बहुमत में अकलमन्द बेकार हो गए...

जयगुरुदेव वाणी
मैं बुराइयों का विरोधी हूं राज्य का विरोधी नहीं...

देखो अधिकारियों! मैं राज्य का विरोधी नहीं। राज्य एक नियम है, राज्य एक व्यवस्था है, राज्य एक मर्यादा है। उसका पालन मैं करता हूं। नियम को मानता हूं, अधिकारियों की व्यवस्था को मानता हूं। उस मर्यादा को मानता हूं। मैं उसका उल्लंघन नहीं करता हूं। 

लेकिन मैं बुराईयों का विरोधी हूं जिसके कृष्ण विरोधी थे, जिसके राम विरोधी थे, शंकराचार्य विरोधी थे, मुहम्मद विरोधी थे, महावीर विरोधी थे। बाबा जी को भी सभी बुराईयों का विरोधी समझ लीजिए कि कट्टर बुराइयों के विरोधी रहेंगे।

अच्छाइयां के समर्थक और बुराईयों के विरोधी। यह दिल्ली के लोगों को सुना दीजिए बाबा जी राज्य के विरोधी नही हैं, बुराइयों के विरोधी हैं। जिस दिन बुराई आप छोड़ दें, बाबा जी अपना शब्द वापस लें लें और अपने धर्म कर्म के प्रचार में लग जायें। हमको कोई जरूरत नहीं है।
बुराइ छोड़ों नही तो निकाल कर बाहर करेंगे। नही तो यही बाबाजी आपको निकाल कर बाहर कर देंगे। ये सब प्रेमी बैठै हुये हैं ये निकाल कर बाहर कर देंगे। आप और हम देखते रहेंगे।

आपका और हमारा साथ अन्ततोगत्वा एक ही रह जायेगा। यह दुनिया तमाशा देखती रह जायेगी। यह सब कुछ होगा। लेकिन समय से होगा और सब कुछ देखने को मिलेगा। यह सब आप लोग समझ लीजिए।

बाबा जी बुराई छुड़ाने की शिक्षा देते हैं उन्हें राजनीति से क्या काम ? बाबा जी की बात बड़े ध्यान से, निष्पक्ष। बाबा जी किसी का पक्ष नही करते क्योंकि बाबा जी राजनीतिक नहीं हैं। ये सब आकर के रोते हैं, हमारे साधन भजन में बाधा, जब बाधा पड़ती है तब फिर मैं इनको चरित्रवान और अच्छी शिक्षा देता हूं।

जन-जन में सत्य, अहिंसा, प्रेम, सेवा चली गई। झूठ फरेब, चोरी बेईमानी आ गई। मां बेटी का ख्याल नहीं रहा। लोग खुदगर्जी में लग गये धन की इतनी इच्छा है कि थैली पूरी होती नहीं। यह हाल हो गया।

यह कैसे हो गया आप से न्याय अली हो गांधी।
राज धर्म हीनों को देकर अपने लिये समाधी।।
आगे पीछे अपनी करनी का फल भोगै का परी। 
न्याय का गला घोंटने को भी रोवै का परी।।

तप से चूके राज मिलत है, राज के चूके नरका। 
जैसा करे सो भोगै, इसमें पड़े न फरका।।
मानव देह धरे का बंधन में, बंधावै का परी।।

राजा रावण, कंस और दुर्योधन से अभिमानी।
राजा दशरथ, पांचों पाण्डव, धीर वीर विज्ञानी।।
पड़ी सभी के कर्म भोग की मोटी रसरी।।

हिन्दू गये हिन्दुआई करके, तुरक गये तुरकाई। 
इसके बाद डेढ़ सौ वर्षों तक किए राज ईसाई।।
भारत किये स्वतंत्र सुभाष और गांधी जी प्रहरी।।
यह कैसे हो गया आपसे न्याय अली हो गांधी।
राज धर्म हीनों को देकर अपने लिये समाधी।।

भारत धर्म रहित हो गया प्रजा दुःख भोगै सगरी।।
जनता को भोजन, कपड़ा आवास नहीं मिल पाता। 
नेता जन दावतें उड़ाते धर्म कर्म नहीं आता।।
जनता रोवै, नेता मौज लेंय बनवावैं बखरी।।

धर्म संस्कृति सेवा भक्ति, हुए प्रेम से खाली। 
माता पिता, श्रेष्ठजनों को लड़के देवै गाली।।
नेता जन जो बोवैं मतदानिन को काटै का परी।।
आगे पीछे अपनी करनी का फल भोगै का परी। 
न्याय का गला घोंटने वालों को भी रोवे का परी।।


राजा, जमींदार, जागीदार सबको प्यार करते थे, बाबा जयगुरुदेव ने सही इतिहास याद दिलाया, 
राजा, जमींदार, जागीदार इतना क्रोध नहीं करते थे।
जनता किसी भी जाति की हो सबको प्यार करते थे। 
राज के छोटे बड़े मिनिस्टर इतने क्रोध में बदला लेते हैं और इतना जिद्दी हठी होते हैं, सच्ची बात मानना सुनना ही नहीं चाहते। प्रजातंत्र में इनका क्रोध मानवता, प्रजातंत्र के लिये घातक है।
धर्म ही मनुष्य है। अधर्म ही मनुष्य पशु है। धर्म राजनीति में सदैव आगे रहे। राजनीति मानव संचालित एक व्यवस्था है। लोक सभा कार्यरूप् देने वाली एक प्रणाली है। शासक अधिकारी-कर्मचारी हैं। प्रधानमंत्री देखें हमारी बनाई व्यवस्था कार्यरूप दे रही है या नहीं। राजनीति मानव संचालित एक व्यवस्था नाश कर देगा। धर्म का नाश, सत्य का नाश, न्याय का नाश, प्रेम का नाश, इसका नाश, छोटों का नाश, बड़ों का नाश मान का नाश मर्यादा का नाश, कीर्ति का नाश सबका जड़ से मूल से नाश कर देगा, खत्म कर देगा। इसको कहते हैं बहुमत । इसी बहुमत को आप कहते हो प्रजातंत्र।

बहुमत में अकलमन्द बेकार हो गए...
मान लीजिए एक अकलमन्द हो और 100 बेअकल और 100 का बहुमत हो तो एक क्या करेगा ? अगर मान लीजिए कि 50 50 हैं और एक 51 हो गया, और बाकी 49 रह गए तो बहुमत उनका हो गया। तो अकलमन्द मारे गए। अब तो अकल का मतलब ये है कि बहुमत । तो वह क्या करेगा, कुछ नहीं कर सकते। 

-- Jaigurudev Bhavishya ki Jhalak

jaigurudev


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