जयगुरुदेव
12.11.2022
प्रेस नोट
गाजियाबाद (उ.प्र.)
देवी-देवता क्यों स्वर्ग बैकुंठ के सुख को भोग नहीं पाते
बाबा उमाकान्त जी महाराज ने समझाया पाप और पुण्य बनता कैसे है
सन्त तो पाप-पुण्य दोनों को ख़त्म करवा कर जीवात्मा की मुक्ति करवा देते हैं
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 26 सितंबर 2022 प्रातः गाज़ियाबाद में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देवता भी स्वर्ग बैकुंठ के सुख को भोग नहीं पाते।
देवता किन चिंताओं में डूबे रहते हैं
उनको फिकर रहती है की हमारा उद्धार कैसे होगा, हम प्रभु के पास कैसे पहुंचेंगे। पाप का नाश जल्दी हो जाता है लेकिन पुण्य का नहीं होता, विशेष रुप से स्वर्ग बैकुंठ में। सन्त जब अंतर में जाते हैं, नरकों के जीव जब चिल्लाए तो दया कर दिया, नरक से निकाल दिया जैसे नानक जी ने अपने एक भटके जीव के लिए सबको नरक से निकाला था। लेकिन अब तक पूरे लोक के देवी-देवताओं को सन्त द्वारा पार होने की खबर नहीं है। किसी जीव पर दया मौज हो जाय, जल्दी मनुष्य शरीर दिला दें वो बात अलग है नहीं तो उन्हें सुख भोग कर ही मनुष्य शरीर मिलेगा। दूसरी फिकर देवों को रहती है- जनमत मरत दुसह दु:ख होई यानी जनमते और मरते समय बड़ी तकलीफ झेलनी पड़ती है। चाहे साधना में जीवात्मा शरीर से बाहर निकलने की आदत बन जाये लेकिन अंत समय पर प्राण हवा 72000 नसों से खिचते समय नसें सिकुड़ने से तकलीफ होती है। जो मनुष्य शरीर पाने का मतलब नहीं समझ पाते, खाने-पीने में समय निकाल देते हैं, प्रभु प्राप्ति, जीवात्मा कल्याण का कोई काम नहीं कर पाते, उनके जीवात्मा, प्राण जब यमदूत मार-मार कर, झुलसा कर निकालते हैं तब ऐसों को बहुत दर्द होता है। देवलोक ऊपर है तो ये सब देखते हैं कि जन्मते वक़्त बच्चा रो रहा, मरते वक्त हड्डी-हड्डी चटकती है।
पाप कैसे बनता है
जैसे आप किसी के यहाँ गए हो। अब कोई सामान रखा है। और मन कहता है कि (मेजबान) घर में चले गए हैं चाय लेने के लिए और यह कीमती बढ़िया सामान है, इसको हम ले लें, चुरा लें। अब मन ने इच्छा किया। फिर चित ने चिंतन किया, हां हां पैसे मिल जाएंगे, ले लिया जाए। अब यह जिनके हाथ में यह डोरी है उन्होंने खिचाव किया। मन ने हूरना पैदा किया और चित चिंतन करके उसका निर्णय ले लेता है हां हां ले लिया जाय। लेकिन बुद्धि की डोरी विष्णु के हाथ में होती है तो विष्णु डोरी को खींचते हैं। कहते हैं बुद्धि लगाता है आदमी। पता लग जाएगा तो सजा भुगतना पड़ेगा, जेल जाना पड़ेगा, रिश्ता भी छूट जाएगा। तो फिर माया सोचती है, नहीं उठाएगा तो इसका पाप कर्म नहीं बनेगा। तब तक मन यह सोचता, कहता है कि यह चीज हमको भा गई है। समझो बुद्धि लग रही है वैसे ही शिवजी अहंकार की डोरी को खींच देते हैं। अरे उठा लो, रख लो, जो होगा वह देखा जाएगा। अभी तो हम लखपति हो जाएंगे। लाखों रुपए की चीज है, रख लो और चुरा लेता है। अब चुरा लिया तो पाप बन गया।
पुण्य कैसे बनता है
जैसे कोई भूखा दरवाजे पर आ गया। अब मन ने कहा भूखे को रोटी खिला दे, बहुत भूखा है। उसी समय चित चिंतन करेगा। हां भाई पुण्य होता है। इच्छा पैदा हुई। चित ने चिंतन किया। बुद्धि ने तुरंत बुद्धि लगा लिया कि देखो जिसने भी रोटी खिलाया, पानी पिलाया, उनके यहां रुपया पैसे की कमी नहीं होने पाती। माया खुश हो जाती है जब दूसरे के हित के लिए रुपया-पैसा को खर्च कर देते हैं। तो फट से बुद्धि कहती है हां हां ठीक है। फिर आदमी सोचता है कि दें या न दें, खिलावें या न खिलावें। तब तक शिव डोरी खींच देते हैं, खिला दो, खिला दो, अरे दे दो। बस आप यह समझो खिला देता है। तो उससे क्या होता है? पुण्य बन जाता है। तो पुण्य बन जाएगा तो स्वर्ग और पाप बनने पर नर्क जाना पड़ेगा।
सन्त तो पाप-पुण्य दोनों को ख़त्म करवा कर जीवात्मा की मुक्ति करवा देते हैं
तो ये तो दोनों बंधन हैं। हथकड़ी चाहे सोने की हो या लोहे की, दोनों बंधन हैं। सन्त तो पाप और पुण्य दोनों को ही खत्म करवा देते हैं। पाप पुण्य जब दोनों नाशे, तब पावे ममपुर वासे।
https://youtu.be/YLnFFeNmkDs
1 घंटे 8 मिनट से
 |
बाबा उमाकांत जी महाराज
|
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev