Your Questions and Answers [22.]

° अमृत वाणी °

*128. प्रश्न- स्वामी जी सन्त जीव पर क्या- क्या दया करते हैं ?*

उत्तर- संत जो- जो दया जीव पर करते हैं वह आप ही जानते हैं। 
अव्वल अपने देश का आनन्द छोड़कर सतसंग कराकर जीव को परमार्थी घाट पर लाना। 
दोयम निरंजन से डोरियां लेकर ऊंचे मुकामों पर बांधना। 
तीसरे सेवा और भजन कराकर जीवों के करम काटने और अंतरी तरक्की देनी। 

चौथे- मुकाम मुकाम के स्वरूप छोड़कर इस कसीफ चोले और यहां के भोगों को जीवों के निमित्त अंगीकार करना। 
पांचवे जीवों का प्रेम भक्ति देखकर उनकी डोर को अन्तर की सुन्नों में तरक्की देना। 
छठे अंत के समय अपना रूप दिखाकर सुरत को किसी ऊंचे सुन्न में वासा देकर सत्तलोक ले जाना।


*129. प्रश्न- स्वामीजी सुन्नों सुरतें क्या करते हैं ?*

उत्तर- जिन रूहों को सन्त सुन्नों में ठहराते हैं वह रूहें वहां भजन सुमिरन नहीं करतीं, धनी के साथ विलास करती और हैं, और के आनन्द में मगन रहती हैं।


*130. प्रश्न- स्वामी जी जीव को अन्त समय इस देश की कौन से मुकाम तक याद रहती है ?*

उत्तर- पूरे अभ्यासी को मानसरोवर स्नान करके पिंड व संसार की सुध बिल्कुल नहीं रहती मगर इस मुकाम के नीचे तक कुछ सूक्ष्म ख्याल बना रहता है और अंत के समय सरन वाले जीव को तीसरे तिल तक सुध रहती है,  मगर रजगत के जीवों का भास जब नाभि से खिंचता है तो उनकी सुध जाती रहती है।


*131. प्रश्न- स्वामी जी अंतर में कै स्त्रोत है और अभ्यासी को बानी कब रचनी चाहिए ?*

उत्तर- अन्तर में तीन सोत हैं। अव्वल सहसदल कंवल, दूसरा त्रिकुटी, तीसरा दसवां द्वार।  जब तक ये तीनों सोत न खुलें बानी नहीं करनी चाहिए वरना सुरत नीचे उतर आयेगी और  अभ्यास में खलल पड़ेगा। 
प्रमाण के लिये पहले संतों की बहुतेरी बानियां मौजूद हैें, और बानी की जरूरत नहीं।


*132. प्रश्न- स्वामी जी बानी रचने में क्या नुकसान है ?*

उत्तर- जब तक बाचक ज्ञानी बनकर कथनी में लगे रहोगे मालिक नहीं मिलेगा, वह तो करनी से मिलता है। 
कबीर साहब कहते हैं- 
जब लग कथनी मैं कथी दूर रहा जगदीश।।
कथनी वाले से भजन, सुमिरन, ध्यान प्रेम प्रीति से नहीं हो सकता कथनी सिर्फ साधु संत के वास्ते जायज है, वह माया के घेर से बाहर होते हैं।

उनकी कथनी मालिक के हुक्म से होती है और उपकार करती है, जाती फायदे की गरज से नहीं होती है,  उनका प्रेम कथनी करते में भी कायम रहता है मगर कथनी नीचे मुकाम पर बैठकर की जाती है इस को वह पसन्द नहीं करते,  इस वक्त को अपने जीवों और भगतों पर दया करने में खर्च करना पसन्द करते हैं।


*133. प्रश्न- स्वामीजी मोक्ष कै प्रकार की कही जाती हैं? और ऐसी मोक्ष कौन सी है जो आवागमन से बाहर हो और वह कैसे मिल सकती है ?*

उत्तर- मोक्ष चार प्रकार की बयान की गई है- सालोक, सामीप, सारूप, सायुज्य।  मालिक के लोक में पहुंचना सालोक मुक्ती है, मालिक के नजदीक दरबार में बैठना सामीप मुक्ती है,  मालिक का सा ही रूप सुरत का हो जाना सारूप मुक्ती है और मालिक के सारूप में लय हो जाना सायुज्य मुक्ति है । 

संत फरमाते हैं कि असल मोक्ष चौथे लोक में मानसरोवर के मुकाम पर स्नान करने से होती है।  जब तक रूह अन्तर में उस दरवाजे को न पहुंचेगी आवागमन से नहीं छूट सकती और यह दरजा संत सतगुरु या पूरे साध की सेवा और शरण से प्राप्त हो सकता है और किसी तरह हासिल नहीं हो सकता।

जयगुरुदेव।

शेष क्रमशः पोस्ट न. 23 में पढ़ें  👇🏽

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