"पूरे शब्द भेदी गुरु को खोजो, फिर जब अन्तर में ज्योति जलेगी तब होगी असली दीपावली.

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट / दिनांक 04.11.2021*

*सतसंग स्थलः बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश / दिनांक: 04.नवम्बर.2021*

*"पूरे शब्द भेदी गुरु को खोजो, फिर जब अन्तर में ज्योति जलेगी तब होगी असली दीपावली...."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

इस दीपावली त्यौहार पर सभी धर्म प्रेमियों को अपने अनमोल मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य यानी अपने निजी घर सतलोक जाने की प्राप्ति के लिए पूरे आध्यात्मिक गुरु की खोज, उनका महत्व, सतगुरु की महिमा, वक्त के संत की अनिवार्यता को,
धार्मिक पुस्तकों, संतों की वाणियों आदि के रूप में उल्लेखित माध्यम से बार-बार रेखांकित कर चेतना दिलाने वाले इस समय के पूरे संत सतगुरु,

उज्जैन वाले संत *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने दीपावली कार्यक्रम में 04 नवंबर 2021 को अपने उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल *(jaigurudevukm)* जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित सतसंग में बताया कि,
जब-जब धर्म की हानि होती है, दुष्टता बढ़ती है और भारतीय संस्कृति खत्म होती है, उस वक्त पर कोई न कोई समझाने-बताने के लिए भेजा जाता है।
*उनकी बातों को सुनकर-मानकर वह चीज वापस लाई जा सकती है।*

*भारत की भूमि पर कर्म का बड़ा महत्व है।*
सकल पदारथ हैं जग माहीं। कर्महीन नर पावत नाहीं।।
इस धरती पर किसी चीज की कोई कमी नहीं है लेकिन आदमी कर्म करना नहीं चाहता है।
भारत का आदमी तो और ज्यादा आलसी हो गया, आगे बढ़ना ही नहीं चाहता है। किसी भी मामले में हो, करने की जिज्ञासा, उल्लास लोगों के अंदर पैदा नहीं हो रही है।
उसको पैदा करने की जरूरत है। चाहे जिस लाइन में हो, वैज्ञानिक, नौकरी, व्यापार, खेती करता हो उसमें आगे बढ़ने की, तरक्की की कोशिश करनी चाहिए।

यह शराब, मांसाहार बंद नहीं किया, अपराध इस शरीर से करना बंद नहीं किया, इंद्रियों के सुख में लोग गलती पर गलती करते चले गए तो भविष्य यह भी सम्भव है कि कर्मों का अनुसार जल देवता नाराज हो जाएं और नदियां भी सूखने लग जाए क्योंकि कलयुग के पहचान में ये बात आती है। 

*असली पूरे गुरु की पहचान सब जगह लिखी है, खोज लो, मिल जाएंगे।*
आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए आध्यात्मिक गुरु की खोज करनी चाहिए, पता लगाना चाहिए कि भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में क्या कर सकते हैं।
कबीर दास जी ने कहा-

*गुरु बिन भव निधि तरे न कोई।*
*जो बिरंचि शंकर सम होई।।*
चाहे ब्रह्मा और शिव के समान कोई होगा लेकिन बगैर गुरु के इस भवसागर से पार नहीं हो सकता।

सहजो बाई ने यहां तक कह दिया-
*सहजो कारज जगत के, गुरु बिन पूरे नाहिं।*
*हरि तो गुरु बिन क्या मिलें, समझ देख मन माहि।।*
कहते हैं हरि, प्रभु का दर्शन-मिलन करना चाहते हो तो गुरु की खोज करो।

गुरु का करना जरूरी होता है, आध्यात्मिक विकास के लिए, जन्म-मरण से छुटकारा दिलाने के लिए, अपने घर, वतन, मालिक के पास पहुंचाने के लिए, नरकों-चौरासी से बचने के लिए आध्यात्मिक गुरु की जरूरत होती है।
कबीर साहब ने तो यहां तक कह दिया-
*निगुरा मुझको न मिले, पापी मिले हजार।*
*एक निगुरा के शीश पर, लख पापी का भार।।*
कहते हैं जो गुरु से दीक्षा-मंत्र नामदान नहीं लेता है, उसके सिर पर लाख पापियों का बोझा होता है।

*गुरु की पहचान क्या होती है?*
इसी तरह से गुरु की पहचान भी बताई गई। कैसे पहचान हो? गुरु यानी क्या होता है?
*रु है नाम प्रकाश का, गु कहिए अंधकार।*
*ताकौ करें विनाश जो, सोंई गुरु करतार।।*
इन बाहरी आंखों को बंद करने पर अंधेरा हो जाए, जो अन्धेरे में उजाला प्रकट कर दे, वही सच्चा गुरु होता है।
पहचान बताया गोस्वामी जी ने-
*श्री गुर पद नख मनि गन जोती।*
*सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥*

गुरु के पैर के अंगूठे के अगले भाग को याद करते, देखते हुए दिव्यदृष्टि खुल जाए तो वह सच्चा गुरु हुआ करता है।
लेकिन अब हाड-मांस के शरीर में गुरु हुआ करते हैं। उनके हड्डी-मांस के अंगूठे को देखकर के दोनों आंखों के बीच की दिव्य दृष्टि कैसे खुल सकती है?

*उसके लिए गुरु से रास्ता युक्ति लेनी पड़ती है जिससे दिव्य दृष्टि खुल जाती है। असली पूरे गुरु की पहचान सब जगह लिखी है, खोज लो, मिल जाएंगे।*





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