गर्भगीता (श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद) 1.

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश

श्री गर्भगीता
(श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद)

अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण! यह प्राणी जो गर्भ में आता है सो किसा दोष के कारण आता है? जब यह जन्मता है तब इसको जरा आदिक रोग लगते हैं तरह तरह के दुख भोगता है, बुढ़ापे के कष्ट सहता है, फिर इसकी मृत्यु होती है।
हे स्वामी! वह कौन से कर्म हैं जिनके करने से प्राणी जन्म मरण से पा सके ?

श्रीकृष्ण उवाच- हे अर्जुन! यह जो मनुष्य है सो अन्धा व मूर्ख है जो संसार के साथ् प्रीति करता है। यह पदार्थ मैंने पाया है और पाऊंगा, ऐसी चिन्ता इस प्राणी के मन से उतरती नहीं, आठों पहर माया को ही मांगता है और गर्भ वास के दुःख पात है।

अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण! यह मन मदमस्त हाथी की तरह है और तृष्णा इसकी शक्ति है। यह मन, काम, क्रोध, लोभ मोह और अहंकार के वश में है तथा इन पांचों में अहंकार सबसे बली है। सो, कौन से यत्न हैं जिससे मन वश मे होय।

श्रीकृष्ण उवाच- हे अर्जुन! यह मन निश्चय ही हाथी की तरह है। तृष्णा इसकी शक्ति है। मन इन पांचों के वश में है। अहंकार इनमें श्रेष्ठ है,  अर्जुन जैसे हाथी अंकुश से वश में होता है, वैसे ही मन रूपी हाथी को वश में करने को ज्ञान रूपी अंकुश हैं अहंकार करने से यह जीवन नरक में पड़ता है।

अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण! कुछ तुम्हारे नाम के लिए वैरागी हए वनखण्डों में फिरते हैं और कुछ धर्म करते हैं। इस विषय में कैसे मालूम पड़े कि जो वैष्णव हैं, वे कौन हैं?

श्रीकृष्ण उवाच-हे अर्जुन! जो मेरे नामके लिए वनों में फिरते हैं, वे सन्यासी कहलाते हैं और जो सिर पर जटा बांधते हैं तथा भस्म लगाते हैं उनमें भक्ति नहीं हैं क्योंकि वे अहंकार से ग्रसित हैं। इनको मेरा दर्शन दुर्लभ है।

अर्जुन उवाच- हे श्रीकृष्ण ! वह कौन सा पाप है जिससे स्त्री मर जाती है ? वह कौन सा पाप है जिससे पुत्र मर जाते हैं? और व्यक्ति नपुंसक किस पाप से होता है ?

श्रीकृष्ण उवाच- हे अर्जुन! जो किसी से कर्ज लेता है और देता नहीं, इस पाप से उसकी स्त्री मर जाती है और जो किसी की अमानत नहीं लौटाते उनके पुत्र मरते हैं। जो किसी का कार्य करने का वचन देकर भी उसका कार्य समय पर नहीं करे तो इस पाप से नपुंसक होता है, ये सब बड़े पाप हैं।


गीता ज्ञान 


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