जयगुरुदेव
21.02.2023
प्रेस नोट
सूरत (गुजरात)
*सुभाष चन्द्र बोस के प्रसंग से बाबा उमाकान्त जी ने समझाया- परोपकार बहुत बड़ा धर्म है*
*आखिरी वक्त पर सन्तों की पावर खींच ली जाती है तब पावर कैसे ट्रांसफर होती है*
*आगे चलकर जयगुरुदेव नाम का पंथ बन जाएगा*
इतिहास की पूरी और सही जानकारी रखने-बताने वाले, परोपकार करने के लिए प्रेरित करने वाले, सतपुरुष के हुकुम से बाबा जयगुरुदेव जी महाराज जिनको अपनी पॉवर, अपना चार्ज देकर गए, जिनके साइन करने से ही अब कोई सी भी फाइल आगे बढ़ेगी, चाहे कोई कितनी भी अपनी सीमित भौतिक बुद्धि लगा ले, कितना भी तर्क-कुतर्क कर ले लेकिन जो ही अब सबके धणी-धोरी हैं, ऐसे पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, अन्तर्यामी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 सितंबर 2021 सायं सूरत (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
जब अंग्रेज हिंदुस्तान में राज्य कर रहे थे, हट नहीं रहे थे, आजादी की लड़ाई शुरू हो गई थी तो सुभाष जापान गए थे। वहां पर लोगों को इकट्ठा करके आवाज लगाया, मदद मांगा कि हमको कोई देश को आजाद कराने के लिए मदद दे दे। लोगों ने पूछा क्या मदद की जरूरत है? उन्होंने कहा हमको एक नौजवान चाहिए जो अपनी जान की कुर्बानी दे दे। एक लड़का खड़ा हुआ, कहा अपने देश के लिए सब कुर्बान होते हैं, रखवाली करते हैं, सीमा पर जान दे देते हैं। चल मैं तेरे भारत देश के काम आऊंगा। सुभाष ने पूछा तेरे घर में और कौन-कौन है? बोला केवल एक बूढ़ी मां। बोले तेरी मां ही तेरे इस अच्छे काम में बाधा बनेगी। तुझको वह नहीं देगी। दिल दुखा कर हम तुझे ले जाना नहीं चाहते हैं। देखो
*सहज मिले सो दूध सम, मांगे मिले सो पानी, कहे कबीर वा रक्त सम जामें खिंचा तान*
कहते हैं- सहज में मिली चीज दूध के समान, मांगने से मिले तो पानी और खींचातानी जोर जबरदस्ती से तकलीफ लेकर अगर ले लो तो वही चीज खून की तरह हो जाती है। तो कहा हम तुझे ऐसे नहीं ले जाएंगे। तब वह मां के पास गया और बोला कि मां तू अगर न होती तो मैं भारत देश के काम आ गया होता। तो मां ने कहा, जा उठा ला तलवार, काट देती हूं अपने सिर को, ले जाकर के सुभाष के सामने रख देना और कह देना अब मेरी मां नहीं रही, चल मैं तेरे भारत देश के काम आ जाऊंगा। उसने तो नहीं काटा लेकिन मां ने खुद काट दिया। ऐसे-ऐसे परमार्थी हुए हैं कि कबूतर के बदले में खुद बैठ गए थे तराजू पर कि इसके बदले हमारा मांस काट लो, दाधीच ने अपनी हड्डी का दान देवासुर संग्राम में दे दिया था। तब आप उस चीज को समझो, परोपकार बड़ा धर्म होता है।
*आखिरी वक्त पर सन्तों की पावर खींच ली जाती है*
फिर वह पावर दूसरे के पास दे देते हैं। सन्त (अपनी) आत्मा को आराम से निकाल लेते हैं और सतपुरुष के हुकुम से वो पॉवर दूसरे को काम करने के लिए दे देते हैं। वो साधारण रूप में ही पैदा होते हैं लेकिन चूँकि वह ऊपर से भेजे जाते हैं, इसलिए उनके संस्कार ऐसे होते हैं कि वक़्त के सन्त की एक ही आवाज पर, किसी भी बात पर उनकी तरफ खींच जाते हैं। वक्त के सन्त हमेशा धरती पर रहे। कभी गुप्त रूप में एक जगह बैठ कर संभाल करते रहे और कभी प्रकट रूप में आकर के लोगों की मदद, भलाई किए लेकिन हमेशा इस धरती पर सन्त रहे। घिरी बदरिया पाप की, बरस रहे अंगार, सन्त न होते जगत में, जल मरता संसार।
*सन्तों की पावर कैसे ट्रांसफर होती है*
गुरु की पहचान अंतर में होती है। हाड़-मांस के शरीर का नाम गुरु नहीं होता है। गुरु पावर होती है। जिसको जब तक के लिए पावर मिलती है तब तक वह काम करते हैं। समय पूरा होने पर वह पावर (सतपुरुष) दूसरे को उन्हीं के द्वारा दिलवा देते हैं कि अब इनको चार्ज दे दो। एक अधिकारी को रिटायर करते हैं तो उसी के द्वारा दूसरे को चार्ज दिलवा देते हैं। तो वही अधिकारी लोगों को बुलाकर, परिचय करा देता है कि अबसे यह तुम्हारे साहब रहेंगे, ये तुम्हारी देखरेख करेंगे, तुमसे काम करायेंगे, तुम्हारी तनख्वाह बटवाएंगे, इनके दस्तखत से ही तुमको मजदूरी, काम मिलेगा, पूरा चार्ज दे करके फिर वह जाता है, ऐसे ही। दिलवाता कौन है? जो उस विभाग का बड़ा अधिकारी होता है। ऐसे ही सारी दुनिया संसार अंड पिंड ब्रह्मांड का मालिक सतपुरुष, वो यह सब सन्तों के द्वारा करवाते हैं। तो पहचान कैसे होती है सन्तों की? जब अंतर में उनके रूप को देखते हैं।
*आगे चलकर जयगुरुदेव नाम का पंथ बन जाएगा*
यह जयगुरुदेव नाम है। आगे चलकर के इसका भी पंथ बन जाएगा क्योंकि अभी देख लो, बहुत सारी शाखाएं हो गई हैं। और जब ज्यादा शाखाएं हो जाती है, तरह-तरह के स्वार्थी लोग उसमें घुस जाते हैं तो नाम बदनाम भी कर देते हैं। आप देखो सन्तों के साथ ज्यादातर यही हुआ, सन्तों के स्थान, नाम बदनाम हो गया। समझ लो।
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DUKH HARTA BABA UMAKANT JI MAHARAJ |
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