◆ जयगुरुदेव | इतिहास के पन्ने ◆

*क्या आपको पता है कि-*

सतयुग आ रहा है और कलयुग जाने की तैयारी कर रहा है। साथ ही अपना कर्जा भी कलयुग मांग रहा है और यह भी सत्य है कि कर्जा न अदा करने पर एक थप्पड़ मारेगा कि न जाने कि कितने धराशायी हो जायेंगे। कर्म कर्जा बिना महात्माओं के कोई  अदा नहीं करा सकता। 

कलयुग में कलयुग जाएगा और कलयुग में सतयुग आएगा। यह बात बाबा जयगुरुदेव जी ने बहुत पहले कही थी। जब कभी भी युग परिवर्तन हुआ है, भारत वर्ष कारण बना है। त्रेता में विश्वयुद्ध का कारण भारत वर्ष था, द्वापर में भी विश्वयुद्ध का कारण भारत वर्ष था। अब जबकि युग परिवर्तन होने जा रहा है तो इस समय में भी विश्वयुद्ध का कारण भारत वर्ष को बनना होगा। जो हालात देश व दुनिया के सामने नजर आ रहे हैं उससे ऐसा ही नजर आ रहा है। सभी लोग कहने लगे हैं कि काश्मीर समस्या का समाधान अब युद्ध से ही संभव है। 

बाबा जयगुरुदेव जी के शब्दों में- चण्डी देवता देश विदेश में भ्रमण कर रहे हैं और बडे़-बड़े राष्ट्रों के राष्ट्रध्यक्षों के मस्तक को झकझोर कर रख देंगे। घटनायें होंगी फिर विचित्र समय का आगमन होगा और सर्वत्र आनन्द छा जायेगा। जाने माने विदेशी भविष्य वक्ताओं ने एक ही बात कही है कि आगे विश्व का संचालन किसी आध्यात्मिक पुरुष के हाथों में चला जायेगा और वह महापुरुष भारतवर्ष का होगा।



*क्या आपको पता है कि-*
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 कबीर साहब ने कहा है कि- 
*जीव जन्तु सब मार खात हौ, तनिक, दरिद ना आई।*
*पग-पग पर तोहिं कांटा मिलिहें, यह फल आगे आई।।*

कबीरदास जीे ने हिंसा का क्या फल मिलेगा ? उसका इशारा किया है। सभी महात्माओं ने किसी भी जीव हिंसा को सबसे बड़ा गुनाह माना है। सन्तमत में तो शाकाहारी होना पहला और कट्टर नियम है। 
स्वामी जी महाराज सत्संग में सुनाया करते हैं कि चोरी, झूठ, लूटपाट, इस तरह के गुनाह छोटे तो नहीं हैं। पर इसमें आप अपने ऊपर बुराईयों को बोझा लादते हो लेकिन जीव हिंसा में आत्माओं की पीड़ा है जो अक्षम्य है। यह ठीक है कि इस सृष्टि में जो जन्म लेता है वह मरता है लेकिन उसका जिम्मेदार ऊपर वाला है, हम नहीं हैं। हमें भी स्वांस की पूंजी थोड़े दिनों के लिए मिली है। हम अपनी रक्षा कर लें। मनुष्य जीवन मिला है तो दूसरों की भलाई कर लें अगर भलाई नही कर सकते तो किसी का बुरा भी न करें। लेकिन हिंसा का पाप सबसे बड़ा है। और कहा गया है कि हिंसा का पाप किसी एक के सिर पर नही लगता। इसमें हिंसा करने वाला, खरीदने वाला, बनाने वाला, उकसाने वाला, बताने वाला, मान्स ले जाने वाला, बेचने वाला, खरीदने वाला, बनाने वाला, खाने खिलाने वाला सब दोषी हैं और उनकी जीवात्माओं पर भारी पाप लदता है। जीवन काल में एकबार भी मांस का टुकड़ा खा लिया तो मरने के बाद जीव सीधे नरकों में भेज दिया जाता है।

(शाकाहारी पत्रिका 21 से 27 जनवरी 2013)




*वो दिन जब याद आते हैं काफिला गीत* 
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‘‘राजस्थान -गुजरात’’ प्रान्त में, चला काफिला जून से।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।
‘पौने पांच’ थे पांच ‘पांच जून’ को, सुबह सुबह की ‘‘बेला’’ थी,
जीव जगाने वाले गुरु की, मौज बड़ी अलबेला थी।

‘दो हजार सन पांच’ को फिर से, चला ‘‘दूसरा’’ काफिला,
‘खेड़ली मोड़’ भरत पुर में, जा पहुँचा ‘‘दिलकश’’ काफिला,
‘‘जयगुरुदेव’’ नाम से ठण्डक मिल गई जैसे ‘मून’ से ।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।।1

‘अग्रसेन स्कूल’- ‘किशनगढ़’ ‘बांगड़’ के विद्यालय में,
‘आतम भेद’ सिखाया गुरु ने, ‘आध्यातम’ विद्यालय  में।
‘मानव मन्दिर’- दुर्लभ तन में, ‘‘भजन’’ कमाई कर डालो,
‘शाकाहारी’ बन जाओ गन्दगी निकालो ‘खून’ से ।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।2

‘ऊंझा का विसनगर रोड’- ‘‘मार्केट यार्ड राँधेजा’’ का,
भाव उमड़ आये जनता के, ‘आबू रोड’ ‘‘सिरोही’’ का,
‘बावला’ के जन हुए बावला, ‘‘क्या पायें क्या दे डाले’’ं,
‘चैकड़ी’ गांव की जनता न्यारी, ‘‘कितनी दया हम पा डाले’’?
अपने गांव में ‘गुरुवर’ को ठहराया उसने ‘सून’ से ।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।3

‘अलंग’ गांव ‘रजुला’ दीप तट और जिला ‘अमरेली’ में,
सच्चा प्रीतम पा जावोगे ‘‘शुद्ध डोर’’ की मेली में,
मैं तो ‘महात्मा’ हो नहीं सकता मैं तो तुम्हारा ‘‘सेवक’’ हूं,
‘मरते दम’ तुम याद करोगे- ‘‘मिलूंगा’’ पक्का सेवक हूं,
काफिले में गाड़ी ले चलना चाहो पूछ लो ‘उनसे’।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।4

तुमको ‘समय नहीं है’ प्यारे मुझको तो ‘बिल्कुल ही नहीं’,
‘छान्नवे साल’ की उमर हमारी, ‘‘मुझे चैन बिल्कुल ही नहीं’’,
चौरासी’ से जीव बिचारे, ‘किसी तरह से बच जायें’,
यही ‘सोचकर’ निकला हूं मैं, ‘‘नरक यातना’’ ना पायें,
ना ‘आंधी बरखा’ की चिन्ता नहीं कोई डर नून से।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।5

आपने हमको ‘‘जगह’’ दिया और ‘‘पानी’’ खूब पिलाया है,
नहीं ‘‘भूल’’ पाऊंगा इसको जो ‘‘सेवाभाव’’ दिखाया है,
मुझको ‘जो कुछ’ कोई देता है, नहीं पास मैं  रखता हूं,
सेवा अंगीकार किया फिर, वापस उसको देता हूं,
पता लिख देना तुम अपना, बात करुंगा फोन से।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।

अहमदाबाद में हुआ समापन, प्रेमी जन को विदा किया,
खुद इन्दौर पधारे स्वामी, जनता को आबाद किया,
सत्संग दर्शन देकर स्वामी, रात्रि पड़ाव भी वहीं किये,
भोर में 4 बजे ही चलकर- ग्वालियर प्रस्थान किये,
आश्रम में लौटे हैं स्वामी जैसे देहरादून से।।
सतगुरु ने ‘निज’ दया संवारी, दया लुटाया ‘दून’ से।।
-डा. कुंवर बृजेश सिंह



*यादों के झरोखे से- सरिता*
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बात सन 1990 कृष्णानगर मथुरा आश्रम की है। गर्मी में हम आश्रम पर आये थे, उन दिनों  आश्रम पर दुकानों का निर्माण कार्य चल रहा था सड़क के किनारे दिन भर तो सब काम में रहते थे। शाम 7 बजे सब लोग आश्रम के आंगन में आ जाते थे। उस समय यही कोई 12 - 14 लोग थे। 

स्वामी जी महाराज भी आकर हम सब लोगों के बीच बैठते थे और प्रार्थना करवाते थे। सत्संग के वचन सुनाते थे। 
स्वामी जी महाराज ने ‘तेरे सिवा वो कौन है...... प्रार्थना की दो पंक्तिया लिखी और शालिग्राम मिश्रा को देकर कहा कि इसे पूरा करके हमें दिखाओ। 

ये मैं आपको बता दूं आप की जानकारी के लिए शालिग्राम जी प्रार्थनायें लिखा करते थे। वो बनारस के रहने वाले थे और स्वामी जी महाराज के साथ दौरे में बराबर रहते थे। 
मिश्रा जी ने स्वामी जी से कागज और स्वामी जी की लिखी उन दो पंक्तियों को पूरा रूप दिया फिर स्वामी जी को दिखाया, स्वामी जी महाराज ने उसको बड़े ध्यान से पढ़ा और कहा कि ‘ठीक’।

स्वामी जी ने वो प्रार्थना मुझे देते हुए कहा कि इसको बोल। एकदम से मुझे घबड़ाहट हो गई। मैं समझ नहीं पा रही कि कैसे स्वर में बोलूं सोचने का मौका था। जैसे भी बन पड़ा मैंने बोलना शुरु किया-
*‘तेरे सिवा वो कौन है जानू मैं अपना जिसे गुरु।* 
*अपना जिसे माना था मैं, वो सब बेगाना हुए गुरु।।*

स्वामी जी महाराज ने बीच में ही मुझे टोक दिया और कहा कि मुझे उर्दु गजल का राग नहीं चाहिए। ये प्रार्थना है। मैं चुप हो गई। स्वाजी जी ने कहा कि इस प्रार्थना के राग को तू ठीक कर शाम को बोलना।
दूसरे दिन शाम को स्वामी जी महाराज ने फिर वहीं प्रार्थना बोलने को कहा। 
मिश्रा जी के सहयोग से मैंने राग संवार दिया था। प्रार्थना बोली तो स्वामी जी ने ओ.के. कर दिया।

साभार,
शाकाहारी सदाचारी पत्रिका,  28 से 6 मई 2010

जयगुरुदेव ◆

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