*नवरात्र एवं उपवास का महत्व, क्यों करें, कैसे करें तथा नवरात्र के उपवास से शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ का संत उमाकान्त जी महाराज द्वारा वर्णन*
(लघु सत्संग, बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन,
9 अक्टूबर 2018, शाम 7:30 बजे )
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*1.* शुद्धिकरण, दिल, दिमाग और बुद्धि सही रखने के लिए समय - समय पर संत महात्माओं ने नियम बना दिए. क्वार महीना परिवर्तनकारी होता है, परिवर्तन दिखाई पड़ता है |
*2.* सबसे पहले मौसम का परिवर्तन होता है | गर्मी और बारिश का अंत हो जाता है, और ठण्ड की शुरुवात हो जाती है | तो ये जो बीच का 9 दिन का समय होता है, ये लोगों के लिए परिवर्तनकारी होता है | तत्वों की इसमें तबदीली होती है|
*3.* मेहनत करने वाले का हजम हो जाता है, उसकी अग्नि तेज रहती है, 40-42 रोटी तक का नाश्ता करने वाले अब भी मौजूद हैं | मेहनत नहीं करने वाले का हजम नहीं होता, उनके लिए तो ज्यादा जरुरी है सफाई करना, पेट को साफ़ रखो, नहीं तो आंतड़ियों में मल इकट्ठा हो जाता है तो फिर भूख ख़तम हो जाती है, सड़ता है और भूख ख़तम हो जाती है, तो शरीर के शुद्धिकरण, ओवर हालिंग के लिए ये नवरात्रा का व्रत बना दिया|
लेकिन पहले से ही लोग बहुत खरीद के रख लेते हैं की ये-वो बढ़िया बना के खाएंगे और खुद ही मान्यता दे देते है की फलाहारी है तो पेट और खराब हो जाता है| तो जो ये निशाना बना लेते है की व्रत भी रखेंगे और खाएंगे भी खूब, उनको तो कोई भी फ़ायदा नहीं होता है|
*4.* तो व्रत रखने का सबसे पहला तरीका ये है की नींबू को पानी में निचोड़ो और उसी को पियो| नींबू का काम होता है सफाई करना, कपडे की धुलाई, चूल्हे के बरतन पर लगी चिकनाई/कालिख की सफाई, नींबू में खारापन होता है, नींबू मनुष्य के लिए अमृत है लेकिन उसका बीज पेट में नहीं जाना चाहिए| बीज जाने से उसके तत्व कम/ख़तम हो जाते हैं|
*5.* अमरुद भी फायेदेमंद है, आतों को, पेट को साफ़ करता है लेकिन अमरुद का बिना दांत से टूटा साबुत बीज पेट में जाना चाहिए. वो मल को लपेट कर के वो दाना बाहर निकाल देता है. तो कहा गया की बीज यदि ना हो तो अमरुद जहर होता है.
अमरुद के छिलके को ही छील खाओ तो नुक्सान करता है, उसकी तासीर ठंडी होती है. और ऐसे ही खाओ तो फायदा करता है. और भून के खाओ तो ज्यादा फायदा करता है. दमा के रोगी को खांसी आती है या जुखाम साथ नहीं छोड़ता है तो उसे अमरुद भून करके खिलाओ तो फायदा करता है|
*6.* तो नींबू का बीज पेट में नहीं जाना चाहिए. नींबू पानी यदि 9 दिन पी लिया जाए तो ओवरहालिंग हो जाती है| जैसे बड़ी बड़ी मशीनों की धुलाई होती है, उनके पार्ट पुर्जे बदल लिए जाते हैं शुगर फैक्ट्री, धान की मिलें है, तो जब धान की कुटाई, चावल निकालने का समय आता है, जब तेल पेरने का सीजन आता है और मिल को चालू करने का समय होता है तो पहले उसकी धुलाई-सफाई, नट-बोल्ट को कसा जाता है, घिसा हुआ पुर्जा नया लगाया जाता है, फिर चालू करतें हैं, ऐसे ही शरीर की ओवेरहालिंग हो जाती है|
*7.* 1-2 दिन तो तकलीफ होती है, फिर सेट हो जाता है| सारा झंझट ख़तम – ना खाने का और ना लेट्रिन जाने का, जब डालोगे नहीं तो निकलेगा क्या? तो समझ लो की बंद हो जाता है, समझ लो की गए और फॉर्मेलिटी पूरी करके आ गए. स्वतंत्र हो जाता है|
*8.* उपवास से शरीर भले ही देखने में लगे दुबला, कमजोर लगे लेकिन स्टेमिना, ताकत जिसको कहते है, वो बढ़ जाती है. 2 दिन की तकलीफ के बाद तीसरे दिन से कम होने लगती है|
*9.* यदि ना कर पाओ तो थोड़ा सा आलू खा लो. आलू में बड़ी ताकत होती है. वो भी ना हो पावे तो खिचड़ी खा लो, एक ही टाइम भोजन कर लो. तो इस पेट को थोड़ा आराम मिल जाता है. ये सब तरीके निकाले जाते हैं|
*10.* पहले के तरीके थे| पहले लोग अष्टांग योग, हठ योग करते थे, कुन्डलीनियों को जगाते थे, प्राणायाम करते थे; उम्र उस समय ज्यादा होती थी, पेड़ों पर लटके रह जाते थे, शरीर सूख जाता था लेकिन कामयाबी नहीं मिली तो ये सब करते थे| मई-जून की गर्मी में चारों तरफ आग रख के, मटके में आग सर पर रखके, शरीर को पंचाग्नि देते थे| लेकिन अभी नहीं कर सकते|
*11.* इसलिए संतों ने सरल किया, बहुत ज्यादा सरल किया, इसको ख़तम कर दिया, ऐसे ही विकल्प खोजा गया, विकल्प में कम से कम कुछ तो करो, तो तरीके बदल दिए जातें है, समय समय पर आसान किया जाता है|
*12.* तो प्रेमियों, कल (10.10.2018) से नवरात्री शुरू हो रही है, तो इन तरीकों में *सब को कुछ ना कुछ करना चाहिए|*
*13.* दूसरी बात ये है की तत्वों की तबदीली का समय जब आता है तो इसमें तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण ये ख़तम होते हैं, तमोगुण में आदमी को क्रोध ज्यादा आता है, रजोगुण में आलस कितना भी जगा लो, हाँ-हूँ करता रहता है और फिर नाक बोलने लगती है; आरामतलबी, सतोगुण- जैसे “पुण्य पाप जब दोनों नाशे, तब पावे ममपुर वासे|” तो जो इसमें फंसे रह जाते है की जा रहे है देवी की पूजा करने, तो हम भी चलें जाएँ, कुछ अपने घर में देवी-देवता बेठातें हैं, जानते ही नहीं की कौन है| जो बाप-दादा, सास-ससुर करतें रहे वही करने में लग जातें हैं तो जिसको लोगों ने सतोगुणी मान लिए उसी में समय निकल जाता है| इसलिए इन सबको ख़तम करने की जरुरत है| तो 3-3 दिनों में ये नष्ट होतें हैं, तमोगुण में क्रोध, काम वासना, लोभ-मोह कम होता है, रजोगुण में पेट खाली रहता है तो आलस ख़तम होता है, तो भजन और शब्द के पकड़ने में मन लगता है| और ये पूजने वाले देवी-देवता जब अंतर में दिखाई देतें है तो विश्वास हो जाता है, फिर जिसको उसने सतोगुण मान लिए, वो ख़तम और जो मालिक के असली गुण पकड़ लेता है और काम बन जता है|
*14.* क्वार और फिर चेत्र में व्रत| इसका मतलब समझा जाए तो बड़ा ही महत्वपूर्ण है| स्वास्थ्य और पूजा-उपसाना, आध्यात्म की दृष्टि से भी, जैसे दुनिया के लोग पूजा करते हैं, भूत-प्रेत छुड़ाते हैं, ऐसे ही सत्संगियों के लिए भी ये ध्यान-भजन का एक अच्छा मौक़ा होता है, खाली पेट रहने से मन उधर लगता है|
*15.* तो आप सभी जो इस सन्देश को सुनें, देखें, पढ़ें – सबके लिए, समझ लो, उपयोगी समय है|
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