जयगुरुदेव
26.06.2023
प्रेस नोट
रेवाड़ी (हरियाणा)
*जल पृथ्वी अग्नि वायु और आकाश, मनुष्यों को कर्मों की सजा देने को तैयार खड़े हैं*
*कर्मों की सजा से वक्त के सन्त सतगुरु के अलावा कोई बचा नहीं सकता*
देवताओं को खुश करने का तरीका बताने वाले, लोगों के बद से बदतर होते कर्मों की वजह से कुदरत की बढ़ती नाराजगी और फिर मिलने वाली कड़ी सजा से समय रहते सबको आगाह करने वाले, उससे बचने का सरलतम उपाय भी बताने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, लोकतंत्र सेनानी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 20 जून 2023 प्रातः रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
थप्पड़ लगता है। सबको कर्मों के अनुसार सजा मिलती है। इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य शरीर को पाक साफ रखो, इसको गंदा मत करो। हाथ पैर आंख कान से गंदा काम मत करो और अपनी अंतरात्मा को भी साफ सुथरा रखो। इसके अंदर कोई ऐसी चीज (अंडा मांस मछली आदि) मत डालो कि जिससे तुम कुछ भी पूजा-पाठ करो, वह स्वीकार कुबूल न हो। ऐसा कोई काम न करो।
*पहले देवता खुश थे, अब नहीं हैं*
पहले जाड़ा गर्मी बरसात समय पर होती थी, लोग बड़े खुशहाल रहते थे। जिस चीज की आदमी इच्छा करता था, पूरी हो जाती थी। लेकिन अब उल्टा क्यों हो रहा है? पानी मांगते हैं तो ओला पत्थर गिर जाता है। गर्मी की जरूरत होती है तो सूरज ज्यादा तपने लगता है। ये इसलिए क्योंकि पवन पृथ्वी आकाश अग्नि देवता सब नाराज हैं। नाराजगी की वजह से ही तूफान, ऊंची लहरें आदि आती हैं। एक साथ दो-तीन देवता सजा देते हैं। जैसे समुंद्र में लहरें धीरे-धीरे उठती रहती हैं लेकिन पवन देवता को जब सजा देना होता है तो उसी लहर को तेज कर देते हैं और तीस-चालीस फुट ऊंची लहरें उठने लगती हैं।
वही पवन देवता का वेग (हवा) उन्हीं लहरों को दूर तक ले जाकर के पानी बरसा देता है, पेड़ों को गिरा देता है। हवा की तेजी से, पानी की तेज बरसात से बुनियादें ढीली हो जाती हैं। सबका भार लादने वाले धरती देवता भी ढीला कर देते हैं, मकान गिरने लगते हैं। यह देवता जब नाराज होते हैं तब यह सजा देते हैं।
*सजा दो तरीके की होती है*
एक हल्की सजा होती है, चेतावनी के लिए दी जाती है। जैसे बच्चे का कान कोई ऐंठ दे, डांट दे। और एक सजा ऐसी होती है जैसे कोई थप्पड़ डंडे से मारता है। अभी तो नाराजगी की वजह से प्रकृति यह हल्की-फुल्की सजा दे रही है। ज्यादा नाराज होने पर धरती धंस (हिल) जाती है, हवा की गति इतनी तेज हो जाती है कि दशकों पहले की याद करोगे तो आपको मालूम पड़ेगा कि आंध्रा में हाथी तक उड़ने के समाचार थे। इतनी तेज हवा चली थी। सोचो आदमी का, पेड़ों का क्या हाल हुआ होगा। सुनामी ला देते हैं।
*देवता नाराज क्यों होते हैं*
जब लोग इनके नियम के खिलाफ काम करने लगते हैं। जैसे आपका समाज बिरादरी जाति जिला सरकार का नियम है, जिनका पालन नहीं करने पर यह सजा देते हैं। पंच प्रधान, मुखिया, घर का मुखिया सजा देता है। अपने ही बच्चे औलाद को बात न मानने पर, नियम कानून न मानने पर, घर से निकाल देता है, मारता-पीटता भी है, लड़का ज्यादा अपराधी हो जाता है, जेल में बंद हो जाता है तो कहता है पड़ा रहने दो, जमानत नहीं कराएंगे।
जब जेल में नहीं मिलेगा तो कम से कम नशा तो छूट जाएगा। नशाखोरी इतनी बढ़ती जा रही है कि यह जो नशा वाले अपराध करते हैं, पकड़े जाते हैं, जेलों में जाते हैं तो नशा न मिलने की वजह से दीवार पर माथा पटकते हैं। इतनी बेचैनी तड़प, परेशान हो जाते हैं। लेकिन जब कोई चीज नहीं मिलेगी तो छूट तो जाएगा। इसीलिए घर का मालिक कहता है बच्चे का नशा तो छूट जाएगा, जेल में ही बंद करवा दो।
*मांस खाने से बने खून से पूजा-पाठ कबूल नहीं हो रहा*
पूजा-पाठ शरीर से ही तो करते हैं। जहां देवता मान करके जाते हैं, हवन करते, फूल पत्ती हाथ से चढ़ाएंगे, मुंह से श्लोक प्रार्थना बोलेंगे लेकिन कबूल क्यों नहीं होती? पूजा-पाठ कबूल होती, देवता खुश रहते तो इतनी तकलीफ न होती, सजा न देते। कर्मों की तकलीफ सन्तों सतगुरु समरथ गुरु के अलावा कोई काट नहीं सकता है। लेकिन अगर देवता खुश होते तो कम से कम ऐसे सजा तो न देते, जीवन में बाधा तो न डालते। लेकिन यह मानव मंदिर ही गंदा (कर लिया) है। तो इससे किया पूजा-पाठ स्वीकार नहीं करते हैं। क्योंकि जो चीज खाते हैं, उसी का खून बनता है। जो मांस खाएगा, उसका खून बनेगा।
खून शरीर के अंग-अंग में है। ख़ून गन्दा, मनुष्य शरीर रूपी मंदिर गंदा, हाथ-पैर गंदा है। इससे की गयी पूजा-पाठ कबूल नही होती है। तीर्थों में जाते हैं, ग्रंथ का पाठ पढ़ते हैं, बड़े-बड़े यज्ञ करते हैं लेकिन यह देवता खुश नहीं होते हैं। देने वाले देवता खुश नहीं होते और न देने वाले को देवता मान लेते हो तो वह कहां से देंगे? देने वाले यही, पांच देवता देते हैं। जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश। यही मुख्य हैं। यही देते हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश तो सृष्टि को चलाते हैं। ब्रह्मा उत्पत्ति, विष्णु पालन और शिव संहार का काम करते हैं। ये सब देवता इन्हीं के अधीन हैं। बाकी कई करोड़ देवता शंभू आदि ये ऊपरी लोको में रहते हैं। नीचे के लोको में सबसे पहले धरती है।
पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश। इनकी उत्पत्ति भी इसी तरह से हुई है। प्रलय का वर्णन करते हुए महाराज जी ने बताया कि जितने भी हैं, इन्हीं तत्वों से बने हैं। जब प्रलय होता है तो एक दूसरे में यह समाते चले जाते हैं। धरती पानी में समा जाती है। सब पानी ही पानी हो जाता है। फिर पानी को अग्नि शोषण करती है। फिर अग्नि को वायु। आसमान अग्नि का शोषण कर लेता है और पांचो तत्व यहां से खत्म हो जाते हैं और सृष्टि खत्म हो जाती है। फिर यह कोई नहीं रहता है। मुख्य बात आप समझो, इस मनुष्य को साफ सुथरा रखना चाहिए, शाकाहारी नशामुक्त बनो।
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