*हमारे पूज्यनीय बाबाजी जयगुरूदेव जी महाराज*
जिन्होंने सन १९५२ मे सत्संग की शुरुआत की थी । काशी मे एक प्रकांड पंडित विद्वान था जिसका प्रभुत्व पूरी काशी मे था ।
उसको बुलाकर गुरु महाराज ने कहा -
अरे बच्चा जीते जी भगवान से मिलना चाहता है, अबकी बार माँ के गर्भ मे नही आना चाहता है, इसी जन्म मे निज धाम पहुँचना चाहता है,
तो पंडित जी ने कहा साधू जी महाराज जरूर ऐसा काम करूँगा। मुझे अभी तक कोई ऐसा महात्मा नही मिला ।
*बाबा जयगुरूदेवजी* ने कहा कि बच्चे बैठ और सामने देख और नामदान गुरु महाराज ने दिया और भजन पर बैठाया और पूछा कुछ अनुभव हुआ और पंडित को जब मस्ती आई तो एक-एक नाते रिश्तेदार को लाया, कुटुम्ब परिवार को लाया, इष्ट मित्रों को लाया ।
इस प्रकार एक से संगत ने नाले का रूप लिया
फिर नदी का और फिर समुद्र का रूप धारण कर लिया ।
आज तो संगत भानुमति का कुनबा, शिवजी की बारात हो गई । यानि मार्च २०१२ तक बाबाजी ने करोड़ो लोगो को जीते जी प्रभु दर्शन कराया ।
*बाबा जयगुरूदेव जी महाराज*
इस कलयुग के ऐसे सन्त थे जिनकी आध्यामिक शक्तियां अपार थी ।
बाबा जी का कहना था कि परमात्मा है और इसी मनुष्य शरीर मे मृत्यु से पहलेे मिल सकता है, उसके दर्शन हो सकते हैं ।
आध्यात्मिक साधना के द्वारा मनुष्य जान सकता है कि वह कोन है, कहाँ से आया और मरने के बाद जीवात्मायें कहाँ जाती हैं ।
जिसने खुद को जान लिया, वही खुदा को जान सकता है ।
जीवों को चेताने और उन्हें प्रभु प्राप्ति के मार्ग मे लगाने वाले महान सन्तों की परम्परा मे
*बाबा जयगुरूदेव जी* महाराज का स्थान महत्वपूर्ण है।
बाबाजी का उद्देश्य शुद्ध परमार्थ है, अर्थात् जीवन का परम् लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है।
यह केवल मानव शरीर मे संभव है क्योंकि मनुष्य शरीर मोक्ष का द्वार है।
इसी शरीर मे साधना की जा सकती है।
इसी शरीर मे आत्मा को जगाकर परमात्मा के पास पहुँचाया जा सकता है।
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Jaigurudev