जयगुरुदेव
03.11.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
इसी मनुष्य शरीर में, घर में बैठकर देवी-देवताओं के दर्शन करो, उपरी लोकों में घूमो, दिव्य वाणी सुनो -सन्त उमाकान्त जी महाराज
जीवों की भलाई में जो मेहनत की कमाई खर्च करता, उसको वह मालिक एक का दस देता है
बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 16 अक्टूबर 2022 प्रातः सुपौल (बिहार) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि लोक-परलोक बनाने का तरीका नामदान आपको बताऊंगा। असली चीज वह है कि आप इसी मनुष्य शरीर में, घर में ही बैठकर देवी-देवताओं का दर्शन करो, स्वर्ग बैकुंठ में घूमो, ऊपरी लोकों में भ्रमण करो, वहां से जो मस्तानी आवाज आ रही है, उसको सुनो। लेकिन यह कब दिखाई-सुनाई पड़ेगा? उसका फायदा कब होगा? जब आप शाकाहारी रहोगे। इस मनुष्य शरीर को गंदा नहीं करोगे। क्योंकि इस शरीर को देते हुए उसने कहा था कि तुमको हम एक बार मौका दे रहे हैं, इसको साफ सुथरा रखना और इससे अपना काम बना लेना। और यह जो मनुष्य शरीर पाने का, जीवन का मौका है-
कोटि जन्म जब भटका खाया।
तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।
करोड़ों जन्म भटकने के बाद ही मिलता है। तो यह बड़े भाग्य से मिला है। इसको साफ-सुथरा रखो। बाहर के साथ अंदर में सफाई जरुरी है। अंतरात्मा में जहां प्रभु का दर्शन होता है, जहां पर उसका सिंहासन है। उस जगह को कर लेते हो गंदा। कैसे? जानवरों का मुर्दा मांस डाल करके। इसीलिए देखो बहुत पूजा-पाठ, यज्ञ जप तप लोग कर रहे हैं लेकिन देवता खुश नहीं हो पा रहे, जो फायदा मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पा रहा है। देवता अगर खुश हो जाए तो समय पर जाडा, गर्मी, बरसात होने लग जाए। पहले हीरे मोती जवाहरात से छोटे-छोटे बच्चे खेलते रहते थे। जैसे समुद्र इस समय पर सीप और शंख देता है, पहले मणि और मोती देता था क्योंकि उस समय लोग शाकाहारी नशामुक्त होते थे, दिल दिमाग बुद्धि लोगों की सही रहा करती थी और फिर इस मुंह से जब श्लोक पढ़ते, उनका आह्वान करते, इस हाथ से फूल पत्तियों को हवन में चढाते थे, खून और अंतरात्मा जब शुद्ध थी तब देवता कबूल करते थे। तो मनुष्य शरीर को साफ सुथरा रखना जरूरी है।
मन बदलता रहता है
अगर बात समझ में आ जाए कि प्रचार-प्रसार करने से कर्म कटेंगे, मन को शांति मिलेगी, हर तरह से धन पुत्र परिवार में बढ़ोतरी होगी, भजन में मन लगेगा, अगर मन बन गया, यह समझ में आ गया तो निकल पड़ना चाहिए, लग जाना चाहिए। मन मे अगर यह बात समझ में आ जाएगी कि उस प्रभु, प्रभु के जीवों के निमित्त अगर हम अपनी मेहनत की कमाई को लगाएंगे तो वह एक का दस देगा। उसका विधान गलत नहीं होता है, वह देगा ही देगा। तो तुरंत खर्च कर देना चाहिए, उसको रखना नहीं चाहिए। नहीं तो यह मन बदलता रहता है। जैसे सिनेमा की रील चलती है, वैसे कर्मों की रील चलती है। मान लो खराब कर्म गंदे कर्म की रील सामने आ गई तो मन बदल जाता है।
सार-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाए
गुरु महाराज जैसे सन्त की दया आपके ऊपर हो रही है। उनकी दया से आप जुड़ गए हो। आपको भी परोपकारी होना चाहिए। सतसंग में जो बात को सुनो तो मतलब की बात को निकाल लो। सार ग्रहण करो और थोथा को उड़ा दो। जैसे यह बच्चियां अनाज साफ करते समय धूल मिट्टी भूसा चारा के अंश को उड़ा कर अनाज को अलग कर लेती है ऐसे ही सार चीजों को पकड़ लेना चाहिए। नहीं तो आते-जाते रहो क्या मतलब निकलेगा? कुछ नहीं।
https://youtu.be/45hJ-13TkY0
1 घंटे 8 मिनट से
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Jaigurudev