जयगुरुदेव
16.08.2023
प्रेस नोट
जयपुर (राजस्थान)
*सन्त उमाकान्त जी ने बताया गुरु की दया के पात्र कैसे बने*
*सन्तमत में प्रमुख प्रार्थना सुमिरन ध्यान भजन का सही तरीका क्या है*
इस कलयुग में आये सभी सन्तों द्वारा जगाये गए सभी जीवों से कई गुना ज्यादा जीवों को जगाने वाले परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, समय के सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 12 जुलाई 2022 प्रातः जयपुर में भारी संख्या में देश-विदेश से आये भक्तों को दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज की विशेष दया से आप लोग आये हो। जब भी सामूहिक ध्यान भजन का अवसर मिले तो उसमें लग कर करना चाहिए। जब तक करोगे नहीं तब तक पता कैसे चलेगा। जो आदेश का पालन करे, गुरु जैसा बताये बिना बुद्धि लगाए, वैसा करे तब गुरु की पूरी दया मिलती है। अंदर के दरबार में हाजरी जरूरी है। भीख मांगते रहोगे तो देने वाले को भी दया आ जाती है।
*आप लोग आए नहीं, खींचे गए हो*
उधर से (दुनिया की) डोर ढीली की गई तब आप आये। कुछ लोग तो डोर खींचने पर भी नहीं आ पाए क्योंकि गुरु से ज्यादा महत्व धन, व्यापार, गृहस्थी को देते हैं। यदि गुरु से प्यार कर लिया जाए, सब कुछ उनको अर्पण कर दिया जाय तो गृहस्थी उनके गुरु के अंदर हो जाती है। फिर गुरु उसकी देख रेख करते हैं, उसके बच्चे को अपना बच्चा मानकर परवरिश करते हैं। संतमत में प्रार्थना सुमिरन ध्यान भजन प्रमुख हैं।
*प्रार्थना*
कुछ लेने के पहले प्रार्थना की जाती है। प्रार्थना ऐसी करनी चाहिए जो स्वीकार हो जाये। बाहर वाली की बजाय अंदरवाली अंदर से की गई प्रार्थना ज्यादा स्वीकार होती है। प्रार्थना के समय अंतर में गुरु के चेहरे को देखो। दुनिया की चीजें बीच में न आये। गुरु भाव को देखते हैं। भाव नहीं तो गुरु देखते हैं कि इसे अभी और अभ्यास की जरूरत है। जिसकी प्रार्थना की जाय उसका ध्यान किया जाय। संतमत में गुरु से प्रार्थना करना जरूरी होता है। जब भी प्रार्थना करो भाव से अंतर से याद करके करो तो स्वीकार हो जाएगी वरना समय ऐसे ही चला जाता है। गुरु का हाथ पकड़ते हो तो छोड़ देते हो इसलिए गुरु को अपना हाथ पकड़ा दो तो सब काम बन जाय।
*सुमिरन*
सुमिरन के समय बीच में कोई नहीं होना चाहिए। ध्यान बंट गया तो कबूल नहीं होगा। जब धनियों को याद करोगे तब वो खुश होंगे। अनजान में बने कर्म सुमिरन ध्यान भजन करते रहने से साफ हो जाते हैं। जब ज्यादा लालच बढ़ जाता है एक मकान के चार मकान, एक फैक्ट्री की चार फैक्ट्री हो जाय। बच्चे देखते हैं कि जैसे पिताजी स्वार्थी बन गए, जिस तरीके से कमाते हैं वैसे ही वो भी बन गए अब पानी भी नहीं पूछते।
*ध्यान*
पूरे शरीर की शक्ति को खींच कर एक जगह लाने को ध्यान कहते हैं। सफलता के लिए सब तरफ से ढीला करना पड़ता है, केवल गुरु से प्रेम करना पड़ता है। गुरु राजी तो कर्ता राजी, काल कर्म की चले न बाजी। जो तन मन से सच्चा रहे, तन से सच्चा होना मतलब जैसे झूठ न बोले, गुरु जो हिदायत दे (जिसके लिए मना करे) वो न करे। मन को ऐसी जगह न लगावे की गुरु छूटे। ध्यान करने से ताकत बढ़ती है तो मोटे कर्म के पर्दे जलने लगते हैं लेकिन रोज-रोज करोगे तब।
*भजन*
शब्द को पकड़ने का अभ्यास। गीता के चौथे स्कन्ध में लिखा है कि पूरे गुरु की खोज करो। उन्ही से काम होगा। आज आये हुए लोगों को नामदान के साथ बताया जाएगा कि दिव्य अनहद वाणी, गैबी आवाज, कलमा, आयतें, आकाशवाणी, वेदवाणी कैसे सुन सकते हो, भजन कैसे करना है।
*समर्थ गुरु की महिमा अकथनीय है*
व्यापार में बताया जाता है की ज्यादा लालच नहीं करना, साझा पार्टनरशिप में नहीं करना। अनुभव लेकर काम करना। जाहि विधि राखे गुरु, ताहि विधि रहिये। उसूल का पक्का दुश्मन मूर्ख नादान स्वार्थी मित्र से बेहतर है। उसूल के पक्के को काल राह बता देता है। जब विश्वास होगा तब आदमी लग जाता है। बहुतों को गुरु महाराज (स्वामी जी) ने अंतर में पहचान करा दिया कि अब ये (वक़्त के सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज) देखेंगे, ये करेंगे। अब तो साधना बहुत आसान बना दिया। अब तो केवल मन को ही कसरत कराते हैं। समय से जो आदमी चलता है वो पीछे नहीं रहता।
समर्थ गुरु को हाथ इसीलिए ही पकड़ाया जाता है कि कहीं कोई दिक्कत न आवे। गुरु को सर पर राखिये चलिए आज्ञा माही, कहे कबीर ता दास को तीन लोक भय नाहि। समर्थ गुरु को सर पर सवार रखने से तीनों लोकों में कोई भय नहीं रहता। जो कोशिश करता है दया भी उसी के घाट पर उतरती है। शरीर को स्वस्थ रखना भी जरूरी है तभी दुनिया और भजन का काम हो पायेगा। जयगुरुदेव बराबर बोलते रहो। इससे स्फूर्ति आएगी, आप दृढ़ता से कहोगे तो उसका असर पड़ेगा। गुरु का फोटो घर में लगाओ। मंदिर घर-घर में बनाओ, गुरु को याद करते रहो। मंदिर की सफाई, देख-रेख करो।
 |
समय के युगपुरुष |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev