*Sant Vani*
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आशिक हो कर सोना क्या रे ?
पाया हो तो देन ले प्यारे,
पाए पाए फिर खोना क्या रे ?
रूखा सूखा गुमका (नमक) टुकरा,
फीका और सलोना क्या रे ?
जब अँखियाँ में नींद घनेरी,
तकिया और बिछोना क्या रे ?
कहत कबीर प्रेम का मार्ग,
सिर देना तो रोना क्या रे ?
(जयगुरुदेव)
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गुरु शरणागति छाड़ि के , करै भरोसा और |
सुख संपदा की कह चली , नहीं नरक में ठौर ||
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ज्ञान समागम प्रेम सुख , दया भक्ति विश्वास |
गुरु सेवा ते पाइए , सतगुरु चरण निवास ||
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गुरु समान दाता नहीं , याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा ,सो गुरु दीन्हों दान ||
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सब धरती कागज़ करूँ , लिखनी सब बनराय |
सात समंदर की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाए ||
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गुरु को सिर पर राखिये , चलिए आज्ञां माहिं |
कहें कबीर ता दास को , तीन लोक भय नाहीं ||
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गुरु मुरति गति चंद्रमा , सेवक नैन चकोर |
आठ पहर निरखत रहे,गुरु मुरति की ओर ||
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मूल धयान गुरु रूप है , मूल पूजा गुरु पाँव |
मूल नाम गुरुवचन है , मूल सत्य सतभाव ||
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गुरु समान दाता नहीं , याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा , सो गुरु दीन्हों दान ||
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जैसी प्रीति कुटुम्ब की , तैसी गुरु सों होए |
कहैं कबीर ता दास का , पल्ला न पकड़े कोई ||
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माता पिता सूत इस्तरी , आलस बंधू कानि |
संत दरश को जब चलैं , ये अटकावैं आनि ||
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इन अटकाया न रुके , साधू दरश को जाए |
कबीर सोई संतजन, मोक्ष मुक्ति पाए ||
*जयगुरुदेव......*
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Jaigurudev