हर युग हर समय का भगवान का नाम अलग-अलग होता है

जयगुरुदेव

17.11.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)    


*प्रचारकों को एक जगह रुकना नहीं चाहिए*

*हर युग हर समय का भगवान का नाम अलग-अलग होता है*

*नाम दान देने का अधिकार अक्सर गुरु अपने पास रखते हैं*

*गुरु हर काम का श्रेय अपने गुरु को देते हैं*


निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 3 अक्टूबर 2022 प्रातः सीकर (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु का वाक्य ही मंत्र होता है। यही हमारा मंत्र है कि गुरु के आदेश का पालन करो। उसकी मदद कौन करता है गुरु करते हैं। गुरु महाराज के गुरु महाराज ने उनकी बहुत मदद किया। करते सब गुरु महाराज थे, पूरे सक्षम थे, पूरे सन्त थे लेकिन अपने गुरु महाराज (दादा गुरु जी) को ही श्रेय दिया करते थे। कोई भी काम करना होता था तो कहते थे गुरु महाराज की दया होगी तो हो जाएगा। गुरु महाराज की कृपा से यह हुआ, गुरु महाराज की मौज - यही कहा करते थे। हमको तो चालीसों साल गुरु महाराज ने नजदीक रहने का अवसर दिया। जब पहुंचा था तब मैं कुछ भी नहीं जानता था। सब गुरु महाराज ने सिखाया। अपने बच्चों को कोई क्या सिखाएगा, पढायगा, ध्यान रखेगा जितना उन्होंने किया। आपके सामने बोलने लायक, कुछ करने लायक गुरु महाराज ने ही बनाया है। कहते हैं न डांटते फटकारते भी हैं तो जैसे धोबी कपड़े को पटक कर धोता, निचोड़ कर गंदगी निकालता है तो तकलीफ तो होती है उस समय पर लेकिन भलाई के लिए ही। गुरु ऐसा नहीं करते हैं कि कपड़ा बिल्कुल फट ही जाए, पहनने लायक ही न रह जाए। कहा गया है- 
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर मारे चोट॥
घड़ा बनाते समय कुम्हार बाहर से चोट मार-मार के सुंदर सुडौल बनाता है लेकिन अंदर हाथ लगाए रखता है कि घड़ा टूट न जाए। तो करते सब गुरु महाराज थे, श्रेय दूसरों को देते थे।

*नाम दान देने का अधिकार अक्सर गुरु अपने पास रखते हैं*

सतगुरु मां के पेट में ही बनते बाहर निकलते हैं। इसी धरती पर आसमान के नीचे रहते हैं। यही अन्न जल खाते पीते हैं लेकिन पूरे गुरु को खोज करके अपनी आत्मा को जगा लेते हैं। जब गुरु आप सामान उनको बना लेते हैं तब आदेश देते हैं कि अब तुम जाओ, जीवों का काम करो। फिर वह उस काम को करने लगते हैं। कभी ऐसे लोग गुरु की मौजूदगी में भी रहते हैं लेकिन वो गुरु के आदेश का पूरा पालन करते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि गुरु जब तक रहते हैं तब तक नामदान देने का अधिकार अपने पास ही रखते हैं। यह भी देखा गया है कि उनके बहुत शिष्य रहते हैं लेकिन नाम देने का अधिकार केवल एक ही को देते हैं और बता करके जाते हैं कि (हमारे बाद) यह नाम दान देंगे, संभाल करेंगे। अब हमारा शरीर छोड़ने का समय आ गया है लेकिन जिम्मेदारी इनको दी जाती है।

*हर युग हर समय का भगवान का नाम अलग-अलग होता है*

महाराज जी ने 28 सितंबर 2022 प्रातः सोनीपत (हरियाणा) में दिए संदेश में बताया कि जब राम ने कहा पत्थर पर राम-राम लिख कर पानी में डालो। सारे पत्थर तैरने लगे क्यौंकी उस समय राम नाम में शक्ति थी। जब कृष्ण आये, कृष्ण नाम में शक्ति आई। कृष्ण-कृष्ण जिसने जहां पर पुकारा कृष्ण खड़े हुए मिले। द्रोपदी को, गृह को उबारा। तमाम ऐसे उदाहरण है। जब सन्त आए तब कबीर साहब ने सत साहेब नाम जगाया। नानक साहब ने वाहेगुरु नाम जगाया। गुरु के जलवे को जब अंदर में देखा तब उछल पड़े, वाहेगुरु वाहेगुरु, वाह रे मेरे गुरु। तो उन्होंने वाहेगुरु नाम जगाया। शिव दयाल जी महाराज ने राधास्वामी नाम जगाया और हमारे गुरु महाराज ने जयगुरुदेव नाम जगाया। बता देता हूँ कि जगाते कैसे हैं। आप को यह नहीं पता है की आप कहां से जुड़े हुए हो। उस प्रभु से पतले तार के द्वारा जुड़े हो। ऐसे ही गुरु नाम को प्रभू से जोड़ देते हैं। जुड़ने पर उसमें ताकत आ जाती है और उस नाम से जब उसको पुकारते हैं तो वह नाम मददगार हो जाता है। सुनता है, देखता है। तो जयगुरुदेव नाम आप रटा लो रटा दो बच्चों को। जयगुरुदेव नाम की ध्वनि घर में बुलवाना शुरू कर दो। जब वह याद हो जाएगा तो मुसीबत के समय जब जयगुरुदेव नाम से मुंह से निकलेगा तो मदद तो होगी ही होगी।

*प्रचारकों को एक जगह नहीं रुकना चाहिए*

महाराज जी ने 29 जून 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि उपदेशकों प्रचारकों को एक जगह पर नहीं रुकना चाहिए। नहीं तो मान-सम्मान मिलता है तो अहंकार आ जाता है। खाने-पीने की बढ़िया चीजें मिलती है तो यह मन इस शरीर को विकारी बना देता है। विकार आ जाता है इसमें। तो जो काम नहीं करना चाहिए शरीर से वह भी करने लगता है। मानवता, इंसानियत धर्म मर्यादा के खिलाफ चला जाता है। इसलिए बचना चाहिए।

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Baba umakant ji maharaj 



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