प्रभु की भक्ति में विचलित हो जाने तथा उनके दूर करने के यत्न- [23.]

जयगुरुदेव 
स्वामी जी ने कहा --
∎ सच बात तो यह है कि नाना प्रकार के देवता ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, ऋषि, मुनि आदि आप ही सच्चे और परम प्रभु सत्त पुरुष के भेद से अनिभिज्ञ हैं। इस कारण से जो वाणी वचन और धार्मिक पुस्तक बनाई उनमें परम प्रभु का वह भेद और उनके धाम में पहुंचने युक्ति उन्होने उसके प्राप्ति की प्राणायाम और साधनों के द्वारा वर्णन किया है वे ऐसे कठिन और घातक हैं और उनके नियम ऐसे कठोर वर्णन किये गये हैं कि उनका प्रयोग ग्रहस्थ और विरक्त दोनों से ना हो सका। 

इस प्रकार सबके सब शून्य रह गये अर्थात् सच्ची मुक्ति के मार्ग पर कोई ना चल सका। केवल कुछ लोग थोड़ा बहुत अभ्यास करके कुछ सिद्धि प्राप्त करके मार्ग में ही तृप्त हो गये आगे न बढ़ सके।


∎ कुछ स्वार्थी लोग जीवों को उपदेश देने के लिये स्थान-स्थान पर बहुत से प्रगट हो गये। इनकी संगत करने और वचनों को मानने से जीवों को अत्यधिक कष्ट पहुंचा। उनको प्रत्यक्ष धोखा मालूम हुआ। 

इस कारण से अब यदि कोई सच्चा मार्ग और भेद बताने वाला मिलता है तो उसके वचन को ज्यों का त्यों प्रतीत नहीं करते, नाना प्रकार के भ्रम और भय उत्पन्न करके उन वचनों को नहीं मानते, पुरानी और दोषपूर्ण चालों में बारम्बार फंसे रहना स्वीकार करते हैं और अपने लाभ हानि का बहुत कम विचार करके सच्चे गुरु की खोज में ढीले रहते हैं।


∎ जो जीव मूर्ख और निपट संसारी और चलायमान मन के थे तीर्थ, व्रत और मूर्ति पूजा में अटक रहे। जिन्होने कि थोड़ी बहुत विद्या पढ़कर अपनी बुद्धि किसी प्रकार जाग्रत की वे ज्ञान के ग्रन्थों के पढ़ने पढाने में वाचक रह गये अर्थात् परमार्थ की समझबूझ किसी प्रकार प्राप्त की किन्तु उनके अनुसार अभ्यास नहीं किया। 

इस कारण उनके सुरत का स्थान नहीं बदला और वे निरे बातूनी रह गये। इनमें से कुछ अपने को स्वयं को ब्रह्म मानकर निश्चित और निर्भय हो गये। वे अपने मन और इन्द्रियों की चाल और इच्छा को अपना स्वभाव समझकर निद्र्वन्दता पूर्वक आनंद विहार और भोगों में (जब वे भाग से मिल गये) भ्रमण करने लगे  और ग्रहस्थों को इसी प्रकार का ज्ञान सिखाकर उनको भक्ति मार्ग से हटा दिया और धर्म हीन कर दिया।

∎ कोई-कोई जीव तप और अनेक क्रियाओं के साधन में लग गये। जैसे नेती धोती, बस्ती क्रिया करना या मौन साधना, जल शयन करना या पंचाग्नि में तपना सर्वदा तीर्थों में भ्रमण करना या मेले इत्यादि में उल्टे लटकना या कीलों पर बैठना या नंगे रहना। अनेक प्रकार के स्वांग बनाकर जगत को रिझाना आदि। 

इन क्रियाओं से किसी प्रकार का परमार्थी लाभ नहीं है केवल आंशिक शारिरिक निर्मलता प्राप्त हो सकती है अथवा यहां के लोगों को प्रसन्न करके कुछ धन, मान और सम्मान की प्राप्ति हो सकती है।

∎ बहुत से जीव विशेषकर वे जिन्होने नई विद्या पढ़ी परम प्रभु और सुरत के विषय में अनेक प्रकार के अविश्वास अपने हृदय में उत्पन्न करके परमार्थ से बिल्कुल विमुख हो गये। खान-पान, सैर तमाशा परिवार, कुटुम्ब धन, सम्पत्ति आदि के मोह में फंस गए। वे उन्हीं को अपने जीवन का लक्ष्य समझकर प्रसन्न हो गये और परमार्थ का लाभ न समझकर उस प्रकारकी कार्यवाही बन्द कर दिये। 
वे स्वतंत्रता को पसन्द करके निर्भय और निद्र्वन्द होकर जैसी रहन सहन की उनको उचित प्रतीत हुई उसी के अनुसार रहने लगे और अपने मन की इच्छा अनुसार खानपान वेश भूषा आदि में निवास करने लगे।

∎ संसार की यह दशा देखकर अर्थात् जीवों का परमार्थ बिल्कुल बन्द देखकर परम प्रभु सत्तपुरुष सन्त सतगुरु का रूप धारण करके प्रगट हुए और अति दया करके अपने धाम का भेद मार्गो और मण्डलों का वर्णन और सुरत के वहां चढ़कर पहुंचने की युक्ति सरल और निर्विघ्न रूप से वर्णन किया। 

उन्होने जीवों को अत्यंन्त कृपालुता से समझाया कि नौ  द्वारों में सुरत धार का प्रवाह इस लोक में नित्य प्रति हो रहा है और प्रत्येक द्वार पर थोड़ा बहुत रस स्वाद या प्रसन्नता मन को इन्द्रियों के विषय में अर्थात भोगों के द्वारा प्राप्त होती है। इसी प्रकार रस स्वाद प्रसन्नता को प्राप्त होकर कुछ जीव बड़ी रुचि के साथ भोगों में लिपट गए और वास्तविक आनन्द जो मन और सुरत को दसवां द्वार की ओर अग्रसर होने से प्राप्त हो सकता है और जो आनन्द निर्मल स्थाई और स्वतंत्र अर्थात् जीव के वश में है, उसे भूल कर किसी से उसका भेद और पता न पाकर बिल्कुल अनभिज्ञ रह गये और इस प्रकार अपने जीवन को गहरी हानि पहुंचाई।

∎ जड़ चेतन की गांठ प्राकृतिक लगी हुई है। इस संसार मे अनेक स्थानों पर जीवों ने आप बन्धन लगाये हैं। अतएव प्रत्येक को उचित है कि मृत्यु के पूर्व उस गांठ को खोलने का यत्न आरम्भ कर दे। जगत के बन्धन यथा सम्भव ढीले करे  जिससे अन्त समय काल की खींचा तानी का दुख और क्लेश न सहन करना पड़े और सहज में छुटकारा पाकर सुरत अपने देश की ओर प्रस्थान करे।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः पोस्ट न. 24 में पढ़ें  

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