➽ चीन में एक मशीन है जिसको एक चक्कर दिया जाय तो वह हजार चक्कर खाती है। वे एक मंत्र लिखकर उसमें डाल देते हैं। जो कोई मन्दिर जाता है वह उसको दो चक्कर देकर खुश हो जाता है कि मैंने दो हजार बार मंत्र का जाप कर लिया।
➽ प्रेम का स्वाभाविक गुण एकाग्रता मय याद है। इसीलिए जहां प्रेम होगा वहां एकाग्रता होगी। एकाग्रता के बिना कोई शक्ति काम नहीं कर सकती।
➽ प्रेम एक इलाही कानून है जहां पर सब तर्क वितर्क हार जाते हैं और वहां ये बाजी मार ले जाता है। प्रेम को लोग अन्धा और बावला कहते हैं। क्योंकि प्रेम अंधों और दीवानों की भांति किसी की नहीं सुनता पर वह अन्धा नहीं वह तो सच्ची आंख वाला होता है। वह जिसको देखता है बस उसी को देखता है, और कहीं भी उसका ध्यान नहीं जाता। वह उसी एक को सब कुछ मानता और जानता है।
➽ गुरु में चैतन्य शक्ति अग्नि के समान होती है। गुरु की आंखों से चैतन्यता की धारें निकलती रहती हैं जिसका मुकाबला तलवार भी नहीं कर सकती। उनकी आंखों से जो प्रकाश की धार निकलती है वो मनुष्य के कर्मो को जला देती है साफ कर देती है।
➽ यदि मनुष्य दुःख तकलीफ बीमारी से बचना चाहता है तो उसे ग्रहस्थ जीवन में दो माह तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।
➽ आत्मा पर लदे कर्मो के बोझे के कारण साधक को आलस, सुस्ती नींद आती है।
➽ मनुष्य के गुनाहों को माफ करने का अधिकार केवल सन्तों को है और किसी को नहीं। सन्त कर्म बन्धन से परे हैं, समरथ होते हैं और जीवात्माओं को भी कर्म बन्धन से मुक्त कर सकते हैं। भगवान राम ने बालि को मारा तो द्वापर में उन्हें बहेलिए ने छिप कर मारा था। कर्म का बदला उन्हें चुकाना पड़ा था।
➽ बीमारी बुरे कर्मों के कारण होती है। बीमारी कर्मों के बोझ को हल्का करती है और कर्ज चुकाती है। जब बच्चा गंदा हो जाता है तो मां उसे साफ करती है, नहलाती है भले ही बच्चा कितना ही क्यों न रोये या चिल्लाये। जब गुरु बीमारी भेजते हैं तब वे हमें साफ करना चाहते हैं।
➽ परमार्थ कोई खिलवाड़ नहीं है। इसमें तन की धूल उड़ानी पड़ती है और मन को चूर चूर करना पड़ता है। इस कार्य को करना पड़ता है चाहे खुशी और रजामन्दी से किया जाये अथवा रोकर किया जाये।
➽ सन्तों का यह स्वाभाविक गुण है कि जो जीव जान में या अंजान में उनके शरीर से स्पर्श हो जायेगा अथवा जिस जानवर का दूध पी लेंगे तो सभी जीव मरने के पश्चात नर शरीर को प्राप्त होंगे.
- shakahari patrika 14 far. to 20 far. 2002
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