बाबा जयगुरुदेव जी महाराज का अनमोल सन्देश -

【 स्वामी जी की कलम से 】


प्रेमियों! प्रेम भाव में मगन रहो। जीवन के दिन मनुष्य के थोड़े होते हैं। अन्तर स्वरूपों की साधना में स्थित रहने की सर्वदा कोशिश करना चाहिए। अपने अमूल्य जीवन के श्वांस को एक भी नष्ट नहीं करना चाहिए।

सभी लोगों को याद दिलाता हूं कि आंखों में सदा प्रेम का जल भरा रहे और उस अनामी मालिक के लिए तड़पते रहो। सौभाग्य है कि उसका भेद मालूम हुआ। जीव अकेला इस संसार से जाता है। उसका कोई रक्षक नहीं है और अभेदभाव में चला जाता है। उस गुरु की महान दया हुई जिसने अपनी प्रेरणा देकर चन्द जीवों को सुगम पथ पर लगाया। जीवों को अपना भाग्य जगा लेना चाहिए। अन्तर भाव में प्रेम का चिन्तन करते रहें और अपने सिर पर महान को टिका लें। 
संसार विघ्न की खदान है उससे सत्संगियों को घबड़ाना नहीं चाहिए। अपनी-अपनी वासनाओं को दमन करें और उसकी मौज में रहना सीखें और सावधानी से चलें। संसार का रुख विनाश का है। आगे समझ में आएगा।



● स्वामी जी ने कहा ●
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> तुम लोग कहते हो कि हमें तकलीफ है तो मैं कहता हूं कि भजन करो तो कर्म कटेंगे और तकलीफ कम होगी। भजन नहीं करोगे तो फिर भोगो।

> तुम लोग सीधे मुझसे सम्पर्क रक्खो और मुझसे पूछो तो तुमको धोखा नहीं होगा। किसी से कोई बात करने की जरुरत नही है।

> ईमानदारी की कमाई खाने से भजन बनेगा। गृहस्थ आश्रम उत्तम है।  न जानो तो नर्क है।

> लोग मुझे सीधा समझते हैं लेकिन मैं इतना सीधा नहीं हूं, बस मैं चुप रहता हूं।

> संगत की सेवा महात्माओं की सेवा होती है। अब सब लोग यह सोचें कि  हम केवल महात्माओ की सेवा करें तो नहीं कर सकते। इसीलिए महात्माओं ने संगत की सेवा रक्खी है। उनका जो आदेश हो वो आप करिए यही महात्माओं की सेवा है। फल सबका एक होता है। महात्माओं से प्रेम करने दया लेने की एक व्यवस्था होती है।



★ विशेष ध्यान दें ★
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जब कोई भजन पर बैठा हो तो तुम उसको छुओ मत। तुम छुओगे उसका ध्यान भंग होगा। इतने में ही उसका मन भागदौड़ करने लगेगा। तुमसे गुस्सा हो जाएगा और डाट फटकार करने लगेगा। उसका भजन छूट गया वो लड़ाई में लग गया। 

इसीलिए हमेशा इस बात का ध्यान रक्खो कि तुम्हारे से किसी का नुकसान न हो। तुम आते हो देख रहो हो कि लोग भजन पर बैठे हैं तो तुम्हें चाहिए कि जहां जगह हो वहां तुम चुपचाप भजन पर बैठ जाओ पर तुम सबको पार करके यहां आगे आते हो। कितनों का तुमने नुकसान किया। जिस जिसको धक्का लगा होगा उसका मन खराब हुआ होगा और भजन छोड़कर गुनावनों में लग गया होगा। 
इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। देर से आते हो, अपना तो नुकसान करते ही हो दूसरों को भी बाधा पहुंचाते हो।



* स्वामी जी का सन्देश*
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परमात्मा आपका कुछ नहीं कर सकता। जो आप करते हो वही कर्म फल देता है और उस कर्म फल के लिए परमात्मा तक जाने की जरुरत नहीं। जिस प्रकार कोई काम करने पर यहीं की कचहरी में उसका फैसला हो जाता है, दिल्ली जाने की जरुरत नहीं। उसी प्रकार उसकी नुमाइन्दा हस्तियां बीच से ही सब फैसले करती हैं। वहां कोई नहीं पहुंचता। 



◆ सब सावधान हो जाओ ◆
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हमने अथाह मेहनत की। तुम्हें यह सोचना चाहिए कि आगे चले चलें पर तुम पीछे छूट जाओ, मुड़ जाओ तो हम क्या करें ?
हमारे गुरु महाराज कहा करते थे कि तुम अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ते चलना। जो साथ चलेंगे साथ लेना, जो रुक जायं उन्हें पीछे मुड़कर मत देखना।

हम कभी सोचते हैं तो रोना आ जाता है कि महात्माओं को कितनी तकलीफ होती है जब वो देखते हैं कि जीवों को कैसी कैसी यातनायें दी जाती हैं। तुम सत्संग में आते हो, सत्संगियों से नफरत करते हो, संसारियों से भी ज्यादा दुश्मनी और बैर-भाव रखते हो, मिलकर एक जगह बैठ नहीं सकते, किसी से मिलते जुलते  नहीं तुमको बुलाया जाता है तो मुंह ढककर लेट जाते हो। इतनी  चोरी।

तुम्हें तो अपनी गल्तियों की माफी मांगनी चाहिए थी। इससे सत्संगियों का भाव बनता। 
ऐसा लगता है कि तुमने सत्संग नहीं सुना। यह सत्संग का मैदान है, कोई राजनीतिक अखाड़ा नहीं है। हम तो पहले कभी कुछ कह देते थे वह तुम्हारी सावधानी के लिए। राजनीतिक तो मैं तब भी नहीं था। राजनीतिक तो तुम निकले। सब छोड़ दिया।
छोटे से शब्दों में सब संकेत दिए जाते हैं। आप सब सावधान हो जाओ। समझदारों के लिए इशारा बहुत है नहीं तो भैंस के आगे बीन बजावें, भैंस खड़ी पगुराय। उसको बीन से क्या लाभ ?

- बाबा जयगुरुदेव जी, 17 जुलाई 2000
( साभार, शाकाहारी पत्रिका 7 से 13 अगस्त 2013 )

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