जयगुरुदेव
[प्रश्न ६.]
स्वामी जी ! मौत के वक्त सतगुरु जीव की संभाल किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर- मृत्यु के समय संत सदगुरु उन सब जीवों को दर्शन देते हैं जिन्हें नामदान मिला है । धर्मराय के दरबार में जब फैसला होता है तो गुरु इस बात का निर्णय करते हैं कि इस जीवन को पुनः जन्म देना है कि नहीं । जिन व्यक्तियों को नामदान मिल जाता है उनका लेखा नाम दान के समय से ही सतगुरु के पास होता है काल का उन पर कोई प्रभाव नहीं रहता । संसार में वापिस जन्म लेना मन की कामनाओं पर निर्भर करता है । अगर जीव का सुझाव जड़ संसार के पदार्थों की ओर है और विश्वास की भी कमी है तो खासकर ऐसी हालत में आत्मा को दोबारा जन्म लेना पड़ता है।
[ ७]
गुरुजी ! नाम किसे कहते हैं ?
उत्तर - सभी धर्म पुस्तकों में नाम की महिमा बताई गई है। "नाम" से मतलब राम नाम, कृष्ण नाम, या और किसी नाम से नहीं है। नाम कहते हैं आकाशवाणी को, देववाणी को, शब्द को स्प्रिचुअल साउंड को जो हर क्षण मनुष्य मंदिर में बज रही है । इस नाम की महिमा कोई भी नहीं कर सकता है। रामायण में लिखा है-
कहां कहूं लगि नाम बड़ाई, राम न सकहिं नाम गुन गाई।
यह नाम यह आवाज मनुष्य रूपी मंदिर में दोनों आंखों के ऊपर तक हर क्षण आ रही है । इसी आवाज को पकड़ कर जीवात्मा ऊपर के लोकों में जाती है । साधक इसी नाम को पकड़कर स्वर्ग, बैकुंठ, ईश्वर धाम आदि ऊपर के लोकों में जाते हैं और देवी देवताओं का दर्शन दीदार करते हैं बातें करते हैं। नाम का भेद संत सतगुरु ही मनुष्य को बताते हैं। सारा राज शरीर के आंखों के ऊपर वाले भाग में है और परमात्मा की खोज वहीं पर और उसी के अंदर करनी है ।
परमात्मा के पास जाने का रास्ता अंदर से ही गया हुआ है बाहर कहीं नहीं है और भगवान भी अंदर में ही मिलेगा बाहर कहीं नहीं मिलेगा ।आत्मा चेतन है और परमात्मा भी चेतन है और चेतन ही चेतन का दर्शन कर सकता है । यह जड़ आंखें परमात्मा के ज्योति स्वरूप को बर्दाश्त नहीं कर सकती इतना प्रकाश उनमें है।
[ ८. ]
स्वामी जी ! सत्संग किसे कहते हैं ?
उत्तर - सत का अर्थ है जागृत और संग का अर्थ है जुड़ना अर्थात जागृत या पहुंचे हुए महापुरुष की सोहबत या संगती ही सत्संग है । सतगुरु के अंदर सत प्रगट है उनकी संगति का नाम ही सत्संग है । जहां सतगुरु का सदुपदेश होता है वहां जाने पर आत्मिक रंग चढ़ता है ।
जब जल के सरोवर के किनारे बैठने से शीतलता आती है और अग्नि के पास बैठने से गर्मी आती है तो रूहानी फकीरों के पास बैठने से उनका रंग क्यों नहीं चड़ेगा। संत सतगुरु का रूप अवतार है जिसके अंदर सत्य प्रगट है और जो सत्य से अभिन्न है । उसके अंदर सत्य रम रहा है वह पवित्र हस्ती है । उसमें सत्य स्वयं देहधारी है । वह जीवो को सच्चे रास्ते पर चला कर धुरधाम यानी सत्यलोक तक पहुंचाने का सामर्थ्य रखता है।
[ ९.]
स्वामी जी ! सत्य क्या है ?
उत्तर - सत्य उस प्रभु का नाम है जो सबका सिरजनहार है और वह नाम हर इंसान के अंदर है। नाम ही परमात्मा है और परमात्मा ही नाम है । नाम कहते हैं शब्द को, आवाज को जो परमात्मा के मुंह से निकलती है और सारे ब्रह्मांडो को संचालित कर रही है । नाम को के द्वारा ही आत्मा जीवनकाल में शरीर से अलग होकर आसमानों की सैर करती है। स्वर्ग वैकुंठ आदि लोकों में आ जा सकती है देवी देवताओं का दर्शन दीदार कर सकती है ।
नाम के अलावा जो कुछ भी तुम देखते हो सब असत्य है, झूठ पसारा है । नाम किसी संत सतगुरु की कृपा से ही मिल सकता है नाम दान सबसे बड़ा दान है । जाने अनजाने अंत में सब यही बोलते हैं कि राम नाम सत्य है सत्य बोलो मुक्ति है। नाम ही जीवात्मा को खींचकर शरीर से अलग कर देता है फिर मृत्यु हो जाती है।
[ १०.]
स्वामी जी ! भजन किसे कहते हैं ?
उत्तर- इस मनुष्य रूपी मंदिर में 24 घंटे आकाशवाणी हो रही है घंटे घड़ियाल बज रहे हैं और एक क्षण के लिए भी बंद नहीं होते इन आसमानी आवाजों को सुनने को ही भजन कहा जाता है। ढोलक हारमोनियम अथवा तबले की आवाज पर जो प्रार्थनाएं या गीत गाए जाते हैं उन्हें भजन नहीं कहा जाता । भजन और कुछ नहीं केवल शब्द ध्वनि को सुनना ही है जो परमात्मा के मुंह से निरंतर निकलती रहती है।जीवात्मा के द्वारा इस आंतरिक ध्वनि को सुना जाता है जिसे संतो की भाषा में भजन कहा जाता है।
भजन के द्वारा जन्मों-जन्मों की सोई जीवात्मा जाग उठती है और आनंद प्राप्त होता है । इस अभ्यास में किसी प्रकार की थकावट अथवा परिश्रम नहीं होता और यह सुख और आनंद का मार्ग है इसे सुरत शब्द योग का मार्ग कहा जाता है।
जयगुरुदेव |
शेष क्रमशः पोस्ट न. 3 में पढ़ें 👇🏽
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev