गौ माता की महिमा (1)

  जयगुरुदेव
◆ गाय बने राष्ट्रीय पशु ◆

यह सभी जानते हैं कि गाय एक शाकाहारी एवं लोक उपकारी पशु है। लोक हितकारिणी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की प्रतीक है, यह।
जब से इसका सम्बन्ध मनुष्य से जुड़ा है तबसे यह कृषि, धर्म, आयुर्वेद तथा अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ अंग के रूप में जानी जाती है।
धर्मग्रन्थों में इसकी अवर्णनीय महिमा का वर्णन है। इसके प्रत्येक अंगों मे देवी देवताओं का निवास माना जाता है और इसे खोलते रक्त, पीव और मांस से भरी नरक की अपार नदी वैतरणी से उबारने वाली मानने की परम्परा है।

हिन्दु समाज में गोदान, गो दक्षिणा की परिकल्पना इसी को लेकर है।

लोक दृष्टि से भी यह लोक हितकारिणी, मंगलकारिणी है। आयुर्वेद में गोमूत्र, गोबर का रस, दूध, दही, घी के मेल से बने पंचगव्य को अमृत रसायन कहा गया है। इसे बुढ़ापे में भी युवा का बल, स्मृति देने वाला एवं रोग प्रतिरोधी माना गया है।
पूजन विधानों में पंचामृतों में अधिकांश गोरस ही है।

दूसरे शब्दों में धर्म और आयुर्वेद की कल्पना गाय के बिना अधूरी है। तभी तो हिन्दु इसे श्रद्धा से गोमाता कहकर पूजते और पुकारते हैं।
‘‘गावः में अग्रतः सन्तु गावः सन्तु पृष्ठतः
(गाय मेरे आगे भी हो और पीछे भी हो)

गाय धर्म-निरपेक्ष और लोक सापेक्ष है। यह लोगों का उपकार करने में इंसान से भी बढ़कर है। यह बिना जाति, धर्म मजहब का भेद किये सबका हित करती है। इसे पालने वाला हिन्दु हो या मुसलमान इसके दूध, घी, दही, छाछ, मक्खन, मलाई सबका हित करते हैं।
किसी भी धर्म मजहब या देश की मां हो, अपने दूध के अभाव में बच्चों को अत्याधिक पुष्ट एवं स्वस्थ रखने के लिए उत्तम दूध हेतु गाय की ओर ही याचक भाव से देखती है।

कृष्ण का गो -प्रेम और गो-सेवा तो आज भी चर्चा का विषय है। बैल को कृषि का मेरुदण्ड कहा जाता है। विज्ञान के इस युग में भी छोटे किसानों के खेती का सहचर बैल ही है।
शान की सवारी बैलगाड़ी आज भी बैल के पैरों से ही चल कर खेती के सामान घर तथा खेतों तक पहुंचाती है।
लोग कहते हैं कि शंकर जी ने अपनी सवारी भी इसी को चुना। इसे धर्म का मार्गी बतलाया। गाय ऐसे धर्म मार्गी की जननी है। यह बुढ़ापे में भी हितकारी स्वभाव को नहीं छोड़ती। उस समय भी अपने गौमूत्र और गोबर से यह हमारे लिए ईंधन, औषध एवं खेतों के लिए उत्तम खाद प्रदान करती है।


अब हमें यह सोचना होगा कि केवल पूजन कर अथवा ‘गोमाता’ कहने से इसका सही सम्मान नहीं हो सकता । बूढ़े माता पिता की तरह बुढ़ापे में इसकी भी सुरक्षा का भार लेना होगा।
अगर ऐसा नहीं किया और बदस्तूर गाय को कसाई के हवाले करते रहे, तो निश्चय जानिये अपनी इस कृतघ्नता के कारण हमसे मनुष्य जाति की पहचान मिट जाएगी।

मांस, मछली, अण्डे, मुर्गी का सेवन, सुरा सुन्दरियों का उपभोग, ये सदा से पतित कर्म कहे गए हैं।
मनुष्य चाहे किसी भी जाति, धर्म, कौम या मजहब का हो, निष्ठावानों ने कभी इन्हें तरजीह नहीं दी और वक्त आने पर अपने उपकार करने वालों को सम्मान और उनकी रक्षा के लिए प्राण तक न्योछावार करने के लिए तैयार रहे।

ऐसे श्रेष्ठजनों की संतान, ऐ मानवमात्र इंसान, क्या तुम केवल अपने को हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई कहकर अपनी सर्वविध उपकारिणी गाय का वध कर डालोगे ? मेरा विश्वास है, हम मनुष्य कृतघ्न नहीं, कृतज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। जिस देश का शिवि जैसा सपूत एक कबूतर की जान बचाने के लिए उसके बदले शिकारी को अपने शरीर का मांस दे डालता है, उस देश की संतानें गाय तक की हत्या कर डालें, वधशालाओं में भेज दें, यह घोर शर्म का विषय है। 

बाबा जयगुरुदेव जी कहते थे कि गाय और बैल चौरासी योनियों में अन्तिम योनि है। अगली योनि मनुष्य की है। ये गायें स्त्री और बैल पुरुष बनेंगे।
इसी कारण मानव के स्वभाव इस योनि में हद तक आ जाते हैं। मार दिए जाने पर बची हुई स्वांसो को पूरी करने के लिए इन्हें प्रेतयोनि में भटकना पड़ता है, और ये वधिकों, बेचने, खाने एवं बनाने वालों परोसने वालों, सबको परेशान करते हैं।
आगे ये उन्हीं के घर चिड़चिड़े एवं क्रूर संतान बनकर आते हैं और पूरे परिवार का जीवन नरक दोजख बना डालते हैं।

यह सूक्ष्म रहस्य, जिनकी दृष्टि खुली होती है, वैसे महात्मा जानते हैं और वे ऊपर भी कर्मों का फल भोग रही जीवात्माओं की दुर्गति देखते रहते हैं, इसलिए करुणा भरे स्वर में सदैव शाकाहार और गो रक्षा की ओर सबको प्रेरित करते रहते हैं।
यह मानें न मानें, आपकी मर्जी, परन्तु कुदरत तो कर्मों का हिसाब करने में कोई जाति, धर्म, मजहब, पंथ या देेेश नहीं देखती।

कई संगठनों के द्वारा गो रक्षा आंदोलन लम्बे समय से चलाये जा रहे हैं। उनके द्वारा कई बार में सहिष्णुता भूलकर मारपीट, हिंसा, तोड़ फोड़, हड़ताल आदि का भी सहारा लिया जाता है। 
गो ज्ञान, सादगी, सरलता, अहिंसा और लोक हित का प्रतीक है। अतः उसकी रक्षा के लिए वैसे ही विवेक पूर्ण प्रयास की जरुरत है, और अहिंसक जन जागरण से ही संभव है। 


बाबा जयगुरुदेव के वर्तमान उत्तराधिकारी पूज्य सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज अपने हर सत्संग मंच से सम्बोधित करते हुए कहते हैः ‘‘प्रेमी भाई बहनों,
कोई हड़ताल, आन्दोलन करने की जरुरत नहीं है। जितने गो हत्या के खिलाफ आन्दोलन करने वाले लोग हैं, आपसे मेरी ये प्रार्थना है कि कोई हड़ताल, तोड़फोड़, आन्दोलन मत करो। आप सरकार से प्रार्थना करो कि एक लाईन का कानून ये बना दें किः
‘‘गाय एक राष्ट्रीय पशु है।’’ एक गौ हत्या नहीं होगी। अगर ये कानून नहीं बनाएंगे तो कोई और बना देगा, वह समय आएगा। यह धर्म धरती है। इसकी आवाज पंहुचेगी। यह भक्तों की आवाज है।

आज देश भर में इनके प्रेमी अलग अलग टोलियों में नीचे से ऊपर तक सभी अधिकारी एवं मंत्रियों से महाराज जी की आवाज सरकार तक पंहुचाने का आग्रह कर रहे हैं। उनके आग्रह गीत की कुछ पंक्तियां देखिए-

‘‘करते हैं महाराज जी, इंसां से यही पुकार,
गाय बने राष्ट्रीय पशु करो जतन इस बार।
शाकाहारी सभी बनें सब रोगों से हो मुक्ति,
मंत्री अफसर सब मिलकर सरकार को दें यह युक्ति।
यह प्यारी गो माता करती जन का उपकार।
राष्ट्रीय पशु बनने का इसको सच्चा अधिकार।।’’
(जयगुरुदेव अमृतवाणी से साभार)

शेष क्रमशः पोस्ट न. 2 में पढ़ें  👇🏽
जयगुरुदेव 

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