सतसंगियों की जिम्मेदारी है। जो नए लोग आएंगे, पूजन का कार्यक्रम जगह-जगह रखो, आश्रमों पर आप लोगों ने रखा होगा, 100 से ऊपर आश्रम हैं पूरे देश में। आप समझो इक्का दुक्का उस समय के हैं गुरु महाराज के समय के, बाकी तो गुरु महाराज के जाने के बाद ही सारे आश्रम बने हैं। और कार्यालय बने हैं, लोगों के साप्ताहिक सत्संग के स्थान बने हैं, वह तो हजार से ऊपर होंगे। सब जगह पर आज लोग इकट्ठा होकर रक्षाबंधन का कार्यक्रम कर रहे हैं। लेकिन यह रक्षा सूत्र सब जगह आज नहीं पहुंच पाएगा, बाद में जाएगा तो बाद में बंट जाएगा। जगह-जगह पर जैसे-जैसे रक्षा सूत्र पहुंचता जाए, वैसे-वैसे आप कार्यक्रम वहां सेट कर लो और पहुंचाने की जिम्मेदारी ले लो आप जिम्मेदार लोग और वहां पर पहुंचा दो।
इस रक्षा सूत्र से वहां जो रक्षा सूत्र बंटेगा, वह स्पर्श हो जाना चाहिए लेकिन स्पर्श करते समय उसमें डालते समय जयगुरुदेव नाम की ध्वनि जरूर बोल लेना। दो बार, चार बार, आठ बार जरूर बोल देना जयगुरुदेव नाम की ध्वनि। बहुत जोर से ना भी बोलो तो अंदर में ही बोल करके और उसी में मिला देना तो वह भी इसी तरह से ताकतवर हो जाएगा। इसी तरह से उसमें भी दया दुआ जारी हो जाएगी। तो यह पूरा चलना चाहिए अभियान। यह समझो दो महीना अभियान चलेगा और फिर शरद पूर्णिमा आएगी। शरद पूर्णिमा पर गुरु महाराज की दया रही तो फिर कोई और आदेश आपको मिलेगा।
*14. इस समय लोगों की जान बचाना बहुत जरूरी है।*
अभी तो लोगों का जान बचाना इस समय बहुत जरुरी है क्यूंकि अभी बहुत खराब समय आ रहा है, कब कहा आग लग जाए, कब कहाँ आदमी को मारने लग जाए, कब कहाँ किसका घर जला दे, घर गिरादे, कब कहाँ क्या हो जाए, कब कहाँ विस्फोट हो जाए, कब कहाँ उतावलेपन में आ करके जातिवाद में, कौमवाद में, पार्टीवाद में आ करके लोग एक दूसरे को मारने काटने लग जाए, किसको गोली मार दे, इस समय पर कोई भरोसा किसी का नहीं है। घर से आदमी निकले गारंटी नहीं है कि 2 घंटे के बाद आदमी वापस ठीक ठाक आ जाए और आगे ये गारंटी और खतम होगी, इसीलिए लोगों का जान बचाना बहुत जरुरी है। तो ये सूत्र जब पहुँच जाएगा, हाथ में बंध जाएगा देखते रहेंगे उसको, जयगुरुदेव नाम बोलते रहेंगे, याद करते रहेंगे तो बचत होगी।
*15. रक्षा सूत्र और प्रसाद किसको देना है?*
रक्षा सूत्र देना उन्हीं को है जो संकल्प बना ले कि अब हम किसी भी पशु पक्षी का मांस नहीं खाएंगे, अंडा नहीं खाएंगे, शराब नहीं पिएंगे। बाकी लोगों को प्रसाद दे देना, यहाँ से ले जाना और जो भी प्रसाद आपका वहां रहेगा उसी में मिलाकर के दे देना, बोल देना जयगुरुदेव नाम बोल करके प्रसाद खा लेना, ये आपको अक्कल देगा, ये बुद्धि देगा और आपका मन ही किसी दिन बदल जाए तब आप आ जाना। तो प्रसाद तो उनका मन बदलेगा लेकिन रक्षा ले ले तो कोई गारंटी नहीं है क्यूंकि शाम को पियक्कड़ फिर मिल जाएंगे, पिला देंगे। तो संकल्प जब बना ले तब रक्षा सूत्र देना है। तो ये काम आपका चलेगा। यहाँ भी प्रेमियों इंतजाम करो जो लोग आएंगे उनको तीन दिन कम से कम ये रक्षा सूत्र दे दो, तीन दिन तक इसका महत्व रहेगा।
*16. जन्माष्टमी तक रक्षा सूत्र जगह जगह पहुंचा दो और वहां के सूत्रों से स्पर्श हो जाए।*
आप कोशिश करो जितने भी प्रेमी हो देश विदेश के कि ये रक्षा सूत्र जन्माष्टमी तक पहुँच जाए। एक हफ्ते का समय आपके पास है, कैसे भी आप इसको पहुंचवा दो। तो ये रक्षा सूत्र एक सप्ताह के अंदर आप लोग पहुंचा दो और वहां के सूत्रों से स्पर्श हो जाए और उसके बाद आप जगह जगह पर छुआते रहो उसी से और कार्यक्रम करते रहो।
*17. साप्ताहिक सतसंग, प्रभात फेरी शुरू कर दो।*
साप्ताहिक सतसंग जहाँ नहीं हो रहा हो वह भी आप चालू कर दो। जहाँ-जहाँ भी सतसंगी हैं सब जगह साप्ताहिक सतसंग चालू कर दो, प्रभात फेरी के लिए अभी इधर मौसम अच्छा हो जाएगा प्रभात फेरियां निकालने लग जाओ, शहरों में, कस्बों में, गाओं में जहाँ जैसी व्यवस्था बन सके। पूरे देश के, विदेश के लोगों के लिए एक आदेश से काम नहीं हो सकता है। अपनी-अपनी जगह पर आप लोग, अपने-अपने हिसाब से योजना बना लो और उस हिसाब से आप गुरु के काम को, नाम को आगे आप बढ़ाओ।
*18. गुरु महाराज के मंदिर निर्माण हेतु हुनरमंद लोग अपना नाम लिखा दो और सहयोग करो।*
हमको खबर लगी है कि जो गुरु महाराज का मंदिर बन रहा है बावल में उसके लिए आप लोगों ने योजना बनाई है कि हम लोग सेवा करने के लिए वहाँ जाएंगे। जिले के लोगों ने योजना बनाई, प्रांतों से लोगों ने योजना बनाई, वहाँ के जिम्मेदारों ने बांटा है कि एक-एक महीना ये लोग यहां पर आएँगे और सेवा करेंगे। तो सेवा के लिए और भी लोग जो आप हो नहीं नाम लिखाये हो, नाम लिखाओ, उसमे सहयोग आप लोग करो जिससे जल्दी से जल्दी गुरु महाराज का मंदिर बन करके तैयार हो जाए। कोई लकड़ी का काम जानते हो, लोहे का काम जानते हो, राज मिस्त्री हो, या और कोई जिसकी जरुरत है बिजली वालों की, तो ऐसे लोग आप समय निकालो। जो मेहनत कर सकते हो, शारीरिक परिश्रम कर सकते हो तो आप लोग भी कोशिश करो कि आपको भी सेवा का मौका मिल जाए।
हमेशा जब कोशिश करते रहोगे तो आप का भी नंबर वहाँ लग जाएगा। मान लो वहाँ पर नहीं है काम और उज्जैन में भी सेवा का मौका मिल जाता है जो आ जाते है, यहाँ भी कुछ न कुछ काम चलता रहता है हर तरह का, सेवा होती रहती है। इसके आलावा अन्य आश्रमों पर भी काम चल रहा है। कई जगहों पर निर्माण कार्य चल रहा है, जिस तरह से ये मंदिर है उस तरह के छोटे बड़े मंदिर बन रहे हैं क्यूंकि जगह-जगह बनाना पड़ेगा, एक जगह से काम नहीं होगा। एक बड़ा मंदिर तो वो अभी बन रहा है, छोटे-छोटे मंदिर और भी बनेंगे, कई जगहों पर बनाना पड़ेगा। शुरू में ही मैंने कहाँ था कई साल पहले कि जगह-जगह बनाना पड़ेगा।
*19. अपने घरों में और जहां जहां आश्रम हैं, वहां मंदिर बना लेना चाहिए।*
पिछले दिनों में मैंने कहा था कि अपने–अपने घरों में बना करके आप लगा लो, बहुत से लोगों ने आपने लगाया। अब भी गुरु का फोटो आपके घरों में लग जाना चाहिए और समझो कि ऐसी जगह पर लगना चाहिए, इस तरह से लगाओ कि मालूम पड़े कि वो अलग ही है, मंदिर की तरह से ही है, यहां तक बताया था लकड़ी का न बन पावे तो दीवार में ही मंदिर के आकार का ऐसे बना करके वहीं पर फोटो लगा दो, तो आप समझो कि ये तो सबके घर में होना ही चाहिए, बहुत से लोगों ने मंदिर भी बना करके लगाया। उसके बाद एक बड़ा मंदिर आप देखो, गुरु महाराज का चिह्न वहां देखो बनने लग गया, आप बहुत से लोग देख करके आए हो। उसकी नींव भरी जा रही है, ऊपर आ रहा है धीरे–धीरे बन रहा है, काम चल रहा है, तो इसी तरह से और भी बनाना पड़ेगा।
लेकिन अभी फिलहाल के लिए, ध्यान भजन के लिए जहां–जहां भी आश्रमों पर जगह पड़ी हुई है सब जगह आपको बना लेना चाहिए, जगह पड़ा रखने से मतलब क्या है, जगहें बहुत हो गई अपने यहां लेकिन उसका उपयोग होना चाहिए, तो वहां नहीं कुछ है तो एक ऐसा शेड ही बना लो, इसी तरह से फोटो रखने की जगह बना लो जैसे अन्य बहुत सी जगहों पर आपकी बन भी चुका है। आपके छत्तीसगढ़ में, राजस्थान में, और अन्य बहुत सी जगहों पर बन गया है, ऐसे आप लोग बना लो। फिर बाद में जैसा होगा देखा जायेगा, मालूम है कि संगतें छोटी हैं तो बड़ा काम नहीं हो सकता है, एक दूसरे की मदद से हो जाएगा लेकिन अभी जो भी जगह है आपके पास उसका उपयोग होना चाहिए, वहां कुछ न कुछ बन जाना चाहिए।
अब ये जरूर है, मान लो लोग धन की सेवा कर देंगे, दे देंगे लेकिन शरीर की सेवा करने वाले लोग कम मिलते हैं, तो मजदूर रखना पड़ता है, मजदूर तो मजदूरी करता है, अपना जैसा काम थोड़े ही करेगा और आप जब सेवा का संकल्प बनाओगे, सेवा के हिसाब से जाओगे, नहीं उज्जैन में सेवा का काम है शरीर की सेवा का, बावल में नहीं काम है और आपके प्रांत में ही कहीं बन रहा है वहीं चले जाओगे, सेवा करोगे तो आप मजदूरों से अच्छा तो करोगे ही क्योंकि आप अपना समझ करके करोगे, वो तो पांच बजे छुट्टी कर देगा, आप तो रात आठ बजे तक भी कर सकते हो क्योंकि आपका अपना काम रहेगा तो काम जल्दी हो जायेगा और अच्छा हो जायेगा। बराबर शरीर की सेवा का संकल्प बनाए रहो और बनवाते रहो लोगों को।
अब ये है कि कोई भी काम होता है उसमें धन की जरूरत होती है, उसको भी अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ न कुछ निकालते रहो, उससे ये काम बनेगा, ये काम घर का काम कैसे होता है? चुटकियों में होता है, चुटकी बजाने में होता है। भंडारे से लोग घबराते थे, कैसे भंडारे चलेंगे, किस तरह से व्यवस्था होगी और इन बच्चियों ने, माताओं ने हिम्मत किया कि भंडारा हम लोग चलाएंगे तो ये रोज चुटकी निकाल-निकाल करके भंडारा चलवाने लग गईं और जगह-जगह भंडारे देखो चल रहे हैं, बड़े बड़े तीर्थ स्थानों पर, धार्मिक स्थानों पर भी लोग पैकेट बना करके बांट रहे हैं तो ये सब कैसे चल रहा है? चुटकियों से चल रहा है।
ऐसे ये मंदिर भी चुटकियों से, मासिक सेवा से ही, महीने की आमदनी में से कुछ निकलने से ही ये सब बन जायेगा, हमको तो विश्वास है, गुरु पर विश्वास है, लक्ष्मी पर विश्वास है, लक्ष्मी किसको कहते हैं, रुपया पैसा को लक्ष्मी कहते हैं, इन पर विश्वास है कि ये कमी नहीं होने देंगे। बावल का भी बन जायेगा, जगह-जगह आश्रम है वहां भी बन जायेगा, आप समझो काम ये होगा, ऐसा नहीं है कि नहीं होगा लेकिन ये जहां भी होगा, दुनिया भी होगी, सब कुछ होगा लेकिन एक दिन बंदे हम नहीं होंगे।
*20. हमको विश्वास है कि आप जैसे हमारे प्रेमी बड़े से बड़ा काम करके दिखा सकते हैं।*
ऐसे हम उसमें महरूम रह जाएंगे, लोग उसमें महरूम रह जाएंगे, दूसरे लोग आकर के खड़े हो जाएंगे। अभी कह दिया जाए कि सब लोगों से ले सकते हो तो ऐसे-ऐसे लोग खड़े हो जाएंगे कि आपकी सेवा लेने ही नहीं देंगे। हम ही से कुछ लोग कहते हैं कि यह काम हमको दे दीजिए, मैं कहता हूं नहीं। आपको क्यों दे दें, हमारे बहुत प्रेमी हैं, सब मिलकर करेंगे। सबका मन लगेगा, सबका धन लगेगा, सब तन से सेवा करेंगे, सब मिलकर के करेंगे। जिससे सबके कर्म कटें, जिससे सबको लाभ मिले हमको तो वह काम करना है।
आपके हित का, आपके बच्चों के हित का काम तो हमको करना ही करना है, लेकिन उतना ही करना है जो आपके कोटे का हो। बाकी जनहित का काम हमको करना है, सबके हित का काम करना है, तो हम आपको आदेश क्यों दें। यह हमारे प्रेमी सब मिलकर के करेंगे और हमको तो विश्वास है कि आप जैसे हमारे प्रेमी बड़ा से बड़ा काम करके दिखा सकते हैं। लेकिन मन बनाने की, संकल्प बनाने की आपको जरूरत है।
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