जयगुरुदेव
18.08.2023
प्रेस नोट
लखनऊ (उ. प्र.)
*राजस्थान यात्रा वाले प्रसंग से समझाया सन्त त्रिकालदर्शी होते हैं, लोग समझ नहीं पाते, उनकी बात को काटना नहीं चाहिए*
*सुखी रहने के लिए शरीर से सेवा करनी चाहिए -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*
त्रिकालदर्शी यानी तीनों कालों (भूत, भविष्य और वर्तमान) को देखने जानने वाला, तो गहराई से समझने की बात है कि इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 दिसंबर 2017 उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
गुरु महाराज कहा करते थे कि दरवाजे तक ही रिश्ता रखो। मकान के अंदर मत घुसने दो। बहू-बेटियों को लोगों से दूर रखो। कोई आवे पानी पिला दो, रोटी खिला दो, लेकिन घर में घुसने मत दो। नाटक-नौटंकी करते हैं, घर में घुस जाते हैं, लोगों को प्रभावित कर देते हैं, रुपया-पैसा भी ले जाते हैं, बहन, बहू, बेटियों पर भी गलत नजर डालते हैं। देखने में तो पक्के सतसंगी, टाट भी पहन लेंगे, गुलाबी भी पहन लेंगे और खूब दौड़ करके सेवा करेंगे और खूब दौड़-दौड़ के मुख्य कार्यकर्ताओं के, हम लोगों के आगे-पीछे दौड़ेंगे लेकिन मौका पकड़ के लोगों को ठग लेंगे। तो अब संगत बहुत बढ़ रही है इसीलिए यह सब बातें आपको बता रहा हूं कि कहीं ठगी में न पड़ जाओ। आगे ठगी बहुत बढ़ेगी।
*सुखी रहने के लिए शरीर से सेवा करनी चाहिए*
महाराज जी ने 9 फरवरी 2020 दोपहर बावल रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि सुखी रहने के लिए शरीर से सेवा करनी चाहिए। जो कोई न करे, वह सेवा जो करता है, जिसको छोटी सेवा कहते हैं जैसे झाड़ू लगाना, टट्टी, नाली, बर्तन साफ करना, खाना बनाना आदि। लोग कहते हैं ये सेवा हम कैसे करें? हाथ में कालिख लग जाएगा, पसीना बह जाएगा। तेल में पूड़ी बनाने में शरीर का ही तेल निकल जाएगा। तो छोटी सेवा कोई करता है, वह सेवा मानी जाती है। शरीर से सेवा करनी चाहिए। मन से भी चिंतन करो कि कैसे गुरु महाराज का मिशन पूरा हो, अपना दिल दिमाग बुद्धि भी लगाओ। जो काम गुरु महाराज छोड़ कर के गए हैं, वो जल्दी से पूरा हो जाए, इस धरा पर ही सतयुग का प्रादुर्भाव हो जाए, लोग सुखी हो जाए।
*समय की जिसने कीमत लगाई वहीं पार हो गया*
महाराज जी ने 9 दिसंबर 2022 प्रातः बावल रेवाड़ी (हरियाणा ) में बताया कि जिसने न वक्त देखा न बेला, उसी का तो काम हो गया, उसी की तो (अंतर में) चढ़ाई हो गई। जब भी वक्त मिला तब ही याद कर लिया। समय की जिसने कीमत लगाई, वही पार हो गया। समय किसी का इंतजार नहीं करता है और समय निकलता जाता है। इसलिए कहा गया, एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध, जो भी समय मिले एक घड़ी, आधी घड़ी उसी में याद करना चाहिए। पलटू सुमिरन सार है, घड़ी न बिसरे एक। पलटू साहब ने कहा है कि प्रभु को एक घड़ी भी नहीं बिसारना चाहिए।
*सन्त त्रिकालदर्शी होते हैं, आगे की बात करते हैं, लोग समझ नहीं पाते*
त्रिकालदर्शी बाबा उमाकान्त जी ने 3 मार्च 2019 दोपहर लखनऊ यूपी में पुराने द्रष्टांत से गहरी बात समझाते हुए कहा कि एक बार गुरुजी राजस्थान की तरफ जा रहे थे। देखा आक/मदार लगे हुए हैं। वहां राजस्थान में बहुत रहते हैं। तो उनका चेला (साथ में) था। गुरुजी ने कहा, देख कितने बढिया आम लगे हुए हैं। बोला गुरु जी, यह आम नहीं, आक है। बोले कह दे आम है। अरे ऐसे कैसे कह दें जब ये आक है। थोड़ी दूर और गए। बड़ी-बड़ी घास लगी हुई थी। गुरुजी बोले, कितना बढ़िया गेहूँ लगा हुआ है। चेला बोला, गेहूँ नहीं, यह तो घास है घास। अरे बोले कह दे गेहूँ है। अरे ऐसे कैसे कह दें? जब वहां (रुकने के स्थान पर) गया।
देखो मनमुख और गुरुमुख अलग-अलग होते हैं। जो गुरु कहे, करो तुम सोई। अगर गुरु रात में कहे कि रात में उजाला है तो चाहे अंधेरा रहे तो कह दे कि उजाला है, वही हां कर देना चाहिए। क्योंकि गुरु को वही (आगे का भी) दिखाई पड़ता है और त्रिकालदर्शी होते हैं। भूत भविष्य वर्तमान सब देखते हैं। तो भक्तों को (आगे का) पता नहीं रहता है। नजदीक वालों को तो और ज्यादा धोखा हो जाता है। क्योंकि गुरु मनुष्य शरीर में रहते हैं, मानव जैसा व्यवहार करते हैं। व्यवहार मतलब- मनुष्य जैसा अन्न खाते हैं, टट्टी पेशाब करते, नहाते धोते हैं, मनुष्य जैसी बोली होती है तो उनको लोग मनुष्य ही समझते हैं।
और जो दूर वाले होते हैं, जिनको युक्ति (आत्म कल्याण के लिए नामदान) मिल जाती है, वो जब अंतर में दर्शन कर लेते हैं तो गुरु को समझ जाते हैं। तो (रुकने के स्थान पर) कोई साधक भगत था। पूछा, गुरुजी क्या कह रहे थे? चेला बोला गुरु जी आक को आम कह रहे थे आम और घास को गेहूं कह रहे थे। साधक ने कहा, अगर तू हां कह देता तो आक, आम हो जाता और घास, गेहूं हो जाती। ये होगा तो जरूर लेकिन अब समय लग जाएगा। महात्माओं की बात कभी गलत नहीं होती है। व्यथा न जाए देव ऋषि वाणी। सन्त वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्मांड। वह तो होना ही होना है। चाहे समय लग जाए लेकिन होना तो है ही। इस धरा पर ही सतयुग उत्तर आएगा, प्रेमियों! वह समय तो आएगा।
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Bahri taklifo me aram dilane wale baba umakantji maharaj |
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