*जीवन की समय सारणी बनानी चाहिए - बाबा उमाकान्त जी*

जयगुरुदेव

01.04.2023
प्रेस नोट
सीकर (राजस्थान)

*जीवन की समय सारणी बनानी चाहिए - बाबा उमाकान्त जी*

*परमार्थ और स्वार्थ किसे कहते हैं*

*अब रोज बैठने, इकट्टा होकर साधना करने की जरूरत है*


परमार्थ करने के लिए ही ये मनुष्य शरीर धारण करने वाले, दूसरों के लिए खुद तकलीफ झेलने वाले, अंतर साधना की बारीकियां समझाने वाले ताकि साधना में कनफ्यूज़न न हो, एक-एक मिनट का सदुपयोग करने की शिक्षा देने वाले, दुनिया के प्रपंच को कुछ समय के लिए भूल कर अपनी आत्मा के लिए सच्चा काम करने की याद दिलाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 2 अक्टूबर 2021 प्रातः इदौर (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

रमार्थ और स्वार्थ किसे कहते हैं? एक रोटी किसी को खिलाओ और उसके यहां जा करके दो रोटी की खाने की इच्छा रखो तो वह स्वार्थ होता है। परमार्थ वो जिसमें किसी को रोटी खिला दो और बदले में उससे कोई इच्छा न रखो। ऐसे को खिलाओ जो आपको कभी खिला न पावे, वह होता है परमार्थ। परमार्थ के कारने सन्तन धरा शरीर, वृक्ष कबहु न फल भखे, नदी न संचय नीर। पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता, नदी अपना पानी स्वंय नहीं पीती, ऐसे ही सन्त अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए तकलीफ झेलते हैं। वो भी मां के पेट से बनकर बाहर निकलते हैं। कोई कहे कमल से पैदा हो गए, सीधे पैदा हो गए, जमीन फाड़कर निकाला आये, प्रकट हो गए, आदि ये सब गलत बात है। पैदा होने का सिस्टम सबके लिए एक ही है।

*जीवात्मा का खिंचाव किस तरह से होता है*

महाराज जी ने 1 अक्टूबर 2021 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि जहां सुरत को शब्द ने खींचा, (यह शरीर से निकली) और ऊपर की तरफ यह गई तहां ये मन ढीला पड़ने लगेगा। ब्रह्म स्थान पर मन का साथ छूट जाएगा। एक-एक लोक में जाने के बाद वह शब्द छोड़ देगा और दूसरा शब्द पकड़ लेगा, खींच लेगा। फिर तीसरा फिर चौथा फिर आप पहुंच जाओगे सतलोक। 

जैसे-जैसे सुरत नीचे उतरती गई, शब्दों को छोड़ती गयी। जो आवाज़ें आपको नाम दान में बताई, उन आवाज को छोड़ती गई। छोड़ते-छोड़ते यहां आकर के जीवात्मा आवाज/शब्द विहीन हो गई। शब्द चुम्बक की तरह खींचता है। तो प्रथम स्थान का शब्द उसे खींचेगा। फिर दूसरे स्थान की आवाज, फिर तीसरे फिर चौथे, ऐसे निकल जाएगी। फिर देर नहीं लगती है। गुरु की दया बीच-बीच में होती रही, गुरु को याद करते रहे तो वो मदद करते रहते हैं। यहां के भी मददगार होते हैं और वहां के भी मददगार होते हैं लेकिन जब गुरु भक्ति आ जाए, उनके आदेश का पालन आ जाए तब।

*जीवन की समय सारणी बननी चाहिए*

महाराज जी ने 11 अगस्त 2021 सायं सीकर (राजस्थान) में बताया कि जीवन के समय की सारणी यानी टाइम टेबल बनाना चाहिए। जैसे पहले लोग बनाए रखते थे। सुबह उठना, शौच जाना, नहाना-धोना, पूजा-पाठ करना, फिर अपने गृहस्थी चलाने के काम जैसे खेती दुकान दफतर में नौकरी आदि करना ही, वो करते थे। रूटीन जीवन की होती थी। इतना समय तक हम घर का काम करेगें, गृहस्थी देखेंगे, पन्द्रहवें दिन महीने में एक बार सन्तों के, महात्माओं के आश्रम पर जाएंगे, कुछ सुनेंगे समझेंगे जानेंगे जिससे हमारी यह गृहस्थी ठीक से चले, गृहस्थ जीवन स्वर्ग जैसा सुखी रहे।

*अब रोज बैठने इकट्टा होने की जरूरत है*

महाराज जी ने 21 दिसंबर 2022 प्रातः बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा ) में बताया कि यह कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित क्यों किए जाते हैं? महात्माओं ने क्यों आयोजित किया कि कम से कम उस दिन गुरु, कुछ अच्छी बातें याद तो आएगी, उतनी देर के लिए दुनिया की तरफ से उदासीनता आएगी, उतनी देर के लिए घर मकान धन दौलत पुत्र परिवार भूलेगा तो। उसके लिए पहले 15 दिन में, एक महीने में एक बार लोग जाते बुलाये जाते थे, तीज त्योहार के दिन जाते थे। 

अब तो रोज बैठने, इकट्ठा होने की जरूरत है। जिससे कम से कम उतनी देर सामूहिक ध्यान भजन के स्थान पर बैठा तो जाए, एक जगह इकट्ठा तो हुआ जाए। इसमें जो साप्ताहिक सतसंग आप लोग करते हो उसमें इस बात का ध्यान रखो कि केवल परमार्थी, केवल भजन ध्यान सुमिरन से संबंधित बात ही आप करो। दुनिया का पर प्रपंच थोड़े समय के लिए आप भूलो।







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