साधक के लिए...


जयगुरुदेव

【 *साधना से सम्बन्धित विषय* 】


ध्यान के समय कुछ देर बाद जब पैरों में दर्द होने लगे तो थोड़ा बर्दाश्त करें। जब दर्द बर्दाश्त से बाहर होने लगे तो आसन बदल सकते हैं। ऐसी हालत में आसन बदलने में कोई हर्ज नही है। 

धीरे धीरे आपका ध्यान सिमट कर तीसरे तिल में इकटठा हो जायेगा तब पैर में दर्द अनुभव करने के लिए ध्यान नीचे नही उतरेगा और जब सम्पूर्ण  रूप से ख्याल तीसरे तिल में आकर ठहर जायेगा तब सारी तकलीफें खत्म हो जायेंगी।

आंखों पर कोई दबाव नही डालना चाहिए।  ध्यान का केन्द्र आंखों में नही है बल्कि दोनों आंखों के मध्य में है। 
जैसे जैसे सिमटाव होने लगेगा और एकाग्रता पूर्ण हो जायेगी वैसे वैसे सारे झटके खिचाव और कम्पन मिट जायेंगेे। इसके बारे में चिन्ता नही करनी चाहिए। 

सब अभ्यासियों को ऐसी  कठिनाईयां नही होती हैें लेकिन जिन्हें होती भी हैें वे उनसे छुटकारा पा लेते हैं।


★ विशेष ध्यान दें ★
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जब कोई भजन पर बैठा हो तो तुम उसको छुओ मत। तुम छुओगे उसका ध्यान भंग होगा। इतने में ही उसका मन भागदौड़ करने लगेगा। तुमसे गुस्सा हो जाएगा और डाट फटकार करने लगेगा। उसका भजन छूट गया वो लड़ाई में लग गया। 

इसीलिए हमेशा इस बात का ध्यान रक्खो कि तुम्हारे से किसी का नुकसान न हो। तुम आते हो देख रहो हो कि लोग भजन पर बैठे हैं तो तुम्हें चाहिए कि जहां जगह हो वहां तुम चुपचाप भजन पर बैठ जाओ पर तुम सबको पार करके यहां आगे आते हो। कितनों का तुमने नुकसान किया। जिस जिसको धक्का लगा होगा उसका मन खराब हुआ होगा और भजन छोड़कर गुनावनों में लग गया होगा। 
इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। देर से आते हो, अपना तो नुकसान करते ही हो दूसरों को भी बाधा पहुंचाते हो।


- स्वामी जी के वचन
जयगुरुदेव।
amratvani-babajaigurudev
meri-sadhana

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