नये जिज्ञासुओं के लिये

जयगुरुदेव 
सतगुरु की डायरी के पन्ने

जब में गुरु के पास पहुंचा तो कातिक का महीना था। जाड़ा प्रारम्भ हो रहा था। गुरु महाराज ने दर्शन देते ही मुझे उपदेश दे दिया था। मैंने उनकी आज्ञा लेकर साधन प्रारम्भ कर दिया। जिस दिन से साधन शुरु किया उसी दिन से चित्त की चंचलता अधिक शुरु हो गयी परन्तु गुरु से अर्ज करता रहता था कि मेरा चित्त स्थिर नहीं रहता है वक्त साधन के भागम भाग लगा रहता है। गुरु समझाते थे कि साधन के समय तुम हमारे रूप का दर्शन कर लिया करो और जब मन ना मानें तो रोया करो।

जब साधन में चित्त, मन, और इन्द्रियां चलायमान हो जाती थीं तो मैें गुरु के देह स्वरूप आकार को ध्यान में लाता था। जब गुरु का आकार सामने आता था तो उस वक्त मन, चित्त रुक जाया करता था और किसी जगह नहीं भागता था। जब चित्त मन एक जगह रुक गया  तो भजन करते वक्त घण्टा, शंख और रूप की धुन सुनाई देती थी। धुन सुनने से बहुत आनन्द आता था। मालूम होता था कि मैं गर्मी से सर्दी में आ गया हूं और यह सर्दी अधिक शीतलता देने वाली है।

मुझे अनुभव हुआ है। जब इच्छा जगी मालूम हुआ कि घास के ढेर में आग लगा दी और अग्नि प्रचण्ड रूप धारण कर चुकी है। इसी तरह एक झोंक अंतर भाव से देखा। उसी तरह समझाया और कहा कि तुम हमारे पास रहो और साधन करो।  बाहर कहीं मत जाओ। कुछ दिन बाद यह अंग जो विकारी प्रगट हुआ है खतम हो जाएगा। गुरु की कृपा लेकर और पास रहकर साधन में लग गया। कुछ दिन बाद इन्द्रियों का अंग जल गया और गुरु बहुत प्रिय सतसंगी हितकर मालूम होने लग गया।
साधन करते वक्त जो पर्दा आ गया था और चंचलता बढ़ गई थी, मन चित्त बुद्धि मलीन हो गये थे वह साफ होने लगे।

साधन समय में प्रकाश साफ फिर होने लगा और कुछ कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं। मालूम होता है कि आवाज से मकान गूंजने लगा और आवाज सुनकर बहुत अच्छा लगता है। एक  दिन मैं एक सतसंगी के यहां गया जो कि थोड़े दिनों से सतसंगी हुआ है। इसके पूर्व में वह सतसंगी मांस शराब अनाचार करता था परन्तु सतसंग में आकर उसने मांस शराब पीना त्याग दिया। अपने घर बुलाकर भाव के सहित भोजन कराया। जैसे ही भोजन किया कि चित्त मन बुद्धि खराब हो गई। अगर गुरु के पास न पहुंचता तो यह निसन्देह कि मैं बह जाता। गुरु के समीप पहुंचे ही गुरु ने मीठे स्वर से शब्द उच्चारण किए।
किसी सतसंगी के यहां बिना सोचे समझे भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि एका एक उसके कर्म नष्ट नहीं होते हैं। अब उसका इलाज कर्म काटने का होगा।

गुरु महाराज ने कहा- आज तुम्हारा मन बहुत खराब है। तुम आंखे बन्द करो। जब मैंने गुरु आज्ञा से आंखे बन्द की तो  मुझे अंधेरा मालूम हुआ और थोड़ी देर बाद मैं भजन पर बैठा तो मालूम हुआ कि शब्द कभी सुना ही नही है। दोनों दयाओं से मैं खाली रह गया। मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि मैंने अपना पैदा किया हुआ धन खो दिया। इसी सोच विचार में गुरु के सामने रोने लगा। गुरु ने दुखी अवस्था देखकर कहा कि ऐसी गलती अब मत करना और एक किसी के यहां भोजन मत करना। तुुम यहां आओ। मैं गुरु के निकट पहुंचा और अपना सिर चरणों मे रख दिया और एक टक से गुरु की आंखों की पुतली को देखने लगा। जब मेरी पूरे भाव सहित गुरु की पुतली पर दृष्टि टिक गयी तो देखता हूं कि गोलाकार एक बहुत भारी प्रकाश आ गया है जो कि बहुत बड़े आनन्द का अनुभव कराता है।

जब मैंने गुरु की पुतली में होकर देखा तो मुझे खुला हुआ आकाश मालूम हुआ और जिसमें मालूम होता था कि सड़क बनी है, सड़क के किनारे बाग लगे हैं। उसके बीच में सुन्दर मकान हैं, कुछ पुरुष स्त्री नजर आते हैं। बगीचे में सुन्दर एक कतार में फूल हैं और सुगंधी से मैं मस्त हो गया। ऐसा मालूम हुआ कि मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गया हूं। गुरु की पुतली में मालूम हुआ कि एक विशाल ज्योति जल रही है। जिसमें आकार है और उसी ज्योति की किरणें समूचे ब्रम्हाण्ड को अपनी कशिश में लपेटें हुए हैं और उन्ही किरणों पर यह जगत सर सब्ज है। एक तरह की जबरदस्त मस्ती आ गई और विकारी अंग दूर हो गया।

गुरु ने आंखे अपनी बन्द कर लीं और मैंने भी आंखें बन्द कर लीं तो देखता हूं कि उसी तरह के दृश्य देख रहा हूं और अनुभव करता हूं बहुत से लोग उन्हीं किरणों पर आते और जाते हैं। आना और जाना होता है। इच्छा हुई कि देखूं कहां जाते हैं। एक तक्ष्त सुन्दर है जिस पर सुरतें लिंग आकार में चढ़ती हैं। मालूम होता है कि डोरियां लगीं हैं उनको कोई खींचता है और कुछ शक्लें भयानक मालूम होती हैं जो कि सुरतों के साथ जा रही हैं। हिसाब हुआ और फिर फैलाव उन्हीं डोरियों का होता है। उन्हीं पर सूरतें उतारी जाती हैं। कुछ दूर जाने पर अन्धकार लोक आता है जहां पर असहनीय बदबू है। और भी बहुत से दृश्य दिखायी पड़े। गुरु महाराज ने आवाज दी  कि आंखे खोलो मालूम हुआ कि गुरु ने अन्तर ही में कहा और सामने खड़े हो गये। आंखे खोलते ही मालूूम हुआ कि जो मैं बाहर की चीजें देखता हूं इनमें गर्मी है और यहां अच्छा नहीं लगता है।

जयगुरुदेव 

jai gurudev


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