आध्यत्मिक सवाल- जवाब [1]

जयगुरुदेव

【प्रश्न १.】
स्वामी जी!  सन्त सतगुरु कौन होता है ?

उत्तर- मनुष्य सर्व व्यापी परमात्मा के बारे में किसी ऐसे मनुष्य से ही जानकारी प्राप्त कर सकता है जो स्वयं सर्व व्यापी बन चुका हो। सर्व व्यापी शक्ति अपने को मनुष्य रूप में प्रकट किये बिना अर्थात सतगुरु स्वरूप धारण किये बिना मनुष्य की रहनुमाई नही कर सकता। गुरु मनुष्य को दर्जे बदर्जे सिखलाता है और अपना राज खोलता है, जैसे विद्यार्थी को दर्जे बदर्जे आगे की शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

मनुष्य सर्व व्यापी परमात्मा से सीधे उपदेश ग्रहण नही कर सकता।
वह परमात्मा युगों युगों से हमारे साथ है। जब परमात्मा किसी व्यक्ति को अपने पास वापस बुलाना चाहता है तो वह किसी सन्त सतगुरु से उसका मिलाप करा देता है और वह गुरु उस जीवन को शब्द यानि नाम से जोड़ देता है। नाम की डोर पकड़ कर जीवात्मा ऊपर चढ़ती चली जाती है। शुरू से यही कानून चला आ रहा है और आगे भी यही रहेगा।


【प्रश्न २.】
स्वामी जी! गुरु की सेवा किस प्रकार करनी चाहिए ?

उत्तर- जो गुरु का आदेश हो उसका पालन करना ही गुरु की सेवा है।
इसी को गुरु भक्ति कहते हैं।  धन की सेवा करो और समझो कि गुरु प्रसन्न हो गए तो ऐसी बात नहीं है। नाशवान वस्तुओं को देकर गुरु की प्रसन्नता नही हासिल की जा सकती। वचन का पालन करो और भजन करो तो ये आत्मिक सेवा है और उत्तम सेवा है।

ऐसा करने से गुरु की दया तुम पर बरसेगी और जीवात्मा अँधेरे से निकल कर प्रकाश में खड़ी हो जायेगी, उसकी आंख खुल जाएगी और गुरु का दिव्य स्वरूप अंतर मै प्रकट हो जायेगा। इसलिए सबसे पहले तुम यही सेवा करो कि गुरु के आदेश का पालन करो। जो भी हुक्म हो उसे सिर माथे रखकर अपना कर्तव्य निभाओ। सेवा प्यार और लगन के साथ होनी चाहिये। दिखावटी सेवा से तुम्हे कुछ भी मिलने वाला नहीँ।


【प्रश्न ३.】
स्वामी जी! यह जीवन सुफल कैसे होगा ?

उत्तर-  जिस व्यक्ति को पूरे गुरु से परमात्म प्राप्ति का रास्ता मिल जाय, अर्थात नामदान मिल जाय उसका कर्तव्य है कि कम से कम ढाई घण्टा प्रतिदिन शब्द की कमाई करें। जो अन्दर ही न जाये यानि घाट पर न बैठे और प्रार्थना करता रहे कि परदा खोल दीजिए तो ऐसे तो काम बनेगा नहीँ।

भजन करना चाहिए, नियम से रोज बैठना चाहिए। मन को रोककर बैठोगे तो दया अवश्य मिलेगी, जीवात्मा की आँख खुलेगी, शब्द सुनाई देगा। शब्द मेँ नाम मेँ अमृत है जो बराबर चूता रहता है। जब वो पीने को मिलेगा आत्मा को होश आ जायेगी, जाग जायेगी। नाम के प्रगट होने पर परमात्मा मिल जायेगा, जीवन सुफल हो जायेगा।


【प्रश्न ४.】
स्वामी जी! परमार्थ के रास्ते पर सही तरीके से चलने के लिए हमे क्या करना चाहिए ?

उत्तर-  परमार्थ के मार्ग पर चलने वाले को अपनी निरख परख सदैव करते रहना चाहिए। गुरु तुम्हारी आँखों के ऊपर हर क्षण तुम्हारे हर कार्य को देख रहा है। अगर तुम गुरु से प्यार करते हो, अगर तुम्हारा प्रेम गुरु से है तो तुम्हे वही करना चाहिए जो उसका हुकुम हो या जो जो उसे अच्छा लगे। दूसरों के पीछे पड़ना परमार्थी का काम नहीँ, ऐसा करने से वक्त बरबाद होता है। ऐसी हालत तो दुनियादारों की होती है।

परमार्थी को तो अपने पीछे पड़ना चाहिए जिससे अपना सुधार हो।
अपने पीछे पड़ जाओगे तो भजन, ध्यान सुमिरन के लिए समय निकाल लोगे, कोई बहाने बाजी नही करोगे, नही तो हाय बच्चे, हाय बीमारी, हाय कर्जा, हाय हाय लगी रहेगी। इस बात का तुमको विचार होना चाहिए। इसलिए गुरु के हुकुम मे अपने जीवन को बिताओ, अपने परमार्थ का नुकसान मत करो। दुनिया के कामों के लिए जितना जरूरी हो उतना समय दो बाकि समय अधिक से अधिक परमार्थ के चिन्तन मे और भजन में लगाओ।


【प्रश्न ५.】
स्वामी जी! शब्द धुन क्या चीज है ?

उत्तर-  शब्द धुन कहते हैं आवाज को, वाणी को, नाम को, आकाश वाणी को, कलमा को आयतों को, आसमानी आवाज को। परमात्मा के अनन्त शब्द भण्डार से निकली हुई लहर को शब्द धुन कहते हैं। यह शब्द धुन हर इन्सान के अन्दर मौजूद है। यह इंसान की बनाई हुई चीज नहीँ है बल्कि यह कुदरती तौर पर हर घर में बज रही है। इसको न हम बदल सकते हैं, न बड़ा सकते हैं और न ही घटा सकते हैं। इसी शब्द धुन को ईसामसीह ने word कहा।

उन्होंने कहा कि "Word is God and God is Word" अर्थात नाम यानि आवाज ही परमात्मा है और परमात्मा ही नाम है। इस लहर यानि शब्द धुन के एक सिरे पर परमात्मा है और दूसरे सिरे पर जीवात्मा है। इस प्रकार यह लहर इन दोनों को जोड़ने में कड़ी का काम करती है। इस लहर द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और उसके सम्पूर्ण अस्तित्व की सम्हाल हो रही है। सन्त मत की साधना द्वारा इस शब्द धुन को पकड़ा जाता है फिर परमात्मा का साक्षात्कार होता है।

जयगुरुदेव |
शेष क्रमशः पोस्ट न. 2 में पढ़ें  👇🏽

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