*जयगुरुदेव : साधक विघन निरुपण 4*

● अमृतवाणी ●

13 *दुनिया के लोग*
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● दुनिया के लोग लालच के वशीभूत होकर नाच रहे हैं। उन्हे ज्ञान अज्ञान का पता नहीं है।

● जड़ वासनाओं से इस चैतन्य शक्ति के अनुभव चाहते हैं और उन्हीं का दिग्दर्शन चाहते हैं उन्हें अफसोस करना चाहिए।

● तुम्हारे अन्दर ही नाद हो रहे हैं क्यों नही सुनते हो? रतन जवाहर की खदान तुम्हारे पास है। तुम उससे महरूम हो।

● गुरु से युक्ति लेकर उन अनमोल जवाहर को प्राप्त करो।

● जब तुम गुरु के पास जिज्ञासु बन कर पहुंचोगे और अमोलक नाम धन पाने का प्रश्न गुरु से करोगे तो यह सत्य है कि गुरु नाम धन जरूर देगा।

● तुम्हारी जिज्ञासा गुरु को मालूम है वह जानता है कि तुम नाम धन चाहते हो या तुमने अपने स्वभाव के अनुसार प्रश्न किया है।



14 *संसारी लोग*
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◆ बहुत से लोग गुरु के पास पहुंच जाते हैं किसी आदमी के जरिए से या उनको दूसरी जगह बैठने या गप्प मारने को न मिली तो चले महात्मा के पास आकर एक प्रश्न कर दिया।

◆ यदि उन्हें समझा दिया गया और समझ में भी आ गया पर अपने मूढ़ अज्ञान भाव में उसे ठुकरा कर फिर उसी अनिच्छा स्वभाव में बरतने लगे।

◆ ऐसे लोग जिज्ञासु नहीं होते हैं। वह तो अपना समय नष्ट कर चुके हैं दूसरों का समय जाया करते हैं।

◆ मैं तो यह कहूंगा कि कीमती वक्त किसी का कोई जाया करता है तो उसे पाप का भी भागी बनना होगा और एक दिन उसके लिए भी आता है जबकि उसे पछताना होगा।

◆ यह मत समझो कि किसी को धोखा देता हूं तो मेरे लिए धोखा नहीं होगा। धोखा तुम्हारे  लिए भी अवश्य होगा।



15 *करनी का फल*
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★ मनुष्य की करनी का फल सबके सामने देर अबेर आयेगा।

★  यदि हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं या किसी के साथ बुरा व्यवहार करते हैं तो इन दोनों का परिणाम हमारे सामने अवश्य आवेगा।

★ वह आंख नहीं हम जो उसे देखें। उसमें वह आंख है जो मुझे देखता है।

★  जो परमात्मा की सत्ता के साथ जुड़ गए हैं वह परमात्मा को सब जगह देखते हैं।

★  हम परमात्मा से जुदा हैं इसलिए परमात्मा सब जगह मौजूद नही है।



16 *हमारे कर्तव्य*
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⭐ तुम यह कोशिश करो कि परमात्मा के साथ जुड़ जाओ। यदि तुम्हे रास्ता मिल रहा है तो तुम गुरु के पास पहुंचों। वह तुम्हें परमात्मा के साथ जुड़ने का भेद देगा।

⭐ गुरु वही शक्ति है जो परमात्मा के साथ जुड़ी हुई है। बाहर की आंखों से हम मनुष्य गुरु देखते हैं।

⭐ समय तो यह है कि जो आत्मा परमात्मा की सत्ता के साथ जुड़कर उसकी तदरूप हो गई वह उस परमात्मा का रूप है जो कि अपनी सत्यता गुरु रूप में प्रगट करता है अर्थात् अपना बोध कराता है।

⭐ जीवन के लक्ष्य का निशाना मुर्गाबी जानती है, पतंगा अपने लक्ष्य को समझता है। हंस अपने को समझता है। पक्षियों की यह हालत है जो कि अपने वसूल को समझ रहे हैं पर अफसोस है कि हम मनुष्य नहीं समझ रहे हैं।

⭐ स्वार्थ भाव में आकर कर्म करे और अपने विचार से कुछ न समझे यह हमारी भूल है।


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17 *साधक के कर्तव्य*
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● हर क्रिया आपको उतनी ही करनी होगी जितना कि हम अपने शरीर के स्वास्थ्य को कायम रख सकें।

● परमार्थ कमाने के साथ साधक को ज्यादा फंसाव संसार में नहीं रखना चाहिए।

● साधक का फंसाव ज्यादा संसार मे रहा तो जब साधक साधन मे बैठेगा उस वक्त उसका मन नहीं लगेगा और अकुलाकर साधन छोड़ देगा।

● साधन करने वाले में इस बात की बहुत बड़ी कमी रहती है जो दूर नहीं कर पाते हैं।

● या तो साधक अपना स्वभाव साधन के वक्त ऐसा डाल ले कि जब साधन में बैठे उस वक्त सब काम छोड़कर साधन में अपना चित्त, मन, सुरत लगाये रहे।

● जब तक साधक इस स्वभाव का साधन नहीं करेगा तब तक मन सुरत एकाग्र नहीं होंगे।

● गुरु के साथ साधक का स्वभाव बदल जाता है। तब साधक साधना में सफलता प्राप्त कर पाता है।

● जब तक इन्द्रिय स्वभावों की कमी नहीं होगी तब तक सुरत जागेगी नहीं।

● आंख, कान, जबान, नाक इन्द्रिय इनका फंसाव भोगों के साथ है। यह इन्द्रिय भोगों के साथ लग कर गुलाम बन गई हैं। मन, इन्द्रियों द्वारों पर बैठकर द्वार का पहरेदार बन गया और सुरत मन की खिजमतदारी करती है। इसी से लोग संसार में फंसे हुए हैं।

● जब इन्द्रियां यानी आंख, कान, नाक, जबान इन्द्रिय का  भोगों से बैराग हो तब मन इन्द्रियों द्वारों पर बैठकर रस लेना बन्द कर देगा और बाद में सुरत को नाम के साथ जुड़ने का मौका मिलेगा।

● पर गुरु दयाल मिलें और अपनी कृपा से इन्द्रियों को और मन को समझौती देकर मोड़ें तब किसी समय में यह मन मानता है।

● मन भोगों का दास बना हुआ है। दास कभी नहीं चाहता है कि हम राजमहल के सुख को छोड़ दें उसे गुलामी में आनन्द आता है।

● सन्त कृपाल होते हैं। मन को समझाकर अन्तर का सुख बक्शते हैं। तब सच्चे स्वाद रस की खबर पड़ती है। 

● फिर भी मन अपने स्वभाव अनुसार सच्चा परख पाकर भी उसे ठुकरा देता है। मन अपनी आदत से मजबूर है।

● लोग शिकायत करते हैं कि हमें अन्तर में शब्द और प्रकाश मिलता था। और अब क्या हो गया जो कि शब्द बन्द हो गया।

● साधकों को समझाया जाता है कि हर स्वांस के साथ कर्मों का खजाना चल रहा है। साधन में जब तरक्की होती है उस वक्त स्वांस के साथ मलीन परदा नहीं है इसलिए
ध्वनि सुनाई देती है अथवा प्रकाश नजर आता है।

● जिन जिन स्वांसों के साथ पाप किए हैं जब वह उनके साथ हो जाता है तब साधक शिकायत करता है कि अब गुरु दया नहीं हो रही है।

● साधक को समझाया जाता है कि गुरु दया का वेग हर वक्त जारी है। उसने अपनी संकल्प शक्ति दी है उसी इच्छा शक्ति से साधक की तरक्की होती है।

● साधन में लगे रहना चाहिए। स्वांस के साथ वाले कर्म कट जायेंगे और बाद में शब्द सुनाई देगा और प्रकाश भी ज्यादा दिखाई देगा।  और गुरु की कृपा रही तो अब से आगे बहुत ज्यादा तरक्की होगी।

●  साधन करने वाले साधक गुरु के शब्दों को भूलते जाते हैं। इसी कारण उन्हें यह दशा भोगनी पड़ती है और अविश्वास के दायरे में आकर कुल मालिक की दया ठुकरा देते हैं।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 05  में...

Parmarthi vachan sangrah
sadhak bighan nirupan 

                ~ बाबा जयगुरुदेव जी महाराज



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Jaigurudev