जयगुरुदेव
15.11.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*त्रिकालदर्शी होने की वजह से समरथ सतगुरु, भक्त को बचाने के लिए सब उपाय बता देते है इसलिए जाहि विधि राखे गुरु वाहि विधि रहिए*
*भजन में शुरू में सब को एक जैसी आवाज नहीं सुनाई देती है, साधना बढ़ने पर दिखना-सुनना-जानकारी होने लगती है*
*बाबा उमाकान्त जी ने समझाया प्रसाद किसको कहते हैं*
बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 14 अक्टूबर 2022 प्रातः बेगूसराय (बिहार) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सन्तों के पास या तो इच्छा पूरी हो जाती है या तो इच्छा खत्म हो जाती है, रहती ही नहीं है। फिर तो जाहि विधि राखे गुरु वाही विधि रहिए। जब आदमी यह सोच लेता है कि साध ते होइ न कारज हानी- इनसे हमारा कोई नुकसान नहीं होगा। यह साध हैं, सन्त हैं, गुरु हैं, समरथ हैं, इनसे हमारा कोई नुकसान नहीं होगा। यह जिस तरह से हमें रखें, उसी में हमारा फायदा है। हमको तो बस इनके आदेश का पालन करना है। गुलाम किसको कहते हैं? जो हर हुकुम का पालन करे। गुलाम की अपनी कोई ख्वाहिश नहीं रहती। जिस तरह से उसका मालिक उसको रखे रहे, खिलाये खाए, जो सेवा करवाए करे। तो जब हम गुरु के गुलाम बन जाते हैं, गुरु जो करते हैं वह अच्छा ही करते हैं, क्यों? क्योंकि वह त्रिकालदर्शी होते हैं। भूत भविष्य वर्तमान सब देखते हैं। आगे क्या होने वाला है, अब क्या इसके लिए जरूरी है, पिछले जन्म में इसका कैसे क्या रहा, इसके कर्म कैसे कटेंगे, इसके कर्मों की सजा कैसे खत्म होगी आदि सब उनको मालूम रहता है। उसी तरह का उपाय उसके लिए, सबके लिए बता देते हैं। जब उस तरह के मरीजों की संख्या ज्यादा रहती है तो उसी तरह की दवाई उपाय बता देते हैं।
*जगा हुआ नाम तो गुरु ही है*
कलयुग में कलयुग जाएगा, कलयुग में सतयुग आएगा। तो सन्तों की बात तो कभी गलत हो ही नहीं सकती। वो दूरदर्शी होते हैं, दूर का देखते हैं। दूर की बात अभी बता देते तो आदमी तुरंत उसको देखने की कोशिश करता है। तब कहता है झूठ बोल गए। ऐसा नहीं हुआ, झूठ कभी नहीं बोलते हैं। कभी-कभी बहुत दूर की बात को पहले बता देते हैं और समय आने पर घटता है। समय पर सतयुग धरा पर उतर आएगा। यह जयगुरुदेव नाम उस समय भी रहेगा। जगा हुआ नाम तो गुरु नाम ही है लेकिन गुरु के पहले गुरु महाराज ने जय इसिये लगाया क्यौंकी हमेशा गुरू रहे इस धरती पर। बगैर गुरु के तो कोई एक कदम आगे बढ़ ही नहीं पाया।
*प्रसाद किसको कहते हैं*
महाराज जी ने 2 जुलाई 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि प्रसाद वो जिसे छुआ जाता है। सन्त जिसको छूते हैं वह प्रसाद ज्यादा ताकतवर होता है। जो सच्चे साधक होते हैं, जिनका आना-जाना ऊपर रहता है, मालिक की धार उनके शरीर के अंदर उतरती है और वह ध्यान लगा कर के किसी चीज को छू लेते हैं तो वह प्रसाद ज्यादा ताकतवर होता है। लेकिन प्रेम में विभोर हो करके, उनका ध्यान लगा कर के, उनको हदय में बसा करके जो प्रसाद को बांटते जाते हैं, मालिक को याद करते जाते हैं और उनकी दया प्रसाद में मांगते जाते हैं ऐसे साधकों के हाथ से भी प्रसाद जब मिल जाता है तब भी लोगों को फायदा मिलता है। जिस जागृत नाम को लेने से शांति मिलती है, तकलीफ दूर होती है उस जयगुरुदेव नाम को बोल कर के भी अगर किसी को प्रसाद दे दिया जाए और वह खाएगा तो उसको अच्छा लगेगा। भंडारा गुरु पूर्णिमा जैसे कार्यक्रम में प्रसाद के बारे में गुरु महाराज कहते थे कि बच्चों! इस प्रसाद को ले जाओ और रखे रहना। मुसीबत तकलीफ बेचैनी के समय इसमें से दो दाना निकालकर के खा लेना। जब खत्म होने लगे तब इसी में और मिला देना। जैसे होम्योपैथिक में दवा डली हुई गोली में कुछ गोलीयां और मिलाई जाए तो पेट में जाने पर दवा की ताकत शरीर के अंदर फ़ैल जाती है। ऐसे ही गुरु महाराज कहते थे। प्रसाद किसी को देना है, बांटना है, खुद इस्तेमाल करोगे, कम पड़ जाएगा तो उसमें और मिला लेना। तो उनका छुआ हुआ प्रसाद अमृत तुल्य था। लेकिन आप जो साधक हो और गुरु का ध्यान करके, साधना में दया लेकर के प्रसाद जब बांटोगे तो आपका बेकार नहीं जाएगा। आप जहां पूजन करना वहां पर अच्छे भाव से गुरु को याद करके, दया लेकर के प्रसाद बांटते समय उन्ही का ध्यान करोगे तो लोगों के लिए वह भी फलदाई हो जाएगा। प्रसाद थोड़ा जरूर बांट देना।
*भजन में सब को एक जैसी आवाज नहीं सुनाई देती है*
आप जब भजन में शब्द को पकड़ने की कोशिश करोगे तो वह शब्द आपको खींच लेगा तब आप ऊपर जाने लग जाओगे। और जितना आगे बढ़ते जाओगे, उतनी जानकारी होती जाएगी, उतना मधुर शब्द मिलता जाएगा। भजन में सबको एक जैसी आवाज शुरू में नहीं सुनाई पड़ती है। किसी को मिलौनी आवाज, किसी को झींगुर जैसी, आदमी जैसी आदि सुनाई पड़ती है। लेकिन धीरे-धीरे साफ क्लियर होता जाता है। इसी तरह से ध्यान में होता है। जब आगे जाते हैं तब हर चीज की जानकारी होती है।
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Baba umakant ji maharaj
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