मनुष्य को नर्क-चौरासी की आग में जलने से बचाने के लिए संत धरती पर अवतार लेते हैं।

जयगुरुदेव
प्रेस नोट/ दिनांक 31 जुलाई 2021 
जयपुर, राजस्थान

मनुष्य को नर्क-चौरासी की आग में जलने से बचाने के लिए संत धरती पर अवतार लेते हैं।

जीवों को नर्क और चौरासी की आग से बचाने का सीधा और सरल मार्ग नामदान बताने वाले,
वर्तमान के पूरे संत बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जयपुर, राजस्थान में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर 27 जुलाई 2018 को अपनी दिव्य दृष्टि से यमलोक का आंखों देखा हाल बताते हुए कहा कि,
इस समय पर जो जानवरों को मार कर के खा जाते हैं, उनसे वो जानवर भी वहां बदला लेने के लिए मौजूद रहते हैं। दांतों से नोच लेते हैं, पंजा मार देते हैं, खून से लथपथ ले जाते हैं यमराज के सामने, पेश करते हैं।


कुदरत के कैमरे के आगे दुनिया के सारे कैमरे फेल हैं।

बहुत से लोग तो कहते हैं कि आंख बचा कर के गलत काम कर लो, क्या कहीं कोई देख रहा है? लेकिन आपको नहीं मालूम, जिसको आप नहीं देख पा रहे हैं, वह आपकी सारी जीवन की अच्छाई-बुराई को देख रहा है और नोट करवा रहा है।

यमराज के यहां कोई जोर-सिफारिश नहीं चलती, सिर्फ कर्मों की सजा मिलती है।

देखो! जैसे यहाँ कम्प्यूटर है, वहां नहीं है। वहां तो बड़े-बड़े बही खाते हैं। बहुत सुनहरे पन्ने वाले, बहुत सुंदर लिखावट वाली भाषा, उसमें सब ऑटोमेटिक नोट होता रहता है।
उसको देखकर के यमराज के मंत्री चित्रगुप्त बताते हैं। चित्रगुप्त और यमराज दोनों देखने में बहुत सुंदर हैं, लेकिन माफ किसी को नहीं करते। वहां कोई वकालत-सिफारिश वाला नहीं मिलता है।

कलयुग में तीन तरह के कर्म- मनसा, वाचा, कर्मणा हैं।

चित्रगुप्त बताते हैं उस जीव को कि इसने इस-इस तरह से कर्म किया। इस समय पर कलयुग में कुछ कर्म तो माफ भी कर देते हैं, मतलब बताते ही नहीं है। अगर न माफ करें तो बहुत मुश्किल है उबर पाना।
मनसा कर्म किसे कहते है ?
कुछ लोग सोचते हैं कि मार देंगे, काट देंगे, इनकी बहू बेटी के साथ ऐसा कर लेंगे तो मनसा पाप लगता है।

वाचा कर्म किसे कहते है ?
बोल करके करवाया जाता है। कहते हैं न मार दें, काट दें, उड़ा दें, ऐसा कर दें, झूठी गवाही बोल करके फांसी पर लटकवा दिया तो वाचा पाप लगता है।
कर्मणा कर्म किसे कहते है ?
जो शरीर से कर्म होता है। शरीर से किया गया कर्म, ये माफ नहीं होता है।

सत्संग न मिलने के कारण बहुत सारे कर्म इकट्ठा कर लेता है आदमी।

आदमी को ज्ञान नही होता जब तक संत नहीं मिलते। शरीर से, हाथ से, सुन कर के, दूसरों को मुंह से बोल कर के इतने अधिक कर्म लाद लेता है कि उसी की सजा मिल जाती है।
कैसे सजा देते हैं ?
दो चार सजा बता देता हूं आपको। 

मनुष्य की जीवात्मा को पिशाच के शरीर में डालकर नर्कों में तरह-तरह कि यातनाएं देते हैं। ये मनुष्य शरीर जैसा रहता है। यमदूत सीने पर सवार हो जाते हैं। अब जीव चिल्लाता है। दोनों आंखें, जीभ बाहर निकल आती है। फिर हट जाते हैं।
आंखें अंदर चली जाती हैं। फिर यमदूत दुबारा सीने पर सवार हो जाते हैं। ऐसे जोर से हाथ पकड़ कर फेंक देते हैं कि हाथ उखड़ कर उन्हीं के हाथ में रह जाता है। दर्द से जीव बहुत रोता-चिल्लाता है, थक जाता है।
तब यमदूत हाथ को फेंक देते हैं और हाथ कंधे से जुड़ जाता है। यही सजा बार-बार दोहराते हैं। आंखें फोड़ कर मार मारते हैं, भागता है तो गिरता है। हाथ-पैर टूटता है।

उसके बाद नर्कों में डाल देते हैं। अब वह नर्क कैसे होते हैं ? यह भी आपको बता देता हूं।
मवाद और कील से भरे नर्क में डाल देते हैं। कीलें चुभती हैं और मवाद की बदबू नाक मुंह में भर जाती है। तांबे के घड़े समान तपती हुई एकदम गर्म जमीन पर फेंक देते हैं, जीव बहुत चिल्लाता है। कोई सुनने वाला है वहां? कोई नहीं।

जब यमराज की मार पड़ती है तो सौ-सौ कोस तक आवाज जाती है, लेकिन कोई बचाने वाला नहीं। लोहे की कढ़ाई में खौलते तेल में डाल देते हैं, उसी में जलते रहो। तो नर्कों में बहुत दिन रहना पड़ता है, कर्मों की सजा भोगनी पड़ती है।

बयासी प्रकार की नर्कों में सजा देने बाद चौरासी में डालते हैं।

जब समय नर्कों में रहने का पूरा हो जाता है, तब कीड़ा मकोड़ा सांप बिच्छू आदि के शरीर में डाल देते हैं।
गाय और बैल की योनि के बाद फिर मनुष्य शरीर का नंबर आता है। शरीर को किसी ने मार दिया, काट कर खा लिया तो समझो प्रेत योनि में चले गए।
उम्र पूरा किए बिना जब शरीर छूट जाता है तो प्रेत योनि में बहुत दिनों तक रहना पड़ता है। उसके बाद फिर मनुष्य शरीर मिलता है।

मनुष्य शरीर में जो उमर बाकी रह गई थी, उसको भोगना पड़ता है। अब उसमें जो अच्छे-बुरे कर्म होते हैं, उसकी सजा भोगनी पड़ती है।
तब तो फिर जल्दी छुटकारा होता ही नहीं हैं, इसलिए मनुष्य को नर्क-चौरासी की आग में जलने से बचाने के लिए संत धरती पर अवतार लेते हैं।

Baba umakantji maharaj



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