साधना की उत्तम शिक्षा

जयगुरुदेव 

साधक को साधना में क्या सावधानियां रखनी चाहिए 


𐄫  साधकों को चार घण्टे सोना चाहिए। चार घण्टे में नींद पूरी हो जाती है। जिनकी साधना बनने लगती है, अनुभव होने लगते हैं उनके लिए दो घण्टे का समय ही पर्याप्त है।

𐄫  मैं तुमको चाहता हूं,  तुम भी चाहने लगो तो काम न बन जाय। प्रेम हो जाय तड़प हो जाय तो रास्ता आसान हो जाता है। इसलिए विरह, अंग लेकर भजन करना चाहिए।


𐄫  साधकों को मन की चाल में नहीं बहना चाहिए। अगर बह गये तो सुमिरन ठीक से नहीं होगा। सत्संग के वचन याद रक्खोगे तब बचोगे वर्ना वह जाओगे।


𐄫  दोनों आंखों के ऊपर अन्तःकरण में कर्माें का पर्दा तो मन ने इकट्ठा किया हैं अब जब ध्यान मे भजन में मन जीवात्मा का साथ दे तब पर्दों की सफाई होगी। घण्टे की आवाज को सुनने से कर्मों के पर्दे फुलझड़ी की तरह झड़ते चले जाते हैं।

𐄫  जब प्यार और भाव के साथ प्रार्थना की जाती है तब मालिक सुनता है और दया करता है। जीवात्मा का हृदय आंखों के ऊपर है और हरा-भरा हो जाता है। शरीर का हृदय नीचे की ओर है।

𐄫  आलस छोड़कर भजन करो। सुबह उठते ही फिर सो जाते हो अच्छी बात नहीं। आलस छोड़ दो और भजन करने लगो तो काम बनने लगेगा।

𐄫 भजन करोगे फिर जो कमाओगे उसमे बरक्कत मिलेगी। नहीं करोगे तो बरक्कत नहीं होगी।


𐄫  तीसरे तिल अथवा सहसदल कंवल का दृष्टिगोचर होना और स्थिर होना सरल बात नहीं है । क्योंकि यह स्थान बैराट स्वरूप और ब्रह्म के हैं। इतने शीघ्र इन स्थानों को देखना और स्थिर रहना कठिन है।
किन्तु कभी कभी उनके स्वरूप अथवा झलक दिखलाई देना और घण्टे का शब्द सुनाई देना यह भी बड़े भाग्य की बात है। शनैः शनैः शब्द भी स्पष्ट और समीप प्रतीत होता जायेगा और यदा कदा स्थान का स्वरूप भी दिखाई देगा।

𐄫 यदि कोई ध्यान में अपने मन और सुरत को प्रथम अथवा द्वितीय स्थान पर जमावे और थोड़ी देर तक स्थिर रखे तो उसे चाहे कुछ दिखाई दे अथवा नहीं, सिमटाव और चढ़ाई का रस तो उसे अवश्य ही प्राप्त हो जायेगा।

𐄫 इसी भांति जो ध्यान और भजन के समय अपने मन और सुरत को मोड़ देगा और जहां से ध्वनि आ रही है वहां धीरे धीरे पहुंचावेगा तो उसे भजन का आनन्द अवश्य आवेगा।

𐄫 अतएव उचित है कि ध्यान और भजन के समय संसार के विचार छोड़कर अपने मन और सुरत को प्रथम स्थान पर स्थिर करें। यदि वहां से उतर आवें तो पुनः उन्हें वहां पहुंचावे और स्थिर करें।
इसी प्रकार बारम्बार करें तो थोड़ा बहुत शब्द भी सुनाई देगा और रूप भी दिखाई देगा। सिमटाव और चढ़ाई का जो आनन्द है वह भी अवश्य मिलेगा।

𐄫 विचार करना चाहिए कि भजन और ध्यान के समय संसार के विचारों को मन में उठाने से सच्चे प्रभु का अत्यन्त अपमान और निरादर होता है।

𐄫 यदि कभी भजन या ध्यान के समय शरीर में कुछ शिथिलता प्रतीत होने लगे तो उठकर दो चार पग टहले और फिर बैठ कर अभ्यास करें।


𐄫 जिसको गुरुदेव का भक्त बनना है उसको अपना हृदय सदा शुद्ध करना चाहिए और नित्य एकांत में ध्यान और भजन यानि शब्द का अभ्यास करना चाहिए कि हे गुरु, ऐसी कृपा करो जिससे मैं तुम्हें हर समय देखकर कुछ भी वासना उठने और रहने न दूं। 

𐄫 तुम हृदय रूपी देश में अपना स्थिर आसन जमा लो जिससे पल पल मैं तुम्हें निरखता रहूं और तुम्हारा आनन्द लेता रहूं।

जयगुरुदेव

Yug mahapurush baba Jaigurudev ji maharaj 



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