*बाबा उमाकान्त जी महाराज का जन्माष्टमी का विशेष सन्देश;*

*जयगुरुदेव*

*प्रेस नोट/दिनांक 30.08.2021*
आश्रम जोधपुर, राजस्थान

*बाबा उमाकान्त जी महाराज का जन्माष्टमी का विशेष सन्देश;*

*गीता में भी कृष्ण भगवान ने कहा कि उद्धार के लिए सतगुरु की खोज करो, उनसे रास्ता लो।*

महापुरुषों के गूढ़ वचनों को समझा कर उनके असली संदेश को बताने और समझाने वाले वक्त के पूरे संत उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने,
दिनांक 30 अगस्त 2021, प्रात:काल, जोधपुर आश्रम, राजस्थान में दिए गए और यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित सन्देश में जन्माष्टमी की व्याख्या करते हुए बताया कि,
जन्माष्टमी का मतलब होता है कि पाँचों तत्व और तीनों गुणों की गाँठ में बंधी जीवात्मा का जब इनसे छुटकारा होता है। जब वो गाँठ खुलती है तब जीवात्मा का जन्म होता है।

चाहे जेल में हो या माँ के पेट में पड़ी जीवात्मा हो, सब मजबूर रहती है। माँ के पेट से जब बच्चा निकलता है तो कहते हैं की जन्म हो गया।
एक बार एक आदमी थोड़ी सी गलती पर सजा पा गया और कलम चलाने वालों ने कई धाराएं लगा दी। कई बार जिनको पॉवर होता है, वो उसका गलत इस्तेमाल कर लेते हैं। 

तनिक में ही गडबड़ी हो जाती है, जैसे खुदा का जुदा हो जाता है, जैसे मुलाजिम और मुलजिम। मुलाजिम यानी कर्मचारी लेकिन मुलजिम यानी अपराधी। केवल आ की मात्रा का फर्क है। ऐसे ही कलम चल गयी और कई धाराएं लग गयी और चला गया जेल।

उसने गुरु महाराज को प्रार्थना किया। दया हो गयी तो छूट गया। तब आया तो बोला कि मैं तो सोच रहा था की अब जेल से निकल नहीं पाऊंगा, वहीं सड़ मर जाऊंगा। लेकिन निकलने के बाद मैंने ये सोच लिया की मेरा नया जन्म हुआ है।

*तो जब ये गाँठ खुलती है, जीवात्मा निकलती है, जन्माष्टमी साधक की तब होती है।*

*कृष्ण ने अपने आध्यात्मिक गुरु सुपच जी से प्रार्थना किया कि अपनी दया की धार को समेटो ताकि दुष्टों का संहार, महाभारत कराई जा सके।*

इनको भगवान कृष्ण कहा गया। सोलह कलाओं के अवतार कहा गया। गीता - भागवत पढ़ने वाले, कृष्ण भगवान की पूजा करने वालों ने उनको ब्रह्म मान लिया, उनको सब कुछ मान लिया।
लेकिन गीता में भी कृष्ण भगवान ने कहा कि सतगुरु की खोज करो, सतगुरु से रास्ता लो तब तुम्हारा उद्धार हो सकता है। उन्होंने पांडव और उद्धव को भी समझाया।

कृष्ण जो भी काम करते, वह उनके आध्यात्मिक गुरु सुपच जी से सलाह, शक्ति लेकर, उन्हें अपना पूज्य मानते हुए करते रहे। जब उनको दुष्टों का संहार कराना हुआ, महाभारत कराना हुआ तब सुपच जी से उन्होंने प्रार्थना किया।

तब सुपच जी जो उस समय के संत थे, उनसे कृष्ण ने प्रार्थना किया, कहा कि जो जनहित की शक्ति आप प्रवाहित कर रहे हो, फैला रहे हो उसको आप अब समेट लो। दया भाव अब समेटो तभी इन दुष्टों का संहार हो सकता है।
*नहीं तो एक प्रभावी, एक पुण्य आत्मा के पास पापी भी अगर रह जाता है तो जो शक्ति उनको बचाने वाली होती है, वह पापी को भी बचा लेती है।*

Sant Avtaar


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ