जयगुरुदेव
11.07.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*सन्त उमाकान्त जी ने समझाया आत्मिक धर्म किसे कहते हैं*
*जब सतगुरु अपना काम शुरू करते हैं तो लोग जान (पहचान) जाते हैं*
सब जीवों पर दया करने वाले, आत्मिक धर्म का पालन करने वाले, धन सम्मान जमीन जायदाद की बजाय अपने गुरु द्वारा सौंपे आध्यात्मिक काम को ही महत्त्व देने वाले, अलग से एक्स्ट्रा आध्यात्मिक पॉवर से लेस, इस समय के प्रकट सन्त, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 8 मार्च 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
पुण्य पाप धर्म अधर्म क्या है? रोटी खिलाना, पानी पिलाना, कपड़ा दे देना, शरण दे देना आदि यह सब पुण्य कहलाता है। यह इधर (मृत्युलोक) का पुण्य है। और आत्मा का कल्याण करा देना, नाम दान दिला देना, नामदान समझा कर के सुमिरन ध्यान भजन करा देना, घाट पर बैठा देना, उसमें यदि कोई कठिनाई आती है, जानकारी है तो उसको दूर कर देना- यह सब आत्मिक धर्म है। दया धर्म से यह चीजें शुरू होती है। जब दया आती है कि इसके शरीर को बचा लिया जाए, इसे रोग तकलीफ न हो, आत्मा को बचा लिया जाए, नरकों में न जाने पावे, काटी सडाई गलाई न जावे, आत्म साक्षात्कार कराया जाए, अपने निज घर पहुँच जाए - ये आत्मिक धर्म होता है।
*महापुरुषों ने अपने आध्यात्मिक काम को ही महत्व दिया*
महाराज जी ने 31 अक्टूबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि यह जरूर है कि जड़ अगर हरी रहेगी, तने में थोड़ी भी जान रहेगी, कोई जानकार होगा कि इसकी सिंचाई गुड़ाई खाद पानी कैसे किया जाए कि इसमें शाखाएं निकाल आवे, फल लगने लग जाए, तो लग भी सकता है। और नहीं तो ऐसे तो सूखा पेड़ दिख रहा है। जितने भी महापुरुष हुए, देखो मिट्टी-पत्थर, जमीन को कोई महत्व नहीं दिए। वह तो बस अपने मिशन को ही आगे बढ़ाए। उन्होंने महत्व अपने आध्यात्मिक, धार्मिक काम को ही दिया और आगे बढ़ते चले गए। एक नहीं अनेक स्थान बन गए। एक नहीं अनेक जगह मिल गई। एक नहीं अनेकों आदमी इस काम को करने में तैयार हो गए। तो ये हम सबको याद करना है। पीछे के इतिहास को देख करके, हमको आपको आगे चलना है। विवाद में प्रेमियों कभी मत फंसना। चाहे संगत, संगत के लोगों या घर का हो। फंस गए तो दिमाग विवादी हो जायेगा।
*जब सतगुरु अपना काम शुरू करते हैं तो लोग जान जाते हैं*
महाराज जी ने 29 दिसंबर 2022 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सतगुरु इसी धरती पर कहा गया इसी धरती पर डोलते हैं, गाय भैंस चराते रहे। देखो इतिहास बता रहा है। खेत की जुताई मुडाई, घर का काम करते रहे, गृहस्थ आश्रम में तमाम ऐसे सन्त रहे, ऐसे ही घूमते रहते हैं। जब काम उनको मिल जाता है तो अपना काम शुरू करते हैं। उससे लोगों को फायदा लाभ मिलने लग जाता है, तब उनके उपर लोगों को विश्वास हो जाता है। फिर उनको लोग जान जाते हैं। नहीं तो बहुत से ऐसे आए और चले गए। जब अन्य युगों में अत्याचार पापाचार दुराचार कम था, उस समय पर गुप्त सन्त के रूप में आए थे और चले गए। लेकिन जब जीवों को ज्यादा तकलीफ मिलने लग गई, तो वहीं प्रकट रूप में आए और लोगों को बताने समझाने लगे और लोगों को अंतर का ताला खोलने की चाबी बताने लगे।
*जिनको आदेश होता है उनको पावर अलग से मिलता है*
महाराज जी ने 29 नवंबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि जब साधना करके अपनी आत्मा को जगाया, तब उनकी आत्मा वहां पहुंची तो उनकी जैसी हो गई। तो (अन्य) आत्माएं भी (निज घर) पहुंच जाती है लेकिन जिनको आदेश होता है, उनको पावर अलग से मिलता है। वह इस काम को करते हैं। वो जीवों को समझाते बताते हैं कि तुम यहां के नहीं हो। तुम यहां आकर फंस गये हो। तुम अपने घर, देश चलो। अपने पिता भाई बधुओं से मिलो, जिससे आपका खून का रिश्ता है, उनसे मिलो। यहां (मृत्युलोक में) आपका कोई नहीं है।
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सन्त उमाकान्त जी महाराज |
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