*प्रश्न-112 स्वामीजी! मन बन्धन ही करता है या सुरत को मोक्ष हासिल करने में भी मदद करता है ?*
उत्तर- मन बन्धन और मोक्ष दोनों का कर्ता है। अगर दुनिया को चाहें तो ओले के समान ज्ञानरूपी खेती पर खराब असर डालता है। अगर परमार्थ में लगे तो जल के समान खेती को मुफीद होता है।
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*प्रश्न-113 स्वामीजी! क्या यह जरूरी है कि सत्संगियों का रंग जर्द हो और शरीर दुबला है ?*
उत्तर- सन्तमत में सत्संगियों का रंग जर्द और कमजोर और दुबला होना जरूरी नहीं है। अगर ठीक तरीके से नित्त नेम किया जावे तो तन्दुरूस्ती ठीक रहेगी मगर इश्क चेहरे पर छिपा नहीं रहता है। वह बेशक जाहिर हो जाता है।
फुकरा का कोल है- आशिक राषश निशान दां ए पिसर, आह सरद रंग जर्दो चश्म पर। गर बिपुर्सी सर्रे दीगर कुदाम, कम खुर्दनो कम गुफतनो खुफतन हराम।।
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114 *सत्संगी- स्वामी जी! अगर किसी दूसरे मत वाले महात्मा का सत्संग हो तो क्या वहां जाना उचित है ?*
गुरु जी- जितने सन्त महात्मा हुए हैं सबकी शिक्षा एक ही है। इसलिए खुशी से जाओ और सत्संग सुनो। जहां निन्दा है, गालियां हैं वहां जाना मना है।
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115 *सत्संगी- जहां राम नाम का जाप होता हो ?*
गुरुजी - कौन से राम का ?
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116 *सत्संगी - क्या राम बहुत से हैं ?*
गुरुजी - राम चार हैं । किस राम की बात करते हो ?
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117 *सत्संगी - उस राम का जिसका जिक्र वाणी में आया है।*
गुरुजी- गुरु नानक साहब ने जिस राम का जिक्र किया है वह सोलह आने ठीक है लेकिन लोगों का राम और ही है।
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118 *सत्संगी- स्वामी जी! चारों राम के बारे में बताईए।*
गुरुजी- एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा।।
पहले राम महाराज दशरथ के बेटे त्रेता युग में हुए। वे अवतार थे और यहां आकर उन्होने अपना काम किया और चले गए। दूसरा राम मन है जो सबके साथ लगा हुआ है। तीसरा राम परमात्मा है जो सबको पैदा करता है, पालता है और संहार करता है। चौथा राम वो सत्तपुरुष हैं जो सबके सिरजनहार हैं, उनसे बड़ा कोई नहीं। ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म, महाकाल पुरुष सब उनसे डरते रहते हैं।
- शाकाहारी पत्रिका 28 जन. से 6 फर. 2002
सवाल जवाब
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119 *स्वामी जी! बुढ़ापे में भजन नहीं हो पाता मेरा कैसे कल्याण होगा ?*
भजन लगन और प्यार की चीज है। आत्मा शब्द का एक कतरा है और जब तक वह इसमें मिल नहीं जाती उसे स्थाई सुख और शान्ति नहीं प्राप्त हो सकती। शब्द ही गुरु है और गुरु ही शब्द है दोनों में कोई अन्तर नहीं। गुरु तुम्हारे अन्दर है और हर वक्त तुम्हारी निगरानी कर रहा है और तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेगा। गुरु अपना कर्तव्य बखूबी जानता है और अच्छी तरह पूरा कर रहा है। निराश नहीं होना चाहिए।
नियम से सुमिरन ध्यान भजन करते रहो मन लगाकर। घाट पर हाजिरी देना जरूरी है। दया का वेग जिस वक्त आएगा फिर जीवात्मा की आंख भी खुल जाएगी और शब्द भी प्रगट हो जाएगा। लगन और तड़प जरूरी है।
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120 *स्वामीजी! छुआछूत का क्या मतलब है ?*
घर हो या बाहर लोग अक्सर कह देते हैं कि उनको छूत लग गई। इसका मतलब यह है कि दूसरे के कर्मों का असर अपने ऊपर हो गया।
छुआछूत की परम्परा मानवों से नहीं बल्कि खराब कामों से बचने के लिए बनी। समाजें जब बनीं तो उनके कुछ आधार थे, नियम थे, परम्परायें थीं, रीति रिवाज थे। सबके सामाजिक पारिवारिक बंधन थे। मानव कर्म और मावन धर्म सबकुछ इनसे बंधा था।
आदमी की पहचान उसके रहन-सहन, मेल-मिलाप को देखकर की जाती थी कि वह कैसा आदमी है, बुरे लोग उसके साथी हैं, तो उससे अच्छे काम की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। इसी को संगदोष कहते हैं साथ रहने का, खाने पीने का असर होता है।
अगर किसी के चोरी के अनाज को, अन्न को खा लिया तो छुआछूत लग गई और उसी प्रकार के विचार मन में आने लगते हैं। कहा भी जाता है कि- जैसा खाये अन्न, वैसा होवे मन। इसी आधार पर छुआछूत, परहेज की परम्परा बनी। इस परम्परा को जब हम मिटायेंगे तो देश, परिवार, समाज, शरीर सबकुछ प्रभावित हो जायेगा। अच्छे का साथ करोगे तो अच्छे विचार होंगे, बुरे का साथ करोगे तो बुरा आचरण होगा। इसीलिए छुआछूत का ख्याल रखना जरुरी है। ऐसा करोगे तभी ध्यान भजन बनेगा।
जयगुरुदेव ◆
शेष क्रमशः पोस्ट न. 20 में पढ़ें 👇🏽
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गुरुवर दया के सागर |
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बाबा उमाकान्त जी महाराज |
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Jay gurudev
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