परिवर्तन की निशानी

【 जयगुरुदेव 】


‘‘नर - नारियों, बच्चे-बच्चियों, हिन्दु- मुसलमानों! सही सच्ची बात तो यह है कि एक परिवर्तन होगा, और वह परिवर्तन का संकेत क्या है कि कलयुग में कलयुग जाएगा और कलयुग में सतयुग आएगा।
अभी तो कलयुग नहीं गया। जब जाने लगेगा तो उसका जो भी आपके ऊपर कर्जा होगा, वह चुपचाप नहीं जाएगा, कर्जा आपसे मांगेगा।
वह कर्जा आपके ऊपर क्या होगा ? कि आपने कितने झूठ बोले, कितना धोखा दिया, बेईमानी की, कितने जानवर मारे, कितने पंछी मारे, कितने आदमी आपने मारे और कितनी आपने चोरियां डकैतियां कीं ?
ये सब कर्म कर्जे होते हैं। आपने इन्हें जमा करके अपने ऊपर लाद लिया।

अब इतना बोझा, पहाड़ की तरह लद गया है कि बस उसके लिए बयान और वर्णन नहीं किया जा सकता है। जब कलयुग जाने लगेगा तो वह कहेगा कि भाई! हमें हमारा कर्जा दे दो, हम तो अब जा रहे हैं।
आप कहोगे कि मैं तो नहीं दे पाऊंगा, तो वह क्रोधित हो जाएगा, गुस्से में और जोर से थप्पड़ मारेगा। इतनी जोर से मारेगा कि बीसों करोड़ो लोग देखते देखते इस मिट्टी मे लापता हो जाएंगे, फिर वह भागेगा।
इधर भागेगा जोर से, उधर सतयुग आता होगा तो दोनों की टक्कर हो जाएगी। बीच में जो दब जाएंगे, दो युगों की चक्की के पाटों में वे चकनाचूर हो जाएंगे।

- ये वचन हैं बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के ।


देश और दुनिया के वर्तमान हालात दो युगों की टक्कर के संकेत ही कर रहे हैं। पूज्य सन्त उमाकान्त जी महाराज दो युगों की पाटों में पिसने से समस्त मानव मात्र इंसानों को बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं।
वे जन जन में शाकाहार का अलख जगा रहे हैं और उनके नेतृत्व में बाबा जी के प्रेमी भी गांव शहर की गली-गली, सड़कों, चौराहों पर, दफ्तरों में लोगों से सम्पर्क साधकर शाकाहार अपनाने और गाय को राष्ट्रीय पशु बनवाने की प्रार्थना कर रहे हैं।

महाराज जी का कहना है कि यह दो युगों की टक्कर का समय है। इससे बचने के लिए कील का आश्रय लेना होगा। इनसे बचाने की सही और मजबूत कील वक्त के महात्मा ही हो सकते हैं।
साँसों की जो थोड़ी पूंजी बची है, इसके रहते किसी सच्चे महात्मा का आश्रय ले लीजिए, वरना कबीर साहब ने इन पाटों को देखकर पहले ही कहा था-
‘चलती चक्की देखकर; दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।‘ 

उस समय के सन्त कबीर साहब थे, जो सभी जीवों का कल्याण करने आये थे। उनकी मौज से कमाल ने उनकी सामर्थ्य का अनुभव किया था इसलिए उनकी महिमा का गर्व भाव से संकेत करते हुए जीवों को आत्मकल्याण के लिए उनका आश्रय लेने की प्रेरणा दी थी-
‘चलती चक्की देखकर, दिया कमाल ठठाय।
जो किलिया को गही रहे, कभी न पीसा जाय।।’

आज परिवर्तन की वह घड़ी मौजूद है और इस पिसाई से बचाने के लिए पूज्य सन्त उमाकान्त जी महाराज भी अपनी मौज फरमा रहे हैं। वे सबको शाकाहारी बना  रहे हैं और सत्संग के द्वारा उनमें परमात्मा प्राप्ति की जिज्ञासा जगाकर नामदान अर्थात् प्रभु प्राप्ति का रास्ता भी दे रहे हैं। परिवर्तन की इस घड़ी में विचार सबको करना है, नही तो वह तो आने ही वाला है। परिवर्तन की इस घड़ी में बाबा जी के प्रेमियों का ये गीत विचारने योग्य है-

ऐ मानव तेरे जीवन का आधार रहेगा कितने दिन।
इस तन में तड़फती साँसों का, यह तार रहेगा कितने दिन।।

धन- माल कमाया भी तूने, संसार बसाया भी तूने।
तू खाली हाथों जाएगा, अधिकार रहेगा कितने दिन।।

क्यों ऐंठ ऐंठ कर चलता तू, किस मद में फूला फिरता तू।
जो नशा चढ़ा है ये तुझ पर, ये याद रहेगा कितने दिन।।

माता पिता या पत्नि हो, लड़का या अपना भाई हो।
इन अपना कहने वालों का यह, प्यार रहेगा कितने दिन।।

कभी छोड़कर तू जाएगा, कभी छोड़कर ये जाएंगे।
इस नाशवान दुनिया का यह, आधार रहेगा कितने दिन।।

तू इससे खोज गुरु की कर, मिल जाएं तो न किसी से डर।
वे ही तुझे बताएंगे, इस पार रहेगा कितने दिन, उस पार रहेगा कितने दिन।।

जयगुरुदेव|

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